
ईरान के भीतर और बाहर फैले विपक्षी समूहों ने एक बार फिर देश में राजनीतिक परिवर्तन की उम्मीदों को बल देना शुरू कर दिया है। इज़राइल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष और सरकार की कमजोर होती पकड़ के बीच, इन समूहों का मानना है कि सत्ता परिवर्तन का “सुनहरा अवसर” अब उनके सामने है। हालांकि ईरान में आम जनता युद्ध की आशंका और विदेशी हमलों के कारण असहाय और भयभीत महसूस कर रही है, वहीं निर्वासित विपक्षी नेता और विभिन्न सशस्त्र समूह सत्ता परिवर्तन की संभावनाओं को लेकर सक्रिय हो चुके हैं।
प्रमुख विपक्षी धड़ों और उनकी मांगों पर गौर करें तो आपको बता दें कि इनमें रेज़ा पहलवी का नाम सबसे पहले आता है। पूर्व शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी के बेटे और अमेरिका में रहने वाले रेज़ा पहलवी ने हाल ही में मीडिया में घोषणा की थी कि वे “राजनीतिक परिवर्तन का नेतृत्व” करने को तैयार हैं। उन्होंने कहा था कि “यह ईरान की आज़ादी का ऐतिहासिक क्षण है, और हमें इसे हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।”
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इसके अलावा, एमईके (मोजाहिदीन-ए-खलक), यह सबसे संगठित विपक्षी समूह है, जिसने कभी इराक युद्ध के दौरान सद्दाम हुसैन का साथ दिया था। इस पर “कल्ट जैसा व्यवहार” और मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप भी लगे हैं। इसके राजनीतिक मंच राष्ट्रीय प्रतिरोध परिषद (NCRI) की नेता मरियम रजवी ने पेरिस में आयोजित एक सम्मेलन में कहा: “हम ना शाह को चाहते हैं, ना मौजूदा मोल्ला शासन को। हमारा उद्देश्य एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और स्वतंत्र ईरान है।”
इसके अलावा, क्षेत्रीय अलगाववादी संगठन भी मैदान में हैं। इनमें ईरान के कुर्द और बलूच बहुल इलाकों में सक्रिय अलगाववादी समूह भी इस समय विशेष रूप से सतर्क हैं। माना जा रहा है कि वे इस संघर्ष का लाभ उठाकर विद्रोह की योजनाएं बना रहे हैं। वैसे निर्वासित नेताओं और सशस्त्र गुटों की गतिविधियों में भले तेजी आई है, लेकिन ईरान की आम जनता युद्ध और अस्थिरता की आशंका से भयभीत है और इस समय आत्मरक्षा ही उनकी पहली प्राथमिकता है।
महसा अमीनी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली कई युवा महिलाओं और छात्राओं ने कहा है कि वे सरकार से नाराज़ तो हैं, लेकिन इस समय सड़कों पर उतरना खुदकुशी जैसा होगा। एक छात्रा ने कहा, “जब मिसाइलें गिर रही हों और विदेशी हमले हो रहे हों, तब हम विरोध नहीं, सिर्फ ज़िंदा रहने के बारे में सोच सकते हैं।” इसके अलावा, एक तथ्य यह भी है कि हालांकि सत्ता परिवर्तन की चाह रखने वाले गुट कई हैं, लेकिन उनकी सबसे बड़ी चुनौती है आपसी विभाजन और नेतृत्व का स्पष्ट अभाव दूर करना।
हम आपको बता दें कि रेज़ा पहलवी शाह समर्थकों के लिए पसंदीदा चेहरा हैं, लेकिन उन्हें धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की चाह रखने वाले नकारते हैं। वहीं एमईके पर अब भी कई ईरानियों का भरोसा नहीं है, खासकर उनकी इराक युद्ध में भूमिका के कारण। वहीं, क्षेत्रीय विद्रोही समूहों को देश की अखंडता के लिए खतरा माना जाता है। इसलिए फिलहाल कोई एक मंच या नेता ऐसा नहीं है जो पूरे देश के असंतुष्ट वर्गों को एकजुट कर सके।
हम आपको यह भी बता दें कि विपक्षी समूहों का हौसला इसलिए भी बढ़ा हुआ है क्योंकि इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने हाल में ईरानी जनता को सीधे संबोधित करते हुए कहा है कि हम न केवल ईरान के परमाणु खतरे को खत्म कर रहे हैं, बल्कि आपकी स्वतंत्रता का रास्ता भी साफ कर रहे हैं। इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह भी स्पष्ट किया है कि ईरान में शासन परिवर्तन या मौजूदा नेतृत्व का पतन इज़राइल के हमलों का घोषित लक्ष्य नहीं है, लेकिन यह एक संभावित परिणाम अवश्य हो सकता है।
हम आपको यह भी बता दें कि अमेरिका ने अब तक किसी ईरानी विपक्षी नेता को खुला समर्थन नहीं दिया है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि ईरानी विपक्ष के कुछ हिस्सों को गुप्त राजनयिक समर्थन या ‘बैक चैनल’ से प्रोत्साहन मिल रहा है। हम आपको यह भी बता दें कि ईरान में 46 वर्षों से काबिज मौजूदा शासन ने अब तक हर विरोध को कुचलने की रणनीति अपनाई है। इस बार भले ही हालात बेहद अस्थिर और असामान्य हों, लेकिन जब तक विपक्ष संगठित, विश्वसनीय और जमीनी समर्थन वाला न हो, सत्ता परिवर्तन की संभावना केवल एक सपना ही है। देखा जाये तो फिलहाल, ईरान के भीतर बदलाव की चिंगारी तो मौजूद है, लेकिन उसे शोला बनने के लिए न केवल रणनीति, नेतृत्व और साहस चाहिए, बल्कि एकजुटता भी।
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