
BS7 क्या है और क्यों जरूरी है?
BS7 नॉर्म्स भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित नए उत्सर्जन मानक हैं, जिनका उद्देश्य वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को और कम करना है। इसके तहत विशेषकर डीजल वाहनों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), पार्टिकुलेट मैटर (PM) और अन्य हानिकारक गैसों को कड़े स्तर पर नियंत्रित करना अनिवार्य होगा। NOx का स्तर घटाकर 60 mg/km तक लाने की बात की जा रही है, जो मौजूदा मानकों की तुलना में कहीं अधिक सख्त है।
डीजल गाड़ियों पर क्यों बढ़ा संकट?
जैसे-जैसे प्रदूषण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, सरकारें डीजल को लेकर अधिक सतर्क हो रही हैं। BS7 नॉर्म्स विशेष रूप से डीजल गाड़ियों पर असर डालेंगे क्योंकि डीजल इंजन प्राकृतिक रूप से अधिक NOx और PM उत्पन्न करते हैं। इन्हें नियंत्रित करने के लिए जटिल और महंगी तकनीकों की जरूरत होगी, जिससे न सिर्फ उत्पादन खर्च बढ़ेगा, बल्कि इनकी कीमतें भी आम लोगों की पहुंच से बाहर जा सकती हैं।
महंगी होगी टेक्नोलॉजी, बढ़ेगा कीमतों का बोझ
BS7 मानकों के अनुसार डीजल वाहनों को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए कई उन्नत उपकरणों का इस्तेमाल करना होगा, जैसे:
– Selective Catalytic Reduction (SCR)
– Diesel Particulate Filter (DPF)
– AdBlue सिस्टम
इन तकनीकों को जोड़ने से वाहनों की कीमत में लगभग ₹1.8 लाख से ₹2.5 लाख तक की बढ़ोतरी हो सकती है। इसका सीधा असर मिड-सेगमेंट SUV और सेडान जैसे डीजल वाहनों की बिक्री पर पड़ेगा। ग्राहक पेट्रोल या इलेक्ट्रिक विकल्प की ओर झुक सकते हैं।
किन वाहनों को नहीं छूएंगे BS7 नॉर्म्स?
हालांकि BS7 निजी यात्री वाहनों को लक्षित करता है, लेकिन ट्रक, बस, ट्रैक्टर और अन्य भारी कमर्शियल वाहनों पर इसका तत्काल प्रभाव नहीं पड़ेगा। इन वाहनों की जरूरत और संचालन प्रकृति को देखते हुए सरकार ने इन्हें फिलहाल छूट देने का इशारा किया है। यानी डीजल का उपयोग पूरी तरह से नहीं रुकेगा, बल्कि कुछ विशेष क्षेत्रों तक सीमित रह जाएगा।
एक्सपोर्ट से जिंदा रहेगा डीजल सेगमेंट
महिंद्रा, टाटा, और अशोक लीलैंड जैसी कंपनियां डीजल SUV और अन्य वाहनों का निर्यात करती हैं। भले ही भारत में इनका उपयोग घटे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मांग को देखते हुए इनका उत्पादन जारी रहेगा। इसका मतलब यह है कि डीजल टेक्नोलॉजी पूरी तरह खत्म नहीं होगी, बल्कि इसका उपयोग चुनिंदा और व्यावसायिक बाजारों के लिए बना रहेगा।
क्लीन डीजल की तरफ बढ़ते कदम
भारत और दुनिया की कंपनियां पारंपरिक डीजल की जगह हाइब्रिड डीजल, बायो-डीजल और सिंथेटिक फ्यूल जैसे विकल्पों पर तेजी से काम कर रही हैं। भारत सरकार भी बायोफ्यूल और एथेनॉल ब्लेंडिंग को प्रोत्साहित कर रही है। 2025 तक 20% एथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जो डीजल को कम प्रदूषण फैलाने वाले विकल्प में बदलने की दिशा में अहम कदम है।
डीजल खत्म नहीं होगा, बस बदलेगा रूप
BS7 नॉर्म्स भले ही डीजल टेक्नोलॉजी के लिए चुनौती हों, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि डीजल वाहन पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगे। तकनीकी सुधार, वैकल्पिक ईंधन और सरकारी सहयोग के चलते डीजल टेक्नोलॉजी आने वाले समय में और अधिक स्मार्ट, क्लीन और इफेक्टिव रूप में देखने को मिल सकती है।
ऑटो इंडस्ट्री भी इस बदलाव के लिए तैयार हो रही है। कंपनियां नई तकनीक में निवेश कर रही हैं और अपने उत्पाद पोर्टफोलियो को इलेक्ट्रिक, हाइब्रिड, और क्लीन डीजल विकल्पों के साथ री-डिजाइन कर रही हैं।
BS7 नॉर्म्स भारत में स्वच्छ और सुरक्षित परिवहन के भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। डीजल गाड़ियों को लेकर भले ही चिंताएं हों, लेकिन तकनीक और नीति दोनों के सहयोग से यह बदलाव भारत के लिए एक स्वच्छ और टिकाऊ ऑटोमोबाइल भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगा।
– डॉ. अनिमेष शर्मा
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