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डायरेक्टर तरुण मनसुखानी की फिल्म ‘हाउसफुल 5’ को दर्शक खूब पसंद कर रहे हैं। करण जौहर को फिल्म ‘कुछ कुछ होता है’ और ‘कभी खुशी कभी गम’ में असिस्ट कर चुके तरुण ने करण की ही फिल्म ‘दोस्ताना’ से डायरेक्शन की शुरुआत की। हाल ही में दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान तरण ने ‘कुछ कुछ होता है’ का किस्सा शेयर करते हुए कहा कि एक बार करण जौहर ने उन्हें डांट दिया है। तरुण ने शाहरुख खान से जुड़ा एक किस्सा भी शेयर किया।

सवाल- करण जौहर और आपके बीच प्लीज-थैंक्यू की क्या स्टोरी है, जरा वो बताएं?
जवाब- मैं करण जौहर की फिल्म ‘कुछ-कुछ होता है’ में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर रहा था। जब हम फिल्म बना रहे थे, तब तो किसी को नहीं लगा था कि ये इतनी बड़ी फिल्म बन जाएगी। ये फिल्म जब ब्लॉकबस्टर हुई, तब मैं मेरे दिमाग में सुपरस्टार था। मेरे घर वाले मुझे स्टार की तरह ट्रीट कर रहे थे। उस वक्त मुझे ऐसे लगने लगा कि मैंने ही ये फिल्म बनाई है। बाकी दुनिया बेवकूफ है। इस एटीट्यूड के साथ मैं छह महीने रहा, जब एक दिन करण ने मुझे डांटा दिया। मुझे कहा कि तुम पागल हो गए हो। उन्होंने मुझे बताया कि कोई भी इंसान एक पूरी फिल्म नहीं होता। वो बस फिल्म का एक छोटा सा हिस्सा होता है।
करण ने मुझे एक उदाहरण के साथ समझाया कि कैसे राइटर, प्रोड्यूसर, कैमरामैन, एक्टर्स और सेट के एक-एक इंसान की क्या अहमियत होती है। फिर उन्होंने मुझसे कहा कि आगे से हर शब्द के पहले मैं प्लीज और बाद में थैंक्यू कहूंगा। जैसे अगर मैं सेट पर पानी मांगता तो कहता था कि दादा प्लीज एक पानी दे दो। पानी मिलने के बाद फिर मैं उन्हें थैंक्यू कहता था। आज ये दोनों ही शब्द मेरे लिए इतने नॉर्मल हो गए हैं कि हर चीज के लिए प्लीज-थैंक्यू निकलता है।

तरुण मनसुखानी ने फिल्म ‘दोस्ताना’ से डायरेक्शन में डेब्यू किया था।
सवाल- शाहरुख खान से आपको क्या सीख मिली थी?
जवाब- मैंने ‘दोस्ताना’ की स्क्रिप्ट लिख ली थी, फिल्म के लिए कास्टिंग हो गई थी। शूट शुरू होने के पहले एक शाहरुख ने मुझे बुलाया और कहा कि फिल्म को लेकर तुमने जो भी सोचा है,वो बस एक फीसदी है। 99 फीसदी तुम्हारा काम सेट पर लोगों को हैंडल करना है। अगर तुमने अभी तक करण से ये नहीं सीखा है, तो तुम पिक्चर अच्छी नहीं बना पाओगे। तब मुझे रियलाइज हुआ कि मेरा काम क्या है। डायरेक्शन तो आना ही चाहिए। शाहरुख खान, काजोल, रानी ये सब बड़े स्टार ही इस वजह से हैं कि उन्होंने लोगों को पर्सनल मेमोरी दी है।
सवाल- आपने धर्मा प्रोडक्शन के साथ लंबे समय तक काम किया है। आपको लगता है कि करण जौहर समय से पहले की फिल्म बनाते हैं?
जवाब- हां, बिल्कुल। करण हमेशा से ही एक लेवल पर रिस्क लिया हुआ है। उन्होंने ‘कुछ-कुछ होता है’ में एक अनजान लड़की को लीड में कास्ट किया। वो अपनी पहली फिल्म में शाहरुख-सलमान को साथ लेकर आए। अगली फिल्म ‘कभी खुशी-कभी गम’ में इतनी बड़ी स्टार कास्ट को रख लिया, जो उस वक्त कोई सोच भी नहीं सकता था।
मेरा मानना है कि उन्होंने हर फिल्म में एक हद तक रिस्क लिया हुआ है। ‘कभी अलविदा न कहना’ के दौरान वो बतौर फिल्ममेकर ग्रो कर चुके थे और वो कुछ कहना चाहते थे। वो सिर्फ एक रॉमकॉम या फैमिली फिल्म नहीं थी। बतौर डायरेक्टर वो एक अलग टेक ले रहे थे, जो असिस्टेंट के तौर पर सीखने वाली बात थी कि कहानी कैसे जा रही है। आपको एहसास होता है कि हर चीज ब्लैक एंड वाइट में नहीं होती है। इन दोनों के बीच ग्रे भी होता है। मुझे लगता है कि समय पर होने से अच्छा, समय से आगे रहना होता है।

सवाल- ‘कल हो ना हो’ में कांता बाई के किरदार ने एक चर्चा छेड़ दी थी। इस किरदार को आपकी फिल्म ‘दोस्ताना’ की शुरुआत माना सकते हैं?
जवाब- जी हां, कांता बेन से ही ‘दोस्ताना’ का आइडिया आया। मुझे इस फिल्म से विचार आया कि कांता बेन समलैंगिकता को अपनाया क्यों नहीं? ये सोच अपने आप में एक पूरी कहानी है। मेरे लिए कहानी ये रही कि मां इस बात को क्यों नहीं एक्सेप्ट करती है। अगर आप घर पर कंफर्टेबल नहीं हो सकते तो बाहर कैसे होगे। मेरे लिए ‘दोस्ताना’ का वो सीन सबसे जरूरी था, जिसमें प्रियंका मां को समझाती है। वो कहती है कि भगवान जो भी करता है, सही के लिए करता है। फिर ये कैसे गलत हो सकता है। तब एहसास होता है कि शायद ये गलत नहीं है। मैं अपनी फिल्म के जरिए कोई भाषण नहीं देना चाहता था। मेरी कोशिश थी कि मैं लोगों को एंटरटेन करने के साथ सोचने पर मजबूर करूं।
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