
कुमाऊं के सीमावर्ती गांवों में लोगों की जिंदगी सीमा के दोनों ओर चलती है. रिश्तेदार, बाजार, त्योहार सब कुछ साझा है. भारत और नेपाल के बीच खुली सीमा की वजह से यहां कोई पासपोर्ट या वीज़ा नहीं चाहिए. लोग आसानी से आ-जा सकते हैं. यह जीवनशैली दर्शाती है कि कैसे दो देश अलग होने के बावजूद आपसी संबंधों में गहराई रख सकते हैं. आइए जानते है ऐसी कुछ जगहों के बारे में……

टनकपुर और बनबसा उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित ऐसे प्रमुख बॉर्डर पॉइंट्स हैं, जहां से आप बिना पासपोर्ट या वीज़ा के आसानी से नेपाल यात्रा कर सकते हैं. भारत-नेपाल की ऐतिहासिक खुली सीमा व्यवस्था के तहत यहां से सिर्फ आधार कार्ड दिखाकर नेपाल के महेन्द्रनगर जैसे शहरों में प्रवेश करना बेहद आसान है. बनबसा बॉर्डर पर एसएसबी की चौकी और नेपाल की ओर नेपाली प्रहरी की तैनाती रहती है, लेकिन आम नागरिकों के लिए आवाजाही पूरी तरह सहज है. यहां से लोग रोज़मर्रा की खरीदारी, व्यापार और पारिवारिक मेलजोल के लिए नेपाल जाते हैं. टनकपुर से बनबसा की दूरी लगभग 10 किलोमीटर है और यहां से कुछ ही मिनटों में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार की जा सकती है. यदि आप एक सहज और बिना कागजी झंझट के नेपाल घूमना चाहते हैं, तो टनकपुर-बनबसा बॉर्डर आपके लिए एक शानदार और आसान विकल्प है.

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के झूलाघाट में बना यह छोटा सा झूला पुल भारत और नेपाल को आपस में जोड़ता है. इस पुल को पार करते ही आप नेपाल की भूमि पर होते हैं. दोनों ओर की संस्कृति यहां एक साथ देखी जा सकती है. यह स्थान स्थानीय लोगों के लिए न सिर्फ सीमा पार जाने का जरिया है, बल्कि खरीदारी और मेलजोल का केंद्र भी है. यहां रोजाना बड़ी संख्या में लोग बिना पासपोर्ट या वीज़ा के आना-जाना करते हैं. यह पुल इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कैसे सीमाएं दिलों को नहीं बांटतीं.

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से करीब 60 किलोमीटर दूर जौलजीबी नेपाल जाने का एक और प्रमुख रास्ता है. यहां भी एक झूला पुल बना हुआ है, जो भारत को नेपाल से जोड़ता है. जौलजीबी का मेला भारत, नेपाल और चीन की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है. इस मेले में हजारों लोग भाग लेते हैं और दोनों देशों की मिलीजुली संस्कृति के रंग देखे जा सकते हैं. यह स्थान पारंपरिक संगीत, पहनावे और लोककलाओं के लिए जाना जाता है. यह अनुभव न सिर्फ रोमांचक होता है, बल्कि सांस्कृतिक समरसता को भी महसूस कराता है.

कुमाऊं के पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर स्थित धारचूला नेपाल के दार्चुला शहर से जुड़ा हुआ है. दोनों शहरों के बीच एक छोटा झूला पुल बना है, जिससे चंद मिनटों में सीमा पार की जा सकती है. अब यहां एक नया मोटर पुल भी तैयार हो रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार और आवाजाही और भी सहज हो जाएगी. धारचूला का बाजार भारतीय और नेपाली सामानों का अनोखा संगम है, जहां पर्यटक और स्थानीय लोग सस्ते और रोचक उत्पाद खरीदते हैं.

पिथौरागढ़ के गुंजी गांव के पास स्थित सीतापुल एक कच्चा पुल है जो भारत को नेपाल के छागरू और तिनकर गांवों से जोड़ता है. यह पुल आदि कैलाश यात्रा मार्ग के पास है और नेपाल के दुर्गम इलाकों तक पहुंचने का साधन है. इस पुल से सीमा पार करने के लिए पर्यटकों को आधार कार्ड दिखाना होता है और सुरक्षा के लिहाज से यहां SSB तैनात रहती है. यह क्षेत्र हिमालय की गोद में बसा होने के कारण रोमांच और शांति का अद्भुत मेल प्रदान करता है.

पिथौरागढ़ के पंचेश्वर क्षेत्र के सल्ला गांव से नेपाल जाने के लिए झूला पुल नहीं, बल्कि नाव का सहारा लिया जाता है. यहां काली नदी दोनों देशों की सीमा बनाती है और इसी पर तैरती छोटी नावें लोगों को भारत से नेपाल और नेपाल से भारत पहुंचाती हैं. यह अनुभव बेहद अनोखा होता है क्योंकि यह नदी पार कर आप किसी और देश की जमीन पर कदम रखते हैं. बरसात के मौसम में यह आवागमन थोड़े समय के लिए रुक जाता है, लेकिन सामान्य दिनों में यह रास्ता जीवंत रहता है.
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