
गर्मियों की छुट्टियां चल रही है, लोग घूमने निकल रहे हैं. उत्तर भारत में बहुत सारे लोग नैनीताल निकल लेते हैं तो किफायती विदेश यात्रा के लिए स्पेन को मुफीद पाते हैं. तभी तो दोनों सैलानियों के बोझ से हांफ रहे हैं.

हाइलाइट्स
- स्पेन और नैनीताल दोनों सैलानियों के बोझ से दबे
- स्पेन में 2024 में 9 करोड़ सैलानी पहुंचे थे
- नैनीताल में ओवर टूरिज्म से कुदरत को नुकसान हो रहा
हाथियों में एक खूबी होती है. उनकी याददाश्त उनके डीएनए में होती है. मतलब ये कि उन्हें पीढ़ियों से रास्तों का पता रहता है. जिस रास्ते दादा परदादा कभी गए थे, वे भी उसी राह को चुनते हैं. अब राह में आदमियों की बस्ती पड़े तो उनका क्या. खुशबूदार चावल, या अच्छी शराब मिल जाए तो ताकतवर हैं उड़ा ही लेंगे. यही हालत घूमने फिरने की जगहें चुनते वक्त हमारी भी होती है. हम जब परिवार को लेकर कहीं की सैर की सोचते हैं तो आम तौर पर उन्ही जगहों के बारे में सोचते हैं, जहां परिचित, मित्र रिश्तेदार या जानने वाले जा चुके हों. नई जगहें खोजने वाले इक्के-दुक्के ही मिलेंगे. लिहाज अगर हमारी जेब में थोड़े से पैसे होते हैं तो गर्मियों में हम भी पहाड़ जाने की सोचने लगते हैं. इन दिनों इसी सोच से नैनीताल में पर्यटकों का रेला लगा हुआ है. ठहरने की जगहें नहीं मिल रहीं. स्पेन में भी कुछ ऐसा ही आलम है. स्पेन उन देशों में हैं जहां बहुत ही दिलकश नजारे हैं और घूमना बहुत सारे देशों की तुलना में सस्ता भी पड़ता है.
एक आंकड़े के मुताबिक 2024 में स्पेन में 9 करोड़ सैलानी पहुंचे थे. ये वो मुल्क है जिसकी आबादी 5 करोड़ से भी नहीं है. यानी आबादी के दूने लोग घूमने पहुंच गए. सैलानी एक साथ नहीं पहुंचे होंगे ये सही है लेकिन बार्सिलोना में लोग इस भीड़ से इतना खफा हुए कि उन्होंने बाकायदा जमा होकर नारे तक लगाए- ‘सैलानियों अपने घर जाओ.’ सैलानियों के आने से निश्चित तौर पर वहां के लोगों को फायदा भी हो रहा होगा, लेकिन इससे नुकसान अलग तरह का होता है. घरों की कीमतें और भाड़े बढ़ गए है. स्पेन के तमाम शहरों में लोगों ने अपने रहने भर का जुगाड़ करके घर के बाकी हिस्से को सैलानियों को किराए पर दे रखा है. लोकल निवासियों को हर जगह किसी भी तरह की सुविधा के लिए सैलानियों की भीड़ से मुकाबिल होना पड़ रहा है. ऊपर से सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने खूबसूरत जगहों को इतना मशहूर कर दिया कि लोग आते ही जा रहे हैं. कुदरती चीजों पर इसका खराब असर पड़ रहा है. समुद्री तटों और जंगलों को नुकसान हो रहा है. ऊब कर मालोर्का ने अब इन्फ्लुएंसर प्रचार पर पाबंदी लगाई, ताकि कुदरत को बचाया जा सके.
नैनीताल में सिसकती झील और बेहाल होते पहाड़
अब बात करे झीलों के शहर नैनीताल की. कुदरती सुंदरता से लबरेज तालों की ये रानी भी ओवर टूरिज्म की मार झेल रहा है.गर्मियों में दिल्ली-एनसीआर और पंजाब के नजदीकी शहरों से तो लोग वहां के लिए वीकेंड पर टूर प्लान कर ही लेते हैं. दूरदराज से भी बहुत से लोग अंग्रेजों के टाइम से खास रहे इस शहर को रुख कर लेते हैं. देश के आम टैंपरेचर की तुलना में यहां मौसम भी बेहद खुशगवार होता है. पूरी गर्मियां यहां रोजाना हजारों सैलानी नैनी झील,नैना देवी मंदिर,और स्नो व्यू की सैर को आते हैं. माल रोड पर पैर रखने की जगह नहीं मिलती.गाड़ियों की लाइनें किलोमीटर तक लग जाती हैं.नैनीताल में पार्किंग पा लेना होटल पा लेने से कम अहम नहीं होता. लोकल शहरियों को ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझना पड़ता है.
इस भीड़ का असर सीधे कुदरत पर पड़ा है. अब से डेढ़ दो दशक पहरले तक नैनीताल के घरों गेस्टहाउसों और होटलों में पंखे तक नहीं होते रहे. अब होटल एसी लगा रहे हैं. पंखे खूब बिक रहे है. ये आलम वहां जरुरत से ज्यादा भीड़ बढ़ने की वजह से हुआ है. नैनी झील में कचरा, प्लास्टिक, और प्रदूषण बढ़ रहा है.होटलों और गेस्टहाउस की बेतहाशा बढ़ोतरी से जंगल और पहाड़ों को नुकसान हो रहा है.स्थानीय लोग शिकायत करते हैं कि टूरिस्टों की भीड़ ने उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को चौपट कर दी है. बारिश में भूस्खलन और ट्रैफिक जाम ने हालात और मुश्किल कर दिए.
हल क्या है ?
स्पेन और नैनीताल दोनों के सामने एक जैसी चुनौतियां हैं. स्पेन में सरकार ने टूरिस्ट टैक्स बढ़ाया और शॉर्ट-टर्म रेंटल्स पर सख्त नियम बनाए.मालोर्का में अब टूरिस्टों की संख्या सीमित करने की बात हो रही है.नैनीताल में भी कुछ ऐसा करना होगा.मिसाल के तौर पर सैलानियों की संख्या पर कैप लगाना होगा. इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने की योजनाएं बनानी होगी. इसके साथ ही शहर को बचाने के लिए कचरा प्रबंधन को बेहतर करना ज़रूरी है.स्थानीय लोगों को टूरिज्म से फायदा तो मिले, मगर उनकी ज़िंदगी पर बोझ न पड़े. तभी झील और पहाड़ों के दिलकश शहर को बचाया जा सकेगा और तभी शानदार तटीय नजारों वाले स्पेन की खूबसूरती को भी बचाया जा सकता है.
करीब ढाई दशक से सक्रिय पत्रकारिता. नेटवर्क18 में आने से पहले राजकुमार पांडेय सहारा टीवी नेटवर्क से जुड़े रहे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद वहीं हिंदी दैनिक आज और जनमोर्चा में रिपोर्टिंग की. दिल…और पढ़ें
करीब ढाई दशक से सक्रिय पत्रकारिता. नेटवर्क18 में आने से पहले राजकुमार पांडेय सहारा टीवी नेटवर्क से जुड़े रहे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद वहीं हिंदी दैनिक आज और जनमोर्चा में रिपोर्टिंग की. दिल… और पढ़ें
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