
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दहेज हत्या के दोषी बलजिंदर सिंह को आत्मसमर्पण से छूट देने से इनकार कर दिया। बलजिंदर सिंह ने दावा किया था कि वह पिछले 20 सालों से राष्ट्रीय राइफल्स में ब्लैक कैट कमांडो है और “ऑपरेशन सिंदूर” में भी शामिल रहा है, इसलिए उसे व
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। जस्टिस उज्जल भुयान और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी।
बलजिंदर सिंह ने यह अपील पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ की थी जिसमें उसकी 10 साल की सजा बरकरार रखी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि यह कोई सामान्य मामला नहीं है, बल्कि एक “गंभीर और अमानवीय हत्या” का मामला है, इसलिए कोई राहत नहीं दी जा सकती।

पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट।
न्यायालय ने की सख्त टिप्पणी
वकील ने आत्मसमर्पण से छूट की मांग करते हुए कहा कि बलजिंदर ऑपरेशन सिंदूर का हिस्सा रहा है और पिछले 20 साल से ब्लैक कैट कमांडो के रूप में राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात है। ये सुनते ही जस्टिस भुयान ने साफ कहा कि इससे आपको घरेलू अत्याचार करने की छूट नहीं मिल जाती। यह तो दिखाता है कि आरोपी शारीरिक रूप से कितना सक्षम था और किस तरह से पत्नी की गला घोंट कर हत्या की गई।
पीठ ने कहा कि यह 6 महीने या 1 साल की सजा जैसा मामला नहीं है, जहां छूट दी जा सके। जस्टिस चंद्रन ने कहा- हाईकोर्ट ने आपकी अपील खारिज कर दी है। आप सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ विशेष अनुमति के लिए आए हैं। हम SLP पर नोटिस तो जारी कर सकते हैं, लेकिन आत्मसमर्पण से छूट नहीं देंगे।
कोट ने सुनाया सख्त आदेश
कोर्ट ने कहा- हम आत्मसमर्पण से छूट की मांग खारिज करते हैं। विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया जाता है, जिसकी अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद होगी। हालांकि, याचिकाकर्ता को आत्मसमर्पण के लिए दो सप्ताह की मोहलत दी गई है।
जानें क्या था मामला
जुलाई 2004 में अमृतसर की एक अदालत ने बलजिंदर सिंह को दहेज हत्या (IPC की धारा 304-B) में दोषी ठहराया था। यह वारदात 18 जुलाई 2002 को हुई थी, जब उसकी शादी को सिर्फ दो साल हुए थे।
मृतका के भाई और भाभी ने अदालत में गवाही दी थी कि जब वे सुबह 9 बजे उसकी ससुराल पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि बलजिंदर और उसके पिता मिलकर उसकी पत्नी का गला चुन्नी से घोंट रहे थे, जबकि सास और ननदें उसके हाथ-पैर पकड़े हुए थीं।
चार सह-आरोपियों को बरी किया गया
जांच में आया कि मृतका की मौके पर ही मौत हो गई। सुनवाई में चार सह-आरोपियों को बरी कर दिया गया, लेकिन बलजिंदर को दोषी ठहराया गया। हाईकोर्ट ने अपील लंबित रहने तक उसकी सजा पर रोक लगा दी, जिसके चलते वह करीब 17 साल से जेल से बाहर था।
मई 2025 में हाईकोर्ट ने अंतिम फैसला देते हुए उसकी अपील खारिज कर दी और सजा बहाल रखी।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था- यह मामला वैवाहिक जीवन में दहेज की मांग को लेकर महिला के उत्पीड़न और अंततः गला घोंट कर की गई हत्या से संबंधित है। यह अपराध न केवल व्यक्तिगत गरिमा के विरुद्ध है, बल्कि सामाजिक चेतना के भी खिलाफ है।
Discover more from हिंदी न्यूज़ ब्लॉग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.