
जब दूल्हा मंडप में फेरे लेने बैठता है, तो वह अपने जूते बाहर उतार देता है. इस मौके का फायदा उठाकर दुल्हन की बहनें और दोस्त मिलकर चुपके से जूते चुरा लेती हैं और कहीं छुपा देती हैं. फिर शादी के बाद जब दूल्हे को जूते चाहिए होते हैं, तब उसे अपनी सालियों से नेग यानी गिफ्ट या पैसे देकर वापस लेने पड़ते हैं. इस रस्म में खूब मस्ती होती है और दोनों पक्षों के बीच मजेदार नोकझोंक होती है.
क्या है इसके पीछे की सोच?
यह रस्म केवल टाइमपास नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक इंटेलिजेंट सोच छुपी है. दुल्हन की बहनें अपने होने वाले जीजा का थोड़ा टेस्ट लेती हैं देखती हैं कि वह सिचुएशन को कैसे हैंडल करते हैं. अगर दूल्हा मुस्कराते हुए, मजाक में नेग देता है और किसी से नाराज नहीं होता, तो यह दर्शाता है कि वह शांत स्वभाव और समझदार इंसान है, जो रिश्तों को दिल से निभाएगा. यह रस्म यह भी दिखाती है कि दूल्हा नए रिश्तों को किस तरह अपनाता है और कितना सहज है नए परिवार के साथ.
कुछ लोक मान्यताओं के मुताबिक, यह रस्म बहुत पुरानी है. कहा जाता है कि सीता माता की सखियों ने भी श्रीराम के विवाह के समय उनके जूते चुराए थे. हालांकि इसका कोई ठोस एविडेंस नहीं है, लेकिन यह किस्सा बताता है कि यह रस्म सदियों से हमारी परंपरा का हिस्सा रही है. इसके अलावा, पुराने जमाने में भी विवाह को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक सामंजस्य का प्रतीक माना जाता था और यह रस्म उसी सोच की झलक देती है.
आज के जमाने में भी क्यों है जरूरी?
आज की मॉडर्न शादियों में सब कुछ परफेक्ट दिखाने की होड़ लगी होती है, लेकिन ऐसी फन भरी रस्में माहौल को रिलैक्स और फ्रेश बना देती हैं. यह रस्म दूल्हा-दुल्हन के बीच तो रिश्ता मजबूत करती ही है, साथ ही सालियों और जीजा जी के बीच भी एक कूल बॉन्डिंग बना देती है. जब दूल्हा खुले दिल से नेग देता है और सभी के साथ मजाक करता है, तो इससे यह जाहिर होता है कि वह नए रिश्तों को भी उतना ही सम्मान देगा जितना अपने परिवार को देता है.
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