
Aalugunda Recipe: गढ़कलेवा में 9 साल से आलुगुंडा बना रहीं मीना धीवर ने लोकल 18 से कहा कि इस पकवान की डिमांड हर रोज होती है. सुबह 10 बजे से ही ग्राहक आने लगते हैं और दोपहर तक इसकी कई प्लेटें बिक जाती हैं.

आलुगुंडा की एक प्लेट 30 रुपये की है.
उन्होंने रेसिपी बताते हुए कहा कि आलुगुंडा बनाने के लिए सबसे पहले आलू को अच्छी तरह उबालकर छील लिया जाता है. इसके बाद उसमें खास तड़का लगाया जाता है, जो इस व्यंजन की पहचान है. इस तड़के में खड़ी धनिया, हरी मिर्च, सरसों, जीरा, सौंफ, मीठा पत्ता यानी करी पत्ता, मूंगफली दाना, हल्दी और नमक का उपयोग होता है. तैयार किए गए आलू मसाले को फिर बेस्ट क्वालिटी के चना बेसन के घोल में डुबोकर गर्म तेल में फ्राई किया जाता है.
30 रुपये में दो आलुगुंडा
गढ़कलेवा में हर दिन करीब 6 किलो चना बेसन की खपत होती है. यहां रोजाना लगभग 30 से ज्यादा प्लेट आलुगुंडा की बिक्री होती है. प्रति प्लेट 30 रुपये में दो नग बड़े साइज के आलुगुंडा परोसे जाते हैं, साथ में टमाटर की खट्टी-मीठी चटनी और तीखा पसंद करने वालों के लिए हरी मिर्च की तीखी चटनी दी जाती है. छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खानपान को बढ़ावा देने वाले इस व्यंजन ने स्थानीय बाजार में अपनी अलग पहचान बना ली है. आलुगुंडा अब केवल एक स्नैक नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ की पहचान बन चुका है. अगर आप रायपुर आएं और गढ़कलेवा नहीं गए, तो समझिए आपकी छत्तीसगढ़ी यात्रा अधूरी रह गई. गढ़कलेवा जैसे स्थल न सिर्फ छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत को सहेज रहे हैं बल्कि नई पीढ़ी को अपने पारंपरिक व्यंजनों से जोड़ने का भी काम कर रहे हैं.
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