
होटल में ठहरने का सबसे बड़ा मकसद होता है – सुकून और आराम. जब आप घड़ी देखते हैं, तो दिमाग में लगातार समय का दबाव बना रहता है – कब जागना है, कब निकलना है, कब मीटिंग है. होटल वाले यही दबाव हटाना चाहते हैं. इसलिए कमरे से घड़ी हटा दी जाती है, ताकि आप खुद को आज़ाद महसूस करें और जब तक चाहें आराम कर सकें.
घड़ी न होने से मेहमानों पर सुबह जल्दी उठने या नाश्ते की टेंशन नहीं रहती. वे अपने हिसाब से उठते हैं और दिन की शुरुआत करते हैं. इससे उन्हें ऐसा लगता है जैसे वे किसी टाइमटेबल में बंधे नहीं हैं. होटल इसी अनुभव को बढ़ावा देना चाहता है.
घड़ी नहीं, खर्च ज़्यादा
एक और छुपा हुआ कारण है – मेहमानों का ज्यादा समय होटल में बिताना. जब घड़ी सामने नहीं होती, तो उन्हें अंदाज़ा नहीं होता कि कितनी देर हो चुकी है. ऐसे में वे होटल की रेस्टोरेंट, स्पा या बार जैसी सेवाओं का ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं, जिससे होटल की कमाई भी बढ़ती है. घड़ी न होने से लोग जल्दी चेकआउट की सोच में भी नहीं पड़ते.
आजकल हर किसी के पास मोबाइल होता है. उसमें टाइम भी है, अलार्म भी और रिमाइंडर भी. ऐसे में होटल अलग से घड़ी क्यों लगाए? यही वजह है कि ज़्यादातर होटल अब घड़ी को गैरज़रूरी मानते हैं. कुछ होटल तो जरूरत पर वेक-अप कॉल की सुविधा भी देते हैं.
साफ-सफाई और लागत का मामला
हर होटल चाहता है कि उसके कमरे साफ और सलीके से सजे हों. घड़ी जैसे छोटे आइटम को लगाना, उसकी बैटरी चेक करना और समय सेट करना होटल स्टाफ के लिए एक और जिम्मेदारी बन जाती है. बड़े होटलों में हजारों कमरे होते हैं, ऐसे में घड़ियों का रखरखाव भी खर्च बढ़ाता है. इसलिए होटल मैनेजमेंट इसे हटाकर काम आसान कर लेता है.
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