
बाकरखानी के बारे में कहा जाता है कि बिना बाकरखानी के बेटियां ससुराल नहीं जातीं. गया में बाकरखानी देकर बेटियों की विदाई की बहुत पुरानी परंपरा है. शादी में 101 से 151 पीस तक बाकरखानी का नेग देकर भेजा जाता है. गया के छत्ता मस्जिद इलाके में दाखिल होते ही बाकरखानी की भीनी-भीनी खुशबू खींचने लगती है. बाकरखानी को बनाने में खूब मेहनत लगती है, तब जाकर इसके स्वाद में मजा आता है.
गया को बाकरखानी की मंडी भी कह सकते हैं. गया की बाकरखानी देश-विदेश में अपने स्वाद के लिए मशहूर है. खास तौर इस इलाके के और बिहार के लोग तो इसे खाते ही हैं साथ ही साथ आसपास के इलाकों में भी ये सप्लाई की जाती है.
बाकरखानी की खासियत यह है कि इसे बहुत दिनों तक लोग अपने-अपने घरों में रखते हैं. हफ्तों तक यह खराब नहीं होती. गरम करने के बाद ताजी बाकरखानी का स्वाद मिलता है. इसे लोग ऐसे भी खाते हैं या नॉनवेज के साथ भी खाना पसंद करते हैं. गया में बाकरखानी बनाने की शुरुआत 100 वर्ष से भी अधिक समय से हो रही है.
छत्ता मस्जिद के पास सुल्तान बाकरखानी काफी मशहूर है और इनके बेकरी में रोजाना 300-400 पीस तैयार किए जाते हैं. इनके यहां तीन तरह के बाकरखानी बनाए जाते हैं, जिसकी कीमत 60, 80 और 120 रुपया है.
अमूमन बाकरखानी को तैयार करने में मैदा का सबसे ज्यादा उपयोग होता है. बाकरखानी तैयार करने वाले सुल्तान बेकरी के कारीगर बताते हैं कि मैदा में चीनी, दूध, इलायची, खोआ, तिल, रिफाइन, नारियल का बुरादा, चेरी, ड्राई फ्रूट आदि को मिलाया जाता है. उसके बाद जरूरत के अनुसार पानी डालकर काफी देर तक गूंथा जाता है.
इसके बाद बेल लिया जाता है. फिर मशीन से गोल-गोल आकार में काटने के बाद भट्ठी में डाला जाता है. 20 मिनट के बाद निकाल लिया जाता है. उस पर रिफाइन लगाकर पॉलिश की जाती है, तब जाकर बाकरखानी तैयार होती है.
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