
देवभूमि उत्तराखंड की गोद में बसा आदि कैलाश न केवल आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्राकृतिक सुंदरता का अद्वितीय उदाहरण भी है. यह वही पवित्र स्थल है, जिसे पांडवों की स्वर्ग यात्रा का मार्ग माना जाता है. यह कैलाश मानसरोवर की भांति धार्मिक महत्व रखता है. आइए देखते है पांडवों से जुड़ा इतिहास और इस जगह की खासियत…….. (फोटो साभार: सागर देवराड़ी)

आदि कैलाश को ‘छोटा कैलाश’ भी कहा जाता है, जो शिवभक्तों के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल है. यह स्थान धार्मिक मान्यता के अनुसार पांडवों की स्वर्ग यात्रा का अंतिम मार्ग माना जाता है. भगवान शिव के निवास स्थान के रूप में प्रतिष्ठित इस स्थल का आध्यात्मिक वातावरण मन को शांति और आत्मा को सुकून देता है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां पहुंचे थे, तो उन्होंने भी इस अनुभव को “मन को छू लेने वाला” बताया था. यहां की ऊंची हिमालयी चोटियां, बर्फ से ढकी वादियां और मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य इसे एक दिव्य स्थल बनाते हैं.

साल 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदि कैलाश यात्रा ने इस क्षेत्र को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि वैश्विक मान्यता दिलाई. उनके वहां पहुंचने के बाद लोगों का ध्यान इस अद्भुत स्थल की ओर गया. पीएम मोदी ने यहां न केवल दर्शन किए, बल्कि ध्यान में भी लीन रहे. उनका यह आध्यात्मिक जुड़ाव न सिर्फ युवाओं को बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी यहां आने के लिए प्रेरित कर रहा है. पीएम की यात्रा के बाद आदि कैलाश की पवित्रता के साथ-साथ यहां के ट्रैकिंग मार्ग, सुरक्षा और सुविधा व्यवस्था में भी तेजी आई है. अब यह जगह सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि साहसिक पर्यटन का केंद्र भी बन चुकी है.

नैनीताल से आदि कैलाश की यात्रा लगभग 350–370 किलोमीटर लंबी है, जो भक्ति और रोमांच से भरी होती है. यह मार्ग नैनीताल–पिथौरागढ़–धारचूला–गुंजी–नाभीढ़ांग होते हुए आदि कैलाश पहुंचता है. रास्ता ऊबड़-खाबड़ और पहाड़ी है, जिसमें साहसिक ट्रैकिंग, नदियों के किनारे और घने जंगलों से गुजरना पड़ता है. इस यात्रा में ITBP (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) और अनुभवी स्थानीय गाइड यात्रियों को सुरक्षा और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं. यात्रा के दौरान हर पड़ाव पर नई प्राकृतिक छटा देखने को मिलती है, जो थकान को आनंद में बदल देती है. यह मार्ग श्रद्धालुओं के लिए जीवन का अनुभव बन जाता है.

आदि कैलाश के समीप स्थित ओम पर्वत को देखकर हर कोई चकित रह जाता है. इस पर्वत पर ‘ॐ’ की प्राकृतिक आकृति बनी है, जो स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. यह आकृति बर्फ और चट्टानों की रचना के कारण बनी है, लेकिन इसकी वास्तविकता आज भी रहस्य बनी हुई है. वैज्ञानिक भले इसे प्राकृतिक संयोग मानें, लेकिन श्रद्धालु इसे ईश्वर का संकेत मानते हैं. ओम पर्वत भारत-तिब्बत सीमा के पास स्थित है और यह क्षेत्र सुरक्षा की दृष्टि से भी संवेदनशील है, इसलिए यात्रा केवल विशेष अनुमति और गाइड के साथ संभव है. यह पर्वत आस्था और प्रकृति की विलक्षणता का अद्भुत संगम है.

पिथौरागढ़ जिले की दारमा घाटी और पंचाचूली पर्वत श्रृंखला आदि कैलाश यात्रा का एक और आकर्षण हैं. यहां के दृश्य इतने मनोहारी हैं कि सैलानी अपने कैमरे से हट ही नहीं पाते. पंचाचूली हिमालय की पांच चोटियों का समूह है, जिसे सूर्य की पहली किरण जब छूती है, तो वह नज़ारा स्वर्गिक लगता है. यहीं से बेस कैंप शुरू होता है, जो ट्रैकिंग प्रेमियों के लिए आदर्श स्थल है.

गबर्यांग व्यास घाटी उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित एक और दुर्लभ स्थल है, जो भारत और नेपाल की सीमा पर बहने वाली काली नदी के कारण चर्चित है. यह घाटी न केवल भौगोलिक रूप से खास है, बल्कि इसमें मौजूद प्राकृतिक दृश्य मन मोह लेते हैं. घाटी से हिमालय की ऊंची चोटियां, बर्फ से लदी पहाड़ियां और नदी की कलकल ध्वनि इसे एक शांत और सुरम्य स्थल बनाती हैं. यात्रा के दौरान जब श्रद्धालु इस घाटी से गुजरते हैं, तो उन्हें यहां की हवा और नज़ारे खुद में एक आध्यात्मिक स्पर्श लिए प्रतीत होते हैं.
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