सैम वॉलटन एक ऐसा नाम है जिसने अपने मेहनत, सोच और समझदारी से खुद की जिंदगी को बदल डाला और साथ ही एक ऐसी कंपनी की नींव रखी, जो आज दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल चेन बन चुकी है. इस रिटेल चेन का नाम है वॉलमार्ट. दिसंबर 2024 तक वॉलटन परिवार की कुल संपत्ति करीब 432.4 अरब डॉलर हो चुकी है. यह संपत्ति दुनिया के सबसे अमीर आदमी एलन मस्क की नेटवर्थ से भी अधिक है. खाड़ी देशों के राजघरानों को अब तक सबसे अमीर माना जाता था, लेकिन वॉलटन फैमिली की संपत्ति ने उन राजघरानों को भी पीछे छोड़ दिया. वॉलमार्ट फैमिली अब हर मिनट लगभग 3 करोड़ रुपये कमा रही है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल चेन की शुरुआत एक ऐसी दुकान से हुई थी, जहां शुरुआत में नमक और हल्दी बिकती थी.
यह कहानी है एक छोटे किसान परिवार में जन्मे सैम वॉलटन की, जिन्होंने गांवों और छोटे शहरों को ध्यान में रखते हुए सस्ते और अच्छे सामान की दुकानें शुरू कीं और उन्हें दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा दिया. सैम वॉलटन का जन्म 29 मार्च 1918 को ओक्लाहोमा के एक छोटे से शहर किंगफिशर में हुआ था. बचपन में ही उन्होंने अखबार बांटना, दूध बेचना और मैगजीन की मैंबरशिप बेचने जैसे छोटे-मोटे काम किए. हाई स्कूल में उन्हें “मोस्ट वर्सेटाइल बॉय” (सबसे योग्य लड़का) कहा गया. उन्होंने 1940 में यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी से इकनॉमिक्स की पढ़ाई की और फिर जे.सी. पेनी नामक रिटेल कंपनी में नौकरी शुरू की. यहां उन्हें सिर्फ 75 डॉलर महीना मिलता था. द्वितीय विश्व युद्ध में सेना में सेवा देने के बाद उन्होंने 1945 में 25,000 डॉलर के कर्ज से एक छोटी दुकान खरीदी. यह पैसा उन्होंने अपनी पत्नी हेलेन की बचत और कुछ उधार से जुटाया था.
कहां से हुई वॉलमार्ट की शुरुआत
सैम वॉलटन की शुरुआती रिटेल यात्रा इनोवेशन से लबालब थी. उन्होंने अर्कांसस के न्यूपोर्ट शहर में एक छोटे से स्टोर को अपनी नई सोच से बड़ी सफलता पाई. सैम का मानना था कि यदि सामान कम कीमत पर बेचा जाए और ज़्यादा मात्रा में बिक्री हो, तो अच्छा मुनाफा होगा. इसी विचारधारा ने उनके कारोबारी सफर की दिशा तय की.
1960 के दशक की शुरुआत तक सैम और उनके भाई जेम्स “बड” वॉलटन ने मिलकर 15 बेन फ्रैंकलिन स्टोरों की एक छोटी चेन चला ली थी. इन स्टोर्स के जरिए उन्हें छोटे शहरों के उपभोक्ताओं की जरूरतों और बाजार की समझ मिली. सैम ने कंपनी के सामने एक प्रस्ताव रखा कि छोटे कस्बों में डिस्काउंट स्टोर्स की एक चेन खोली जाए, लेकिन बेन फ्रैंकलिन कंपनी ने इस विचार को नकार दिया.
नकारे जाने के बाद सैम को लगने लगा कि उन्हें अपनी राह अलग करनी होगी. उन्होंने रिस्क उठाते हुए अपनी खुद की डिस्काउंट रिटेल चेन शुरू करने का फैसला लिया. यही वह समय था, जब वॉलमार्ट की नींव पड़ी. 2 जुलाई 1962 को उन्होंने अर्कांसस राज्य के रॉजर्स शहर में पहला वॉलमार्ट स्टोर खोला. उनका मकसद था – बिना किसी तामझाम के, ग्राहकों को कम दामों में हर चीज देना. यहां कपड़े, घरेलू सामान, खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक्स सब कुछ मिलता था. और वह भी थोक के दाम पर. उन्होंने स्टोर खोलने के साथ ही बड़े गोदाम बनाए और ऐसी व्यवस्था बनाई कि हर स्टोर एक दिन के अंदर माल मंगा सके. इस सिस्टम को बाद में “वॉलमार्ट इफेक्ट” कहा गया.
कैसे-कैसे फैला बिजनेस
पहला स्टोर खुलने के 7 साल बाद 1969 तक वॉलटन परिवार के पास 18 स्टोर थे और सालाना बिक्री 3 करोड़ डॉलर से ऊपर पहुंच चुकी थी. 1970 में वॉलमार्ट ने शेयर बाजार में कदम रखा और पूंजी जुटाकर तेजी से विस्तार किया. 1979 तक कंपनी के 276 स्टोर थे और बिक्री 1 अरब डॉलर पार कर चुकी थी. 1980 के दशक में सैम वॉलटन ने ‘सैम्स क्लब’ जैसी मेंबरशिप आधारित दुकानें भी शुरू कीं. फिर 1988 में पहला सुपर सेंटर खोला, जिसमें किराना और सामान्य वस्तुएं दोनों मिलती थीं.
टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल
सैम वॉलटन का मंत्र था- हर दिन कम कीमतें (Everyday Low Prices). उन्होंने तकनीक का भी भरपूर उपयोग किया. 1970 के दशक में वॉलमार्ट ने कम्प्यूटरीकृत बिलिंग सिस्टम शुरू किया और 1987 में अमेरिका का सबसे बड़ा निजी सैटेलाइट नेटवर्क स्थापित किया, जिससे हर स्टोर कंपनी के मुख्यालय से जुड़ गया. 1990 तक वॉलमार्ट ने अमेरिका की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी सीयर्स (Sears) को पीछे छोड़ दिया और फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने स्टोर खोलने शुरू किए. आज वॉलमार्ट के दुनिया भर में 10,500 से ज्यादा स्टोर हैं और यह हर साल 600 अरब डॉलर से ज्यादा की बिक्री करता है.
हर दिन 1.64 अरब डॉलर की सेल
2024 में वॉलमार्ट के शेयरों में 80 फीसदी की जबरदस्त बढ़ोतरी हुई, जिससे वॉलटन परिवार की संपत्ति और तेजी से बढ़ी. कंपनी की औसतन रोज़ाना की बिक्री 1.64 अरब डॉलर के आसपास है, और लाखों लोग हर दिन इसकी दुकानों से खरीदारी करते हैं. ऑनलाइन शॉपिंग में भी वॉलमार्ट ने खुद को स्थापित किया है, और Jet.com जैसी कंपनियों का अधिग्रहण करके अपने डिजिटल कारोबार को और मजबूत किया.
हालांकि कंपनी को कई बार मजदूरों के साथ व्यवहार और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर आलोचना भी झेलनी पड़ी, लेकिन वॉलमार्ट ने पर्यावरण संरक्षण और सौर ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भी सकारात्मक कदम उठाए हैं. सैम वॉलटन ने हमेशा अमेरिका में बने उत्पादों को प्राथमिकता दी और स्थानीय समुदायों से जुड़कर चलने का आदर्श पेश किया.
1992 में दुनिया को कहा अलविदा, अब कंपनी बच्चों के हवाले
1992 में सैम वॉलटन का 74 साल की उम्र में कैंसर से निधन हो गया. उनके पीछे 50 अरब डॉलर की कंपनी और एक ऐसा सिस्टम था, जिसे उनकी पत्नी हेलेन और उनके चारों बच्चों (रॉब, जॉन, जिम और एलिस) ने संभाला. उन्होंने “वॉलटन एंटरप्राइजेस” नाम की एक फैमिली होल्डिंग कंपनी के जरिए वॉलमार्ट में अपनी हिस्सेदारी को संभाला, जिससे परिवार की संपत्ति सुरक्षित रही.
कितना दान, कितनी संपत्ति
सैम और हेलेन द्वारा 1987 में शुरू की गई वॉलटन फैमिली फाउंडेशन आज हर साल 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा का दान करती है, जिसमें शिक्षा, पर्यावरण और सैमाजिक विकास को प्राथमिकता दी जाती है. आर्कांसस यूनिवर्सिटी को 300 मिलियन डॉलर का दान और चार्टर स्कूलों को सहयोग इसका उदाहरण हैं.
फरवरी 2025 तक वॉलटन परिवार की संपत्ति सात लोगों में बंटी है-
- जिम (119 अरब डॉलर)
- रॉब (113.3 अरब डॉलर)
- एलिस (113 अरब डॉलर)
- लुकास (40 अरब डॉलर)
- क्रिस्टी (18 अरब डॉलर)
- ऐन (10.1 अरब डॉलर)
- नैंसी (10.2 अरब डॉलर)
इनकी संपत्ति खाड़ी देशों के राजपरिवारों से भी ज्यादा है. हालांकि अब ये सभी लोग वॉलमार्ट के रोजमर्रा के संचालन में शामिल नहीं हैं, लेकिन परिवार के सदस्य कंपनी के बोर्ड में शामिल हैं. रॉब के दामाद ग्रेग पेनर अब कंपनी के चेयरमैन हैं और CEO डग मैकमिलन सैम वॉलटन की सोच को आगे बढ़ा रहे हैं.
भारत के फ्लिपकार्ट को भी खरीदा
9 मई 2018 को वॉलमार्ट ने भारत की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट में 77 फीसदी हिस्सेदारी 16 बिलियन डॉलर में खरीद ली. यह डील 18 अगस्त 2018 को पूरी हुई और इसने फ्लिपकार्ट का मूल्यांकन करीब 20-22 बिलियन डॉलर तक पहुंचा दिया. इस अधिग्रहण में 2 बिलियन डॉलर की नई इक्विटी फंडिंग भी शामिल थी.
इस डील के बाद फ्लिपकार्ट के सह-संस्थापक सचिन बंसल ने कंपनी से पूरी तरह से एग्जिट लेते हुए अपनी 5.5 फीसदी हिस्सेदारी बेच दी, जिससे उन्हें लगभग 1 बिलियन डॉलर प्राप्त हुए. वहीं, बिन्नी बंसल समूह के सीईओ के रूप में कंपनी में बने रहे. टेनसेंट, टाइगर ग्लोबल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे मौजूदा निवेशकों ने अपनी छोटी हिस्सेदारी को बनाए रखा. हालांकि बाद में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ऐसी भी आईं कि बिन्नी बंसल ने भी अपनी हिस्सेदारी लगभग बेच दी.
यह सौदा वॉलमार्ट के लिए एक रणनीतिक कदम था, ताकि वह भारत के तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स बाजार में अमेज़न को टक्कर दे सके. वॉलमार्ट की मजबूत सप्लाई चेन एक्सपर्टीज़ और फ्लिपकार्ट की तकनीकी क्षमता के मेल से उम्मीद की गई कि वे भारत के उस ई-कॉमर्स बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करेंगे, जिसके 2027 तक 200 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.
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