
Insurance Policy Claim: इंसान का वक्त कब बदल जाए इस बारे में कोई कुछ नहीं बता सकता. कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं, जिसके बारे में शायद हमने कभी सोचा भी न हो. अब आप 12 जून को अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया क्रैश होने की घटना को ही ले लीजिए, क्या किसी को इस भयावह हादसे की तनिक भी अंदेशा था? अब इसी दौरान हमारे में एक सवाल आता होगा कि अगर इंश्योरेंस पॉलिसी में पॉलिसी होल्डर और नॉमिनी दोनों की ही मौत हो जाए?
विमान हादसे के बाद कई मामले आ रहे सामने
पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद प्लेन क्रैश के बाद कई ऐसे मामले सामने आए, जहां पॉलिसी लेने वाले और क्लेम रिसीव करने वाले नॉमिनी दोनों की ही हादसे में मौत हो गई है. अहमदाबाद से लंदन गेटवे के लिए रवाना हुई एयर इंडिया का बोइंग ड्रीमलाइनर विमान मेघानी नगर इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इसमें क्रू मेंबर्स सहित 241 यात्रियों की मौत हो गई.
इसके अलावा, दुर्घटनास्थल पर मौजूद 34 लोगों की भी जान चली गई. ऐसे हालातों में दुखों का सामना कर रहे परिवार के सदस्यों को यह भी सोचना पड़ता है कि अब आगे क्या होगा, इंश्योरेंस में मिलने वाले पैसे का क्लेम कैसे करना है? आइए इस खबर के जरिए हम आपको बताते हैं कि अगर पॉलिसी होल्डर और नॉमिनी दोनों की मौत हो जाए, तो इंश्योरेंस का पैसा किसे मिलेगा?
क्या जब्त हो जाती है इंश्योरेंस पॉलिसी?
सबसे पहले तो ये बता दें कि बीमा की राशि कभी जब्त नहीं की जाती है, बल्कि पॉलिसी होल्डर की संपत्ति का हिस्सा बन जाती है. आमतौर पर कानूनी उत्तराधिकारी जैसे कि बच्चे, जीवित माता-पिता या जीवनसाथी इसका दावा कर सकते हैं. एयर इंडिया हादसे के बाद कई बीमा कंपनियों के सामने ऐसे ही मामले आ रहे हैं. LIC, Iffco Tokio, Tata AIG जैसे कई इंश्योरर्स को ऐसे क्लेम मिले हैं, जिनमें पॉलिसी होल्डर और नॉमिनी दोनों की ही मौत हो गई है.
किसे मिलते हैं क्लेम के पैसे?
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ कंपनियां फटाफट क्लेम सेटलमेंट के लिए औपचारिकताओं में ढील दे रही हैं जैसे कि LIC ने कहा कि इन मामलों में कोर्ट से ऑर्डर मिलने का इंतजार करने के बजाय कानूनी उत्तराधिकारियों से डिक्लेरेशन और क्षतिपूर्ति बांड स्वीकार कर रहे हैं, बशर्ते कि उत्तराधिकारी इस बात पर सहमत हों कि क्लेम सेटलमेंट से मिलने वाली राशि का बंटवारा कैसे करना है. आमतौर पर इंश्योरेंस कंपनियां डॉक्यूमेंट्स की जांच और क्लेम करने वाले व्यक्ति का पॉलिसी होल्डर या नॉमिनी से संबंध की पुष्टि करने के बाद पैसे का भुगतान कर देती हैं.
अब दूसरा सवाल यह है कि अगर कई कानूनी वारिस हो, तो इस स्थिति में कंपनी क्या करती है? हिंदू उत्तराधिकार कानून में कानूनी वारिस को दो वर्गों में बांटा गया है. इनमें पहले वर्ग में क्लास वन लीगल वारिस जैसे कि बेटा-बेटी, पत्नी, मां. अगर क्लास वन लीगल वारिस में से कोई नहीं है, तो क्लास 2 पर विचार किया जाता है, जिनमें पिता, भाई-बहन, भतीजा-भतीजी शामिल होते हैं.
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