उत्तराखंड की शादियां हमेशा अपनी सादगी, शुद्धता और आध्यात्मिक माहौल के लिए जानी जाती हैं. यहां की रस्मों में देवताओं का आशीर्वाद सबसे ऊपर रखा जाता है. शादी में पहना जाने वाला यह मुकुट इसी सांस्कृतिक सोच का एक खूबसूरत हिस्सा है. यह सिर्फ एक शोभा की चीज नहीं है, बल्कि एक ऐसा प्रतीक है जो दूल्हा-दुल्हन को पूरे विवाह में सुरक्षा, सम्मान और शुभता का एहसास कराता है.
इस आर्टिकल में हम आसान भाषा में समझेंगे कि यह मुकुट आखिर है क्या, इसके पीछे की परंपरा क्या कहती है, इसे क्यों पहनाया जाता है, और यह आजकल इतना ट्रेंडिंग क्यों हो गया है.
1. यह मुकुट आखिर कहलाता क्या है?
उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में इसे कई नाम दिए गए हैं.
मुकुट
पाटल मुकुट
शिरोभूषण
देवभूमि सिरपोष
गढ़वाल और कुमाऊं दोनों क्षेत्रों में दूल्हा-दुल्हन को शादी में यह मुकुट पहनाया जाता है.
मुकुट आमतौर पर रंगीन कपड़े, सुनहरे बॉर्डर, पत्तियों की डिजाइन, मोतियों के काम और बीच में लगे हुआ देवी-देवता के चित्र से सजाया जाता है. यह दिखने में बेहद रॉयल लगता है और पहनने वाले को एक खास पहचान देता है.
2. यह मुकुट पहनने की परंपरा क्यों है?
देवताओं का आशीर्वाद साथ रखने का प्रतीक
उत्तराखंड में माना जाता है कि शादी जैसे पवित्र मौके पर देवताओं की कृपा साक्षात साथ होनी चाहिए. इसलिए दूल्हा-दुल्हन के मुकुट में अक्सर भगवान गणेश, नारायण, राधा-कृष्ण या कुलदेवता की तस्वीर लगी होती है.
यह तस्वीर केवल सजावट नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि पूरा विवाह देवताओं की कृपा के साथ संपन्न हो.
दूल्हा-दुल्हन को सिंहासन जैसी गरिमा देना
पहाड़ में शादी को दो आत्माओं का पवित्र मिलन माना जाता है. विवाह के दिन दूल्हा-दुल्हन को राजा और रानी जैसी गरिमा दी जाती है. मुकुट पहनाना इसी भावना का प्रतीक है.
यानी यह मुकुट उन्हें उनके जीवन की नई शुरुआत में विशेष सम्मान देता है.
नज़र और नकारात्मक ऊर्जा से बचाव
पहाड़ों में यह मान्यता है कि शादी के समय दूल्हा-दुल्हन पर नज़र जल्दी लगती है.
मुकुट में लगी लेस, पत्तियां और मोतियों की डिजाइन एक तरह से संरक्षा कवच की तरह मानी जाती है, जो नज़र और नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखती है.
3. यह मुकुट कैसे बनाया जाता है?
उत्तराखंड के स्थानीय कारीगर इसे बेहद प्यार और ध्यान से तैयार करते हैं.
इसमें इस्तेमाल होता है:
कढ़ाईदार कपड़ा
सुनहरी और लाल लेस
मिरर वर्क
मोती
छोटी फ्रेम में देवी-देवताओं की तस्वीर
कागज या हल्की लकड़ी का बेस
पहले इसे गांव के शिल्पकार हाथ से बनाते थे. आजकल डिजाइनर वर्जन भी उपलब्ध हैं, जो हल्के और ज्यादा आकर्षक दिखते हैं. फिर भी कई परिवार आज भी पुराना पारंपरिक मुकुट संभालकर रखते हैं और पीढ़ियों तक उसी का उपयोग करते हैं.
4. मुकुट कब और कैसे पहना जाता है?
दूल्हा आमतौर पर बारात निकलने से पहले या जयमाला के समय मुकुट पहनता है.
दुल्हन इसे कन्यादान या फेरे शुरू होने पर पहनती है.
कई जगहों पर दूल्हा-दुल्हन दोनों पूरे विवाह क्रम में इसे धारण करते हैं.
यह मुकुट पहनने के बाद दूल्हा-दुल्हन के चेहरे पर एक अलग ही आत्मविश्वास, शांति और आनंद नजर आता है, क्योंकि यह उनके लिए संस्कृति और आशीर्वाद दोनों का संगम होता है.
5. आजकल यह मुकुट फिर से इतना ट्रेंड क्यों हो रहा है?
सोशल मीडिया, व्लॉगिंग और कंटेंट क्रिएटर्स की शादी के कारण यह मुकुट देशभर में लोकप्रिय हो गया है.
शादी के फोटो में यह बेहद रॉयल और कल्चरल लुक देता है.
पहाड़ी पहचान को स्टाइलिश तरीके से पेश किया जा सकता है.
युवा कपल भी अपनी रूट्स और कल्चर को सेलिब्रेट करने के लिए इसे अपनाने लगे हैं.
यूट्यूबर्स, इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स और कपल्स की वायरल वेडिंग पोस्ट्स से यह और ट्रेंडिंग हो गया है.
6. संस्कृति, सम्मान और आध्यात्मिक जुड़ाव का खूबसूरत प्रतीक
उत्तराखंड का यह मुकुट केवल सजावट नहीं, बल्कि परिवार, परंपरा और आस्था का संगम है.
जब दूल्हा-दुल्हन इसे पहनते हैं, तो इसका मतलब होता है:
देवताओं का आशीर्वाद
नए जीवन की शुरुआत
परिवार की परंपरा का सम्मान
नज़र और नकारात्मकता से सुरक्षा
और हर कदम पर शुभ मंगल की कामना
यही कारण है कि यह परंपरा आज भी उतने ही सम्मान से निभाई जाती है, जितने सदियों पहले निभाई जाती थी.


