
लैढौर में देखने वाली जगह
Landour
चार दुकान-चार दुकान नाम से ही पता चलता है कि यह लैंडौर में चार दुकानों की एक पंक्ति है. चार दुकान लैंडौर लैंग्वेज स्कूल में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की घरेलू जरूरतों को पूरा करती है. यहां की सारी दुकानें खाने-पीने की चीजें और पहाड़ी स्वाद वाले स्नैक्स व पेय जैसे गरम चाय-कॉफी, मैगी, पकौड़े, पराठे, पास्ता और बुन ऑमलेट्स देती हैं. प्रसिद्ध अनिल्स कैफे और टिप टॉप टी शॉप चार दुकान में 50 से ज्यादा वर्षों से हैं और ये अपने यहां आए सेलिब्रिटीज़ पर गर्व करते हैं.
Landour
रसकिन बॉन्ड का घर-रसकिन बॉन्ड ब्रिटिश वंश के भारतीय लेखक हैं जो लैंडौर में रहते हैं. वे बाल साहित्य के लिए प्रसिद्ध हैं. उनका घर अपर चुकार से नीचे एक तीव्र ढलान पर स्थित है. उन्हें उनके घर के आसपास देखा जाता है, इसलिए लोग उनसे मिलने की कोशिश करते हैं. हालांकि वे 90 साल के हो चुके हैं और सीमित लोगों से मिलते हैं. उनका घर सुंदर और रंगीन बीएनबी डोमा इन के पास है.
जबर्खेत नेचर रिजर्व-जबर्खेत नेचर रिजर्व भारत का पहला निजी रिजर्व है जो जबर्खेत गांव में स्थित है और प्रकृति प्रेमियों के लिए लैंढौर का सबसे अच्छा स्थान है. यह लैंडौर से 5 किलोमीटर दूर है. यहां कई तरह के वन्यजीव रहते हैं जैसे पक्षी, स्तनधारी और कीड़े-मकोड़े. प्रबंधन यहां गाइडेड वॉक का आयोजन करता है. यह 2-3 घंटे का ट्रेक होता है जिसमें कोई बाघ, भालू, साही, लंगूर और हिरन देख सकता है. दुर्भाग्य से हमें वन्यजीव नहीं दिखे लेकिन उनके मोशन-सेंसर कैमरों में कुछ देखे.
लैढौर मसूरी से महज साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी पर है. लैंडौर मसूरी बाजार से चार दुकान इलाके तक एक सपनों जैसी सैर है जहां उत्साही लोग पैदल भी जा सकते हैं. पैदल जाने में 40 मिनट से एक घंटे तक का वक्त लग सकता है. इस यात्रा के दौरान आपको अद्भुत आनंद की प्राप्ति होगी. यह रास्ता आपको देवदार के जंगलों से होकर घुमावदार पगडंडी पर ले जाएगा जहां से निकलते हुए पहाड़ों की खुशबू और चारों ओर की खूबसूरत नज़ारा आप कभी नहीं भूल पाएंगे.
लैढौर का इतिहास
लैढौर को अंग्रेजों ने बसाया था. पहली बार यह 1825 में अंग्रेज सेना के एक कैप्टन फ्रेडरिक ने यहां एक घर बनवाया था. फ्रेडरिक ने ही मसूरी की खोज की थी. वे पहले गोरखा बटालियन के कमांडेंट भी थे जिसे ब्रिटिशों ने गोरखा युद्ध में जीत के बाद बनाया था. यह घर गर्मियों में उनके परिवार के लिए ठहरने की जगह हुआ करता था. 1827 में इसे ब्रिटिश आमी के लिए कई घर बनवाए गए. यह जगह सेना के इलाज और आराम के लिए उपयोग की जाने लगी. यहां अस्पताल भी बनाए गए. इसलिए लैंडौर का बड़ा हिस्सा छावनी क्षेत्र है. आज यहां रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट (ITM) है. ब्रिटिश अस्पताल 1947 के बाद बंद हो गया. 1857 के बाद अंग्रेजों के खिलाफ उबल रहे गुस्से के कारण कुछ अंग्रेज परिवार यहां आकर बस गए. यहां अमेरिकी मिशनरी भी आए. कई पीढ़ियों तक अमेरिकी मिशनरियों के बच्चे वुडस्टॉक स्कूल में पढ़े या लैंडौर में जन्मे. हाल के वर्षों में उनके वंशज इस जगह को देखने आ रहे हैं. आजादी के बाद यह जगह इंडियन आर्मी की हो गई लेकिन कई अंग्रेज परिवार जो आजादी के बाद यहां रह गए उनमें से कुछ आज भी हैं.
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