
डिजिटल फास्टिंग को डिजिटल डिटॉक्स भी कहा जाता है. इसमें एक तय समय के लिए डिजिटल डिवाइस और तकनीक के उपयोग से दूरी बनाई जाती है. डिजिटल फास्टिंग करते समय लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से दूर रहते हैं ताकि ध्यान भटकने और तुलना की आदत को कम किया जा सके. वे फोन, टैबलेट या कंप्यूटर जैसे डिजिटल उपकरणों के स्क्रीन टाइम को सीमित करते हैं. आमतौर पर लोग अपने मोबाइल फोन पर नोटिफिकेशन बंद कर देते हैं ताकि ध्यान भंग और रुकावटें कम हों.
डिजिटल फास्टिंग के नुकसान
आजकल अधिकतर लोगों के हाथ में मोबाइल फोन होता है और उसमें तेज़ इंटरनेट भी होता है. वे सोशल मीडिया पर रील्स स्क्रॉल करते हुए बहुत समय बर्बाद करते हैं और ऑनलाइन मिलने वाली हर चीज़ को देखते हैं. सोशल मीडिया दूसरों से जुड़ने का अच्छा माध्यम है लेकिन लोग अकसर अपना समय गंवा देते हैं और फिर इसके कारण बेचैनी महसूस करने लगते हैं. अगर आपको उस खास समय पर वह चीज नहीं मिले तो आपमें एंग्जाइटी होने लगती है. एक बार जब इसकी आदत लग जाती है तो इसकी लत छुड़ाना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसकी लत से सिर्फ समय ही नहीं बर्बाद होता बल्कि बहुत ज्यादा तनाव और एंग्जाइटी भी होने लगती है. अगर ऐसा लगातर हो तो इससे शारीरिक परेशानियां भी बढ़ सकती है. ऐसे में यदि इस आदत को सुधारा जाए तो बहुत फायदा हो सकता है.
डिजिटल फास्टिंग का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि आपको खुद पर कंट्रोल करना आने लगता है. आप संयमित हो सकते हैं. इससे तनाव घट सकता है और आपका दिमाग रिफ्रेश हो सकता है. इससे आपकी सोच में रचनात्मकता और सकारात्मकता आती है. सोशल मीडिया का अनावश्यक उपयोग न करने से तनाव और चिंता कम हो सकती है. अगर आप डिजिटल फास्टिंग करेंगे तो इससे बेहतर नींद आएगी. अगर सोने से पहले स्क्रीन का कम उपयोग हो तो लोग समय पर सो पाएंगे. वही डिजिटल फास्टिंग बड़ा फायदा यह है कि इससे प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी. यानी जब तक आप सोशल मीडिया पर रहते हैं तब तक आप अन्य कामों के लिए समय नहीं दे पाते हैं. जब आप इसे कम कर देंगे तो अन्य काम में प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी जिससे ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यों के लिए ज्यादा समय मिलेगा.
डिजिटल फास्टिंग कितनी बार करनी चाहिए
कुछ लोग नियमित रूप से डिजिटल फास्टिंग करते हैं. जैसे हर दिन कुछ घंटे के लिए डिवाइस से दूरी बनाना. वहीं कुछ लोग समय-समय पर डिजिटल फास्टिंग करते हैं, जैसे एक दिन, एक वीकेंड या उससे भी ज्यादा समय के लिए तकनीक से ब्रेक लेना.
एनडीटीवी की खबर में मुंबई की मनोवैज्ञानिक और क्लीनिकल हिप्नोथैरेपिस्ट डायना क्वाड्रोस कहती हैं कि एक मनोवैज्ञानिक के रूप में मैंने खुद देखा है कि डिजिटल उपकरणों का अत्यधिक उपयोग मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर कितना नकारात्मक असर डालता है. यह अकेलेपन, आत्म-सम्मान में कमी और आसपास की दुनिया से कटाव की भावना पैदा कर सकता है. बच्चे विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि अधिक स्क्रीन टाइम का संबंध मस्तिष्क विकास में देरी और अटेंशन डिफिसीट हाइपएक्टिव डिसॉर्डर -ADHD के बढ़ते जोखिम से देखा गया है. अब समय आ गया है कि हम एक कदम पीछे हटें. तकनीक के साथ अपने संबंधों की दोबारा समीक्षा करें और अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें.
बच्चों पर बहुत बुरा असर
अमेरिकी सरकार द्वारा 2023 में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बताया गया कि बहुत छोटे बच्चों जैसे दो से तीन साल की उम्र के बच्चों में स्क्रीन मीडिया पर अत्यधिक निर्भरता गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय बन गई है. क्योंकि यह उनके मानसिक, भाषाई और सामाजिक-भावनात्मक विकास को नुकसान पहुंचा सकती है. यह अध्ययन नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ था. अध्ययन में यह कहा गया कि नई तकनीकें अब छोटे बच्चों की दैनिक जिंदगी में शामिल हो चुकी हैं और आज के बच्चे डिजिटल नेटिव्स बन चुके हैं क्योंकि वे ऐसे माहौल में जन्म ले रहे हैं जो मोबाइल मीडिया से जुड़ा हुआ है और हर पल बदल रहा है. अध्ययन में यह भी बताया गया कि सोशल मीडिया और स्क्रीन तकनीक शिक्षा और सीखने को बेहतर बना सकती है लेकिन अगर स्क्रीन के सामने बहुत अधिक समय बिताया जाए तो इससे मानसिक कार्यक्षमता प्रभावित होगी और बच्चे पढ़ाई में कमजोर प्रदर्शन करने लगेंगे.
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