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- Snan Purnima In Jagannath Puri On 11th June: Lord Will Take Bath With 108 Gold Pots, Will Remain Ill For 15 Days, Rath Yatra Will Be Held On 27th
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ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में 11 जून को स्नान पूर्णिमा मनेगी। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ श्री मंदिर में भक्तों के सामने स्नान करते हैं। पूरे साल में सिर्फ इसी दिन भगवान जगन्नाथ को मंदिर में ही बने सोने के कुंए के पानी से नहलाया जाता है, इसलिए इसे स्नान पूर्णिमा कहते हैं।
स्नान के बाद भगवान बीमार हो जाते हैं और 15 दिन तक किसी को दर्शन नहीं देते। 16वें दिन नवयौवन श्रंगार के साथ दर्शन देते हैं। उसके अगले दिन रथयात्रा पर निकलते हैं। गुंडीचा मंदिर अपनी मौसी के यहां जाते हैं।
जब भगवान बीमार रहते हैं, तब 27 किलोमीटर दूर आलारनाथ मंदिर में दर्शन होते हैं। माना जाता है इन दिनों आलारनाथ मंदिर में दर्शन से भगवान जगन्नाथ के दर्शन का पुण्य मिलता है। आलारनाथ भगवान जगन्नाथ के भक्त थे।
रोज शीशे में भगवान की छवि को स्नान करवाते हैं, ताकि बीमार न हो मंदिर के पुजारी बताते हैं कि सालभर भगवान को गर्भगृह में ही स्नान कराते हैं, लेकिन प्रक्रिया अलग है। इसमें भगवान की मूर्ति के सामने बड़े-बड़े शीशे लगाते हैं। फिर उन शीशों में जो भगवान की तस्वीर दिखती है, उस पर धीरे-धीरे पानी डालते हैं। इस तरह स्नान करवाने की दो वजह हैं।
पहली, भगवान की मूर्ति लकड़ी से बनी है उस पर पवित्र रंगों से आकृति उकेरी गई है। उस पर रोज पानी लगेगा तो प्रतिमा बिगड़ जाएगी।
दूसरी वजह के पीछे मान्यता है कि भगवान बहुत कोमल हैं और उन्हें हर दिन नहलाएंगे तो वे बीमार पड़ सकते हैं।
इसी कारण साल में एक बार रथयात्रा से 16 दिन पहले पड़ने वाली ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर भगवान की प्रतिमाओं को मंदिर से बाहर लाया जाएगा। इसे स्नान यात्रा कहते हैं। मंदिर प्रांगण में मंच तैयार होगा। इसे स्नान मंडप कहते हैं। इसी मंडप में भगवान को विराजित करेंगे।

11 जून, बुधवार को सुबह मंदिर में ही मौजूद स्वर्ण कुआं निगरानी करने वाले सेवादार की मौजूदगी में खुलेगा। वैदिक मंत्रों के साथ स्नान की विधि शुरू होगी। सोने के कुएं के पानी से भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन को सोने के 108 घड़ों से स्नान करवाया जाएगा।
कस्तूरी, केसर और अन्य औषधियों से होता है स्नान स्नान के लिए सोने के 108 घड़ों में पानी भरा जाता है, उनमें कस्तूरी, केसर, चंदन और कई तरह की औषधियां मिलाएंगे। स्नान मंडप में तीन बड़ी चौकियों पर भगवानों को विराजित किया जाएगा। भगवान पर कई तरह के सूती कपड़े लपेटते हैं, ताकि उनकी काष्ठ काया पानी से बची रहे। फिर भगवान जगन्नाथ को 35, बलभद्र जी को 33, सुभद्राजी को 22 घड़ों से नहलाएंगे और बचे हुए 18 घड़े सुदर्शन जी पर चढ़ाएं जाएंगे।
मान्यता: सोने की ईंट वाला कुआं, इसमें सभी तीर्थों का जल होता है यह 4-5 फीट चौड़ा वर्गाकार कुआं है। ये जगन्नाथ मंदिर प्रांगण में ही देवी शीतला और उनके वाहन सिंह की मूर्ति के ठीक बीच में बना है। इसमें नीचे की तरफ दीवारों पर पांड्य राजा इंद्रद्युम्न ने सोने की ईंटें लगवाईं थीं। मंदिर के पुजारियों का कहना है कि इस इस कुएं में कई तीर्थों का जल है। सीमेंट-लोहे से बना इसका ढक्कन करीब डेढ़ से दो टन वजनी है, जिसे 12 से 15 सेवक मिलकर हटाते हैं। जब भी कुआं खोलते हैं, इसमें स्वर्ण ईंटें नजर आ जाती हैं। ढक्कन में एक छेद है, जिससे श्रद्धालु सोने की वस्तुएं इसमें डाल देते हैं।
15 दिनों की अनवसर पूजा: 11 से 25 जून तक बीमार रहेंगे भगवान जगन्नाथ
परंपरा के मुताबिक देवस्नान के बाद भगवान जगन्नाथ को बुखार आ जाता है, इसलिए वो 11 से 25 जून तक किसी को दर्शन नहीं देंगे। बीमार होने पर पर भगवान को मुख्य सिंहासन पर न बैठाकर मंदिर में ही बांस की लकड़ी से बने कक्ष में रखा जाएगा। 15 दिनों तक 56 भोग की जगह औषधियों से युक्त सामग्री, दूध, शहद आदि चीजों का भोग लगता है। इसे ही भगवान की अनवसर पूजा कहा जाता है।
- 16 जून को अनवसर पंचमी पर भगवान के अंगों में आयुर्वेद के विशेष तेल की मालिश होगी। उसे फुल्लरी तेल कहते हैं। माना जाता है कि ये तेल लगाने के बाद भगवान को धीरे-धीरे बुखार से राहत मिलने लगती है।
- 20 तारीख को अनवसर दशमी रहेगी इस दिन भगवान रत्न सिंहासन पर विराजमान हो जाएंगे।
- 21 को भगवान के शरीर पर विशेष औषधियां लगेंगी। उसको खलि लागि कहते हैं।
- 25 तारीख को भगवान के विग्रह को ठीक कर के सजाया जाएगा।
- 26 जून को नव यौवन दर्शन होंगे। इस दिन रथयात्रा के लिए भगवान से आज्ञा ली जाएगी।
- 27 जून को सुबह गुंडिचा रथयात्रा शुरू होगी।
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