
Tin Bigha Corridor: भारत ने तीन बीघा गलियारा आज ही के दिन यानी 26 जून 1992 को 999 सालों के लिए बांग्लादेश को लीज पर दे दिया था.

हाइलाइट्स
- भारत ने 1992 में तीन बीघा गलियारा बांग्लादेश को लीज पर दिया
- इस गलियारे से बांग्लादेशी नागरिक बिना वीजा के आ-जा सकते हैं
- तीन बीघा गलियारा भारत-बांग्लादेश संबंधों में महत्वपूर्ण है
Tin Bigha Corridor: तीन बीघा गलियारा भारत और बांग्लादेश के मजबूत रिश्तों का प्रमाण है. जिसे भारत ने बांग्लादेश को लीज पर दिया हुआ है. तीन बीघा कॉरिडोर भारतीय जमीन का वो हिस्सा है जो दोनों देशों की सीमा पर स्थित है. 26 जून 1992 में इसे बांग्लादेश को लीज पर दिया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य बांग्लादेश के दहग्राम-अंगरपोटा (Dahagram–Angarpota) एन्क्लेव को सीधे जमीनी रास्ते से बांग्लादेश से जोड़ना था. केवल यही जगह है जहां से बांग्लादेशी नागिरक बिना पासपोर्ट और बिना वीजा के आना-जाना कर सकते हैं. यही नहीं इस कॉरिडोर में आने जाने वालों की जांच भारतीय सुरक्षा अधिकारी नहीं कर सकते.
दरअसल, यह कहानी बांग्लादेश के विभाजन से शुरू होती है. यह समस्या आजादी के समय से थी, लेकिन असली कहानी बांग्लादेश के बनने के बाद शुरू हुई. उस समय दोनों देशों की सीमा पर कई ऐसे क्षेत्र थे जो प्रशासनिक रूप से तो एक देश के अधिकार में थे, लेकिन उन तक पहुंचने का रास्ता दूसरे देश से होकर गुजरता था. इससे नागरिकों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. इसी समस्या को देखते हुए साल 1971 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ. 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान के बीच हुई संधि के तहत इस गलियारे को बांग्लादेश को सौंपने का फैसला किया गया था. हालांकि इसे लागू करने में 18 साल लग गए और 1992 में इसे अंतिम रूप दिया गया.
तीन बीघा कॉरिडोर भारत की जमीन का वो एक हिस्सा है जो दोनों देशों की सीमा पर है.
भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में हुए इस समझौते में पहली बार तीन बीघा कॉरिडोर का जिक्र हुआ. समझौते के अनुसार, बांग्लादेश को दक्षिण बेरूबारी इलाके का एक हिस्सा भारत को देना था. बदले में यह तय हुआ कि भारत उसे तीन बीघा जमीन सौंप देगा ताकि बांग्लादेशियों के लिए आवागमन आसान हो सके. इस समझौते को लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट (LBA) कहा गया.
तीन बीघा कॉरिडोर में कानूनी उलझन
कुछ ही समय बाद बांग्लादेश ने बेरूबारी का हिस्सा भारत को दे दिया, लेकिन भारत से उसे तीन बीघा गलियारा नहीं मिल पा रहा था. इसकी वजह कई कानूनी अड़चनें थीं. इस फैसले का पश्चिम बंगाल के स्थानीय लोगों और विपक्षी दलों ने विरोध किया था. कुछ लोगों को डर था कि इससे सुरक्षा संबंधी खतरे पैदा हो सकते हैं. मामला उलझता देख दोबारा बैठक हुई और साल 1982 में फिर से समझौता हुआ, लेकिन तब भी काम नहीं बन सका. आखिरकार यह तय हुआ कि गलियारा दिन में 6 घंटों के लिए बांग्लादेशी लोगों के आने-जाने के लिए खोला जाएगा.
26 जून 1992 को दिया गया लीज पर
तीन बीघा कॉरिडोर को लेकर एक बड़ा समझौता 26 जून 1992 में हुआ. इसके तहत भारत में पड़ने वाला 178 x 85 वर्ग मीटर का यह क्षेत्र 999 सालों के लिए बांग्लादेश को लीज पर दे दिया गया. हालांकि इस क्षेत्र पर पूरा नियंत्रण भारत का ही रहा. यानी यह भारत की ही जमीन है, लेकिन बांग्लादेश इसका उपयोग कर सकता है. इससे सालों से ज्यादा समय से टुकड़ों में रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों को बड़ी राहत मिली. इसकी मदद से बांग्लादेशी अब अपनी मर्जी से कभी भी भारत से बाहर जाने और अपने देश में प्रवेश करने के लिए इस सड़क का उपयोग कर सकते हैं.
तीन बीघा कॉरिडोर को लेकर एक और समझौता सितंबर 2011 में हुआ. यह समझौता तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीच हुआ था. उम्मीद की जा रही थी कि तभी तीस्ता नदी का विवाद भी सुलझ सकेगा, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दौरे पर न जाने के कारण यह नहीं हो सका. 19 अक्टूबर को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने घोषणा की कि तीन बीघा गलियारा अब चौबीसों घंटे खुला रहेगा. यह दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता था.
2015 में भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा समझौता (Land Boundary Agreement) हुआ. जिसमें सभी एन्क्लेव्स (छोटे-छोटे विवादित क्षेत्र) का आदान-प्रदान किया गया. इसके बाद दहग्राम-अंगरपोटा सहित सभी एन्क्लेव्स का मुद्दा स्थायी रूप से सुलझ गया लेकिन तीन बीघा गलियारा बांग्लादेश के उपयोग में ही रहा. तीन बीघा समझौता गलियारा भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है.
क्या भारत इसको वापस ले सकता है
अब सवाल है कि क्या भारत तीन बीघा गलियारा वापस ले सकता है? इसका जवाब कानूनी और राजनीतिक पहलुओं पर निर्भर करता है. पहला सवाल तो यही है कि क्या भारत 999 साल से पहले गलियारा वापस ले सकता है? समझौते की शर्तों के अनुसार यह एक दीर्घकालिक पट्टा है जिसमें कोई समय-पूर्व समाप्ति का प्रावधान नहीं है. अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक ऐसे समझौतों को तोड़ना मुश्किल होता है, खासकर अगर दोनों देशों की सहमति न हो. हालांकि अगर बांग्लादेश सहमत हो तो भारत इसे वापस ले सकता है. लेकिन ऐसा होने की संभावना कम है क्योंकि यह गलियारा बांग्लादेश के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.
क्या भारत जबरन वापस ले सकता है?
तकनीकी रूप से भारत एकतरफा कार्रवाई कर सकता है. लेकिन इससे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा और भारत-बांग्लादेश संबंधों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. बांग्लादेश इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों (जैसे UN या ICJ) पर भी उठा सकता है. अगर भारत और बांग्लादेश किसी नए समझौते पर सहमत होते हैं तो इस गलियारे की स्थिति बदल सकती है. अगर बांग्लादेश किसी कारण से इस गलियारे का उपयोग बंद कर दे या कोई नई राजनीतिक स्थिति बने, तो भारत इसे वापस लेने की बात कर सकता है.
Discover more from हिंदी न्यूज़ ब्लॉग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.