खुले में रखा आम लोहा कुछ ही महीनों में जंग खा कर कमज़ोर होने लगता है, लेकिन ट्रेन की पटरी सालों तक धूप, बारिश और ठंड झेलकर भी पहले जैसी मजबूत बनी रहती है. रेलवे ट्रैक भी लोहे से ही बनते हैं, फिर भी उन पर जंग का असर मामूली क्यों होता है, यही सबसे दिलचस्प बात है.
1. पटरी साधारण लोहा नहीं होती. रेलवे ट्रैक कार्बन स्टील या हाई कार्बन मैंगनीज स्टील से बनते हैं, जो आम लोहे से कई गुना मजबूत और जंग प्रतिरोधी होता है. इस धातु की संरचना ही इसे खराब मौसम से बचाती है.

2. ट्रैक पर लगातार चलने वाली ट्रेनें हल्की जंग को मिटा देती हैं. पटरी पर ट्रेन के पहिए लगातार रगड़ पैदा करते हैं. इससे सतह पर बनने वाली शुरुआती जंग खुद ही छिल जाती है. यही वजह है कि ट्रैक चमकते रहते हैं.

3. पटरियों पर खास कोटिंग और हीट ट्रीटमेंट होता है. रेलवे ट्रैक बनाने के दौरान उन पर विशेष हीट ट्रीटमेंट और सख्त सतह वाली फिनिशिंग की जाती है. इससे उनमें जंग और नमी के खिलाफ प्राकृतिक सुरक्षा बन जाती है.
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4. पटरी की यूनिफॉर्म मोटाई और मास जंग की रफ्तार कम करती है. पटरियों का क्रॉस-सेक्शन मोटा होता है, जिससे जंग अंदर तक जल्दी नहीं पहुंच पाती. मोटी धातु में जंग फैलने की स्पीड काफी धीमी हो जाती है.

5. बारिश और नमी नीचे तक अटकती नहीं. ट्रैक्स को ऐसी ऊंचाई पर बिछाया जाता है जहां पानी जमा नहीं होता. बैलास्ट और स्लोपिंग डिज़ाइन नमी को नीचे बहा देता है, जिससे लंबे समय तक पानी का असर नहीं पड़ता.

6. रेलवे लगातार निरीक्षण और मेंटेनेंस करता है. ट्रैक की समय-समय पर जांच, ग्राइंडिंग और रिपेयरिंग होती रहती है. छोटी-मोटी जंग को प्रोसेस के दौरान हटाया जाता है, जिससे नुकसान आगे नहीं बढ़ता.

7. ट्रैक पर केमिकल आधारित एंटी रस्ट लुब्रिकेंट लगाया जाता है. कई संवेदनशील इलाकों में ट्रैक पर खास तरह का एंटी रस्ट कंपाउंड लगाया जाता है. इससे नमी और ऑक्सीजन का धातु से संपर्क कम हो जाता है.

8. लगातार भार और ताप से सतह मजबूत होती है. लाखों किलो वजन वाली ट्रेनें ट्रैक पर दबाव डालती हैं. यह दबाव और ताप स्टील की सतह को और घना बनाते हैं, जिससे जंग जमने की जगह कम हो जाती है.

9. ट्रैक के किनारे वाले हिस्सों में हल्की जंग को अनुमति होती है. रेलवे इंजीनियरिंग में पटरियों के साइड वाले हिस्सों में हल्की सतही जंग को नुकसानदायक नहीं माना जाता. इससे पटरी की उम्र पर कोई असर नहीं पड़ता.


