
Rare Earth Elements: भारत ने रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) को लेकर चीन पर निर्भरता कम करने और घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए एक बड़ा फैसला लिया है. भारत ने सरकारी खनन कंपनी इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL) को जापान के साथ 13 साल पुराने दुर्लभ खनिज पदार्थों के निर्यात समझौते को रोकने के लिए कहा है.
सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में वाणिज्य मंत्री पीयुष गोयल ने ऑटो और दूसरी इंडस्ट्रीज के प्रतिनिधयों के साथ बैठक कर IREL से जापान को नियोडिमियम का एक्सपोर्ट रोकने के लिए कहा. इसका इस्तेमाल आमतौर पर इलेक्ट्रिक वाहनों के मोटर में लगने वाले चुंबक को बनाने में किया जाता है.
2012 में हुआ था दोनों देशों में समझौता
साल 2012 में यह समझौता IREL और टोयोटा सुशो की कंपनी टोयोत्सु रेयर अर्थ्स इंडिया के बीच हुआ था. इसके तहत IREL जापान को रेयर अर्थ एलिमेंट्स का निर्यात करता था, जिसे टोयोत्सु अर्थ्स इंडिया प्रॉसेस करके जापान में भेजता था. साल 2024 में ही टोयोत्सु ने भारत से भेजे गए 1,000 मीट्रिक टन से अधिक REEs को प्रॉसेस कर जापान में भेजे. यह IREL के टोटल प्रोडक्शन का लगभग एक तिहाई हिस्सा था.
REEs को लेकर चीन का दुनिया में दबदबा
दरअसल, चीन इन दिनों REEs को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने लगा है क्योंकि यहां पूरी दुनिया के मुकाबले लगभग 69 परसेंट रेयर अर्थ एलिमेंट्स का प्रोडक्शन होता है और इसकी 90 परसेंट रिफाइनिंग भी चीन कंट्रोल करता है. यानी कि खनिज भले ही कोई दूसरा देश निकाले, लेकिन इसकी रिफाइनिंग के लिए उसे चीन का ही सहारा लेना पड़ेगा क्योंकि रिफाइनिंग के लिए चीन के पास एडवांस्ड टेक्नोलॉजी है. भारत और अमेरिका जैसे देशों के पास भी यह तकनीक सीमित रूप में है.
भारत में भी REEs का विशाल भंडार
वैसे तो भारत में भी REEs की कोई कमी नहीं है, लेकिन बावजूद इसके रिफाइनिंग की कमी के लिए भारत को अपनी जरूरतों के लिए चीन पर निर्भर रहना पड़ता है. आलम यह है कि खुद के पास रेयर अर्थ एलिमेंट्स का विशाल भंडार होते हुए भी भारत बैटरी, मैग्नेट वगैरह चीन से मंगवाता है, लेकिन अब भारत चीन पर अपनी निर्भरता को कम करते हुए इस दिशा में आत्मनिर्भर बनना चाहता है.
इसी सिलसिले में सरकार ने मंगलवार को एक बैठक की, जिसमें भारी उद्योग एवं इस्पात मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी और कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी भी शामिल रहे. इन्होंने कहा कि अब भारत सिर्फ माइनिंग तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यहां अब रिसर्च से लेकर प्रॉसेसिंग तक का काम भी होगा.
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