
सर्वेंद्र विक्रम सिंह पहले इफ्को कंपनी में फील्ड ऑफिसर थे. काम के सिलसिले में वो गांव- गांव घूमते थे. तभी उन्होंने एक बार एक छोटे से कारखाने को देखा, जहां मिट्टी से उपयोगी सामान बनाए जा रहे थे. बस, यहीं से उन्हें आइडिया मिला कि क्यों न खुद का ऐसा ही काम शुरू किया जाए. उन्होंने ठान लिया कि नौकरी छोड़कर कुछ अपना करेंगे. उन्होंने खादी ग्रामोद्योग विभाग से मदद ली, अनुदान मिला और फिर अपना कारखाना शुरू कर दिया.
कारखाने में क्या बनते हैं ?
सर्वेंद्र का ये कारखाना मिट्टी से बना उपयोगी सामान तैयार करता है. इसमें टिफिन, कढ़ाई, कुकर, पानी की बोतल, तवा, रोटी रखने का डब्बा समेत कई घरेलू सामान शामिल हैं. इन सामानों की मांग भी अब धीरे- धीरे बढ़ रही है. ये पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित और सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं.
सर्वेंद्र बताते हैं कि जब उन्होंने ये काम शुरू किया, तो गांव के कई लोगों ने उनका मजाक उड़ाया. “ठाकुर होकर मिट्टी का काम कर रहा है?”, लोगों की ये बातें सुननी पड़ीं. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनका कहना है कि अगर युवा जमीनी स्तर से जुड़कर काम करें, तो सफलता ज़रूर मिलती है. आज वही लोग जो मज़ाक उड़ाते थे, अब तारीफ कर रहे हैं.
आज कमा रहे लाखों रुपए
सर्वेंद्र का कहना है कि वो हर महीने करीब 50,000 से 60,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं. उनके कारखाने में 4 से 5 लोगों को स्थायी रोजगार भी मिला है. उन्होंने “जय हनुमान स्वयं सहायता समूह” से जुड़कर काम को और विस्तार दिया है. उनका सपना है कि आने वाले दिनों में वो और बड़ा कारखाना बनाएं और ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दें.
लोकल18 से बातचीत में सर्वेंद्र ने कहा, “मैं चाहता हूं कि युवा नौकरी के पीछे भागने की बजाय खुद का कुछ करें. जब आप ज़मीन से जुड़कर काम शुरू करते हैं, तो मंज़िल खुद-ब-खुद मिल जाती है. मेहनत कभी बेकार नहीं जाती.”
सर्वेंद्र की सफलता को देख अब स्थानीय प्रशासन भी ऐसे युवाओं को प्रोत्साहित करने में जुटा है. खादी ग्रामोद्योग विभाग ऐसे और भी युवाओं को प्रेरित कर रहा है कि वो स्वरोजगार की दिशा में कदम बढ़ाएं.
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