
16 साल से कांग्रेस, तीन बार से सांसद
शशि थरूर बीते 16 साल से कांग्रेस में हैं और लोकसभा में तीन बार तिरुवनंतपुरम से सांसद रह चुके हैं. वे अक्सर पार्टी लाइन से अलग जाकर ऐसी बातें करते रहे हैं, जिसे सरकार समर्थक माना जाता है. बात चाहें ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सरकार का समर्थन हो या पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की तारीफ… इसे लेकर वे अक्सर कांग्रेस नेताओं के निशाने पर भी रहते हैं, लेकिन अब तक उन्होंने कांग्रेस से नाता नहीं तोड़ा है. इसकी एक वजह थरूर की राजनीतिक समझदारी भी हो सकती है, जिसके तहत वे खुद को आवाज उठाने वाला लेकिन वफादार’ नेता के रूप में खुद को पेश करना चाहते हैं.
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि थरूर शायद चाहते हैं कि पार्टी कोई अनुशासनात्मक कदम उठाए, ताकि वे ‘शहीद’ की भूमिका में निकलें. ताकि वे कह सकें कि कांग्रेस ने एक ऐसे नेता पर कार्रवाई की है जो देश के बारे में बात करता है. जिसे सिर्फ राष्ट्रहित में बोलने पर सजा मिली. इससे उन्हें न केवल सहानुभूति मिल सकती है, बल्कि भविष्य में किसी और पार्टी के साथ जाने का आधार भी मिल सकता है.
अगर कांग्रेस थरूर को निकालती है तो क्या होगा?
अगर पार्टी थरूर को बाहर का रास्ता दिखाती है, तो यह कांग्रेस के लिए दोहरी मार हो सकती है. एक तो एक कद्दावर, विदेश मामलों में अनुभवी नेता का नुकसान होगा. दूसरा, यह मैसेज जाएगा कि कांग्रेस में असहमति की आवाज नहीं सुनी जाती. ये नेरेटिव कांग्रेस के लिए काफी नुकसानदायक होगा. इससे युवाओं में नाराजगी हो सकती है, जो शशि थरूर को आईकॉन की तरह देखते हैं.
और अगर थरूर खुद छोड़ते हैं तो?
अगर थरूर खुद पार्टी छोड़ते हैं, तो उन्हें दलबदलू या स्वार्थी कहकर निशाना बनाया जा सकता है. कांग्रेस यह प्रचार कर सकती है कि वे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के चलते पार्टी छोड़कर सरकार के पाले में जा रहे हैं. ऐसे में उनकी विश्वसनीयता को झटका लग सकता है. इसलिए थरूर खुद पार्टी नहीं छोड़ना चाहेंगे.
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