
Ghost Villages in Uttarakhand : टूरिस्टों के लिए उत्तराखंड ड्रीम डेस्टिनेशन बन गया है. शहरों में इतनी भीड़ हो जाती है कि पैर रखने की जगह नहीं है, जबकि यहां कई गांव वीरान पड़े हैं. अब उनमें ‘भूतों का डेरा’ है.

टिहरी जनपद का गनगर ऐसे ही गांवों में शामिल हैं. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, उत्तराखंड की करीब 40 फीसद आबादी ने पलायन करते हुए शहरों और दूसरे देशों का रुख किया. पलायन का दंश झेलते इन घोस्ट विलेज में वीरान पड़े घर खंडहर बन चुके हैं.

टिहरी जनपद की दूरस्थ विधानसभा घनसाली का एक सीमांत गांव गनगर है, जो कभी ‘सेठों के गांव’ के तौर पर मशहूर था. यहां राजा का अनाज भी सुरक्षित रहता था, लेकिन अब यह खंडहर बन चुका है. गनगर की कहानी उत्तराखंड में पलायन की भयानक तस्वीर दर्शाती है.

टिहरी निवासी शार्दुल बताते हैं कि केमरपट्टी के सेठ गंगाराम के नाम से गनगर गांव का नाम पड़ा था, जहां के कोठारों में राजा का अनाज रखा जाता था. इसका मतलब है कि यह बड़ा अनाज भंडार था और इसलिए यहां के सेठों की टिहरी नरेश से सीधी पहचान थी. वक्त के साथ-साथ राजशाही चली गई. स्थानीय लोगों के मुताबिक, कभी 250 परिवारों तक का गांव रहा गनगर खाली होकर घोस्ट विलेज बन गया है .

पलायन की यह भयानक तस्वीर न सिर्फ टिहरी के गनगर की है बल्कि उत्तराखंड के लगभग हजारों गांव वीरान हुए पड़े हैं. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के समय उन्होंने पलायन आयोग का गठन किया था लेकिन अब तक इस पर किसी भी सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं. नतीजन आज हजारों गांव खाली हो चुके हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तराखंड के 1,034 गांव घोस्ट विलेज घोषित किए गए थे.

इसके बाद उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं निवारण पलायन आयोग के सर्वे में इनकी संख्या बढ़ गई, आयोग ने साल 2018-22 तक के आंकड़े दिए थे, जिसमें इन घोस्ट विलेज की संख्या बढ़कर 1,792 हो गयी. तकरीबन 2 हजार गांव ऐसे हैं जिनके घरों पर ताला है. किन्हीं खास अवसरों पर ही यहां के दरवाजे खुलते हैं.

उत्तराखंड के पहाड़ों पर अब लोग कम रहते हैं इसीलिए कृषि भी नहीं हो पाती है. इससे कृषि क्षेत्र भी सिमटता जा रहा है. 2001 से अब तक लगभग 70 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर हो चुकी है.

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