
Jaisalmer Best Tourist Destinations पाकिस्तान सरहद पर बसा जैसलमेर जिला ना सिर्फ अपनी भौगोलिक सीमा के लिए जाना जाता है बल्कि यहां की स्थापत्य कला, लोक संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरें भी देशी-विदेशी पर्यटकों का मन मोह लेती है. रेत के धोरे, पीले पत्थरों की हवेलियां और ऊंटों की कूच से गूंजते रास्ते इस शहर को अनोखा बनाते हैं. यहां सालोंभर देसी-विदेशी पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता हैं. यदि जैसमेर आने का प्लान है तो यहां के ऐतिहासिक धरोहर को देखना न भूलें.

जैसलमेर का सोनार किला, जहां पत्थरों में भी शौर्य बसता है. सोनार किला 1156 ईस्वी में भाटी राजपूत शासक रावल जैसल द्वारा बनाया गया था. पीले बलुआ पत्थर से निर्मित यह किला सूर्यास्त के समय सोने की तरह चमकता है. इसलिए इसे सोनार किला कहा जाता है. यह देश का एकमात्र जीवित किला है, जहां आज भी सैकड़ों परिवार निवास करते हैं. यह किला 1500 फीट लंबा, 750 फीट चौड़ा और 250 फीट ऊंचे पहाड़ पर बना हुआ है.

पटवा की हवेली की दीवारें भी बातें करती है. पटवा हवेली जैसलमेर किले के बाद जैसलमेर में दूसरा सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र है. इसे ब्रोंकेड व्यापारियों की हवेली के रूप में भी जाना जाता है. पटवा हवेली का निर्माण 5 दशकों में पूरा हुआ था. इसे पांच भाइयों ने अपने-अपने हिस्से का निर्माण करवाया था. इस हवेली में प्रवेश के लिए भारतीय नागरिकों के लिए 20 रुपये प्रति व्यक्ति और विदेशी मेहमानों के लिए 100 रुपये प्रति व्यक्ति शुल्क रखा गया है.

राजा गड़सी द्वारा बनाया गया गड़ीसर तालाब जैसलमेर शहर के लिए कभी जीवन रेखा हुआ करता था. अब यह पर्यटकों से गुलजार रहता है. यहां नाव की सवारी के साथ-साथ चारों ओर बने छतरी और मंदिर हर किसी का मन मोह लेते हैं. इस झील पर कई सारी जुलूस, गणगौर उत्सव, तीज और जल महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है.

कुलधरा जैसलमेर ज़िले में स्थित एक शापित और रहस्यमयी गाव है, जिसे भूतों का गांव भी कहा जाता है. यहां हज़ारों की संख्या में लोग घूमने आते है. यहां स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि देश एवं विदेश से भी पयर्टक भूतिया गांव को देखने के लिए आते है. यह जैसलमेर से करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित है. यहा गांव आज भी खंडहर हालत में अपनी दुर्दशा का शिकार हो रहा है.

कभी जैसलमेर के दीवान रहे सालिम सिंह द्वारा बनवाई गई यह हवेली अपनी अनोखी छत और मोर के गले जैसी झुकी हुई छज्जों के लिए मशहूर है. स्थानीय लोग इसे “मोर छतरी हवेली” भी कहते है. यह बस स्टैंड से महज 5 किलोमीटर दूर है. सालिम सिंह की हवेली सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक पर्यटकों के लिए खुली रहती है. भारतीय पर्यटक के लिए प्रवेश शुल्क 20 रुपये है जबकि विदेशी मेहमानों के लिए 100 रुपये है.

जैसलमेर से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित सम के मखमली धोरे ऊंट की सवारी, लोक संगीत, कालबेलिया नृत्य और सुनहरी रेत पर ढलता सूरज हर किसी को अलग ही सुकून का अहसास करवाता है. यहां आने वाले पर्यटकों को जीवन भर याद रहता है. यहां टूरिस्ट को पक्के होटल की बजाय लग्जरी टेंट में ठहराया जाता है. इस रेत के समंदर में रेगिस्तान के जहाज की सवारी करने का आनंद उठाने की हर किसी की चाहत होती है. रेत के आगोश में सूर्यास्त देखते ही फोटोग्राफी करने को हर कोई बेताब नजर आता है. यह हर दिन पर्यटकों से गुलजार रहता है.

जैसलमेर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित लोद्रावा गांव में प्राचीन जैन मंदिर स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण है. कहा जाता है कि यहां रेत में छिपी हुई कई और मूर्ति और मंदिर है जो समय के साथ पुनः खोजे जा रहे हैं. अगर आप भी कभी जैसलमेर घूमने के लिए आ रहे हो तो इस गांव में जरूर आए. पर्यटकों को यहां के मंदिर की बनावट जरूर पसंद आती हैं.

तनोट माता मंदिर जैसलमेर शहर से लगभग 120 किलोमीटर दूर स्थित है. सड़क मार्ग से यहां पहुंचने में करीब 2 घंटे से अधिक समय लगता है. 1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान तनोट माता पर हुई गोलाबारी को 1997 की बॉलीवुड युद्ध फिल्म बॉर्डर में भी दर्शाया गया है. इस मंदिर में बीएसएफ जवान सुबह शाम पूजा पाठ करते हैं. इतना ही नहीं इसे रुमालो वाली देवी भी कहा जाता है, क्योंकि यहां मन्नत का रुमाल बांधा जाता है.
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