
क्या होते हैं असके?
असके जौनसार-बावर, खासकर चकराता क्षेत्र का पारंपरिक व्यंजन है. यह देखने में कुछ-कुछ पिट्ठी या मीठे-पैनकेक जैसे होते हैं. उत्तराखंड के बाकी क्षेत्रों में जहां ‘अरसा’ जैसे व्यंजन चावल के आटे और गुड़ से बनते हैं, वहीं असके का स्वाद थोड़ा अलग और ज्यादा विविधता लिए होता है. कुछ लोग असके को मीठा बनाते हैं, तो कुछ इसे नमकीन रूप में भी पसंद करते हैं. इसे झंगोरा (Barnyard Millet) या चावल के आटे से बनाया जाता है. कई लोग इसे खास तौर से ‘आशु चावल’ ( नया चावल) के आटे का भी इस्तेमाल करते हैं. इसके अलावा इसमें गेहूं का आटा, दही, चीनी, अखरोट और भंगजीर जैसे पौष्टिक तत्व भी मिलाए जाते हैं. खास मौके पर लोग इसे दही और चीनी के साथ नाश्ते में खाना पसंद करते हैं. असके की सबसे खास बात यह है कि इसे पीढ़ियों से पारंपरिक विधि से बनाया जाता है, और यह स्थानीय खाद्य परंपरा का अहम हिस्सा है.
अगर आप अलग-अलग राज्यों के पारंपरिक मीठे व्यंजन ट्राय करने के शौकीन हैं, तो जौनसार-बावर की यह खास डिश “असके” जरूर बनाकर देखें. यह न सिर्फ स्वादिष्ट होती है, बल्कि सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद मानी जाती है. इसे बनाने के लिए आपको चावल का आटा, गेहूं का आटा, अखरोट, भंगजीर के बीज, देसी घी, चीनी या शक्कर और पानी की जरूरत होगी. चावल और गेहूं के आटे को मिलाकर पानी से एक पतला बेटर तैयार किया जाता है.
इसके बाद गैस पर एक तवा गर्म किया जाता है और उस पर थोड़ा देसी घी लगाया जाता है. जब तवा हल्का गर्म हो जाए तो उस पर तैयार बेटर डालकर चारों ओर फैला दिया जाता है. इसे ढककर कुछ सेकेंड पकाया जाता है. इसके बाद इसके ऊपर शक्कर, कटे हुए अखरोट और भंगजीर के दाने डाले जाते हैं और फिर से ढककर कुछ देर तक पकाया जाता है. जब यह हल्का सुनहरा हो जाए तो इसे उतार लिया जाता है और गर्मागर्म परोसा जाता है.
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