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राहुल गांधी का आरोप है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (2024) में धांधली की गई थी।
इलेक्शन कमीशन (EC) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लेटर लिखा है। इसमें महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धांधली के उनके आरोपों पर चर्चा का इन्विटेशन भेजा गया है। ANI के मुताबिक, लेटर 12 जून को मेल और राहुल के आवास पर भी भेजा गया है।
EC ने लेटर में लिखा- भारत की संसद के पारित इलेक्टोरल लॉ, उसके नियमों और समय-समय पर चुनाव आयोग के निर्देशों के जरिए बहुत सख्ती से देश में चुनाव आयोजित कराए जाते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव प्रक्रिया विधानसभा क्षेत्र स्तर पर सेंट्रलाइज्ड आयोजित की जाती है।
इसमें EC के नियुक्त 1,00,186 से ज्यादा BLO, 288 इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर, 139 जनरल ऑब्जर्वर, 41 पुलिस ऑब्जर्वर, 71 खर्च ऑब्जर्वर और 288 रिटर्निंग अधिकारी और महाराष्ट्र में राष्ट्रीय और राज्य राजनीतिक दलों के नियुक्त 1 लाख 8 हजार 26 बूथ स्तरीय एजेंट शामिल हैं। इनमें कांग्रेस के 28,421 एजेंट शामिल हैं।
दरअसल, राहुल गांधी का आरोप है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में धांधली हुई और राज्य में महायुति की सरकार बनी। राहुल ने चुनाव आयोग से वोटिंग सेंटर्स के वेबकास्टिंग की CCTV शेयर करने की मांग की थी, जिसे आयोग ने ठुकरा दिया। EC ने कहा है कि ऐसा करने से वोट देने वाले और वोट न देने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

जनवरी 2024 में चंडीगढ़ मेयर इलेक्शन के दौरान चुनाव अधिकारी अनिल मसीह के बैलट पेपर से छेड़छाड़ करने के CCTV फुटेज सामने आए थे। इसके बाद आयोग ने दो बार नियम में बदलाव किया।
राहुल ने लिखा- कवरअप ही कबूलनामा
इधर, राहुल गांधी ने X पोस्ट में लिखा- महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री (देवेंद्र फडणवीस) के अपने निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता सूची में केवल 5 महीनों में 8% की वृद्धि हुई है। कुछ बूथों पर 20-50% की वृद्धि देखी गई। बीएलओ ने अज्ञात व्यक्तियों के वोट डालने की खबर दी। मीडिया ने बिना वेरिफिकेशन पते वाले हजारों मतदाताओं का पता लगाया और चुनाव आयोग चुप है। क्या ये मिलीभगत है। ये अलग-अलग गड़बडियां नहीं हैं। यह वोट चोरी है। कवरअप ही कबूलनामा है। इसलिए हम मशीन रीडेबल डिजिटल वोटर लिस्ट और CCTV फुटेज को तुरंत जारी करने की मांग करते हैं।
21 जून: EC का पोलिंग सेंटर्स की फुटेज सार्वजनिक करने से इनकार चुनाव आयोग ने 21 जून को कहा था कि वोटिंग सेंटर्स की वेबकास्टिंग की CCTV फुटेज शेयर करना सही नहीं है। इससे वोटर्स, ग्रुप की पहचान करना आसान हो जाएगा। वोट देने वाले और वोट न देने वाले दोनों ही असामाजिक तत्वों के दबाव, भेदभाव और धमकी का शिकार हो सकते हैं। ऐसा करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के कानूनी प्रावधानों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन होगा।
आयोग ने उदाहरण देते हुए कहा था कि किसी विशेष राजनीतिक दल को किसी विशेष बूथ पर कम वोट मिलते हैं, तो वो CCTV फुटेज के जरिए बड़ी ही आसानी से पहचान कर सकेगा कि किसने उन्हें वोट दिया और किसने नहीं। इसके बाद वोट न देने वालों को परेशान किया जा सकता है। पूरी खबर पढ़ें…
20 जून: रिकॉर्डिंग 45 दिनों तक ही सुरक्षित रखी जाएंगी
चुनाव आयोग 20 जून को बताया था कि अब चुनावों के दौरान खींची गई फोटो, CCTV फुटेज, वेबकास्टिंग और वीडियो रिकॉर्डिंग सिर्फ 45 दिनों तक ही सुरक्षित रखी जाएंगी। इसके बाद सारा डेटा डिलीट कर दिया जाएगा।
EC ने 30 मई को सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों को निर्देश दिया था कि अगर किसी निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव नतीजे को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाती है, तो 45 दिन बाद ये सारा डेटा नष्ट कर दिया जाए।
EC का कहना है कि ये फैसला फुटेज के दुरुपयोग और सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही भ्रामक जानकारियों को रोकने के लिए लिया गया। क्योंकि हाल ही में कुछ गैर-उम्मीदवारों ने चुनावी वीडियो को तोड़-मरोड़कर गलत नैरेटिव फैलाने की कोशिश की, जिससे मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा हुई।
कांग्रेस बोली- पहले एक साल तक डेटा सेफ रखा जाता था
कांग्रेस चुनाव आयोग के 45 दिन वाले फैसले के विरोध में है। पार्टी ने कहा है कि पहले एक साल तक इस डेटा को सेफ रखा जाता था, ताकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में कभी भी इसकी जांच हो सके। आयोग का यह नियम पूरी तरह से लोकतंत्र के खिलाफ है। इसे तुरंत वापस लेना चाहिए।
20 दिसंबर: वीडियो रिकॉर्डिंग पर रोक
इससे पहले 20 दिसंबर 2024 को केंद्र सरकार ने चुनाव नियम बदलकर पोलिंग स्टेशन के CCTV, वेबकास्टिंग और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग को सार्वजनिक करने से रोक दिया था।
चुनाव आयोग ने कहा कि वोटिंग और मतगणना जैसे चुनावी चरणों की रिकॉर्डिंग का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। यह काम आंतरिक निगरानी और पारदर्शिता के लिए किया जाता है, लेकिन इन रिकार्डिंग्स का इस्तेमाल गलत नैरेटिव के लिए भी किया जाता रहा है। इसलिए इन्हें लंबे समय तक रखने का कोई औचित्य नहीं रह गया है।
अब तक चुनाव से जुड़ी रिकॉर्डिंग एक साल तक संभाल कर रखी जाती थी, ताकि जरूरत पड़ने पर कोई कानूनी जांच हो सके।
दिसंबर 2024 में भी नियमों में बदलाव हुआ था केंद्र सरकार ने 20 दिसंबर को पोलिंग स्टेशन के CCTV, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट्स को पब्लिक करने से रोकने के लिए चुनाव के नियमों में बदलाव किया था।
अधिकारियों ने बताया कि AI के इस्तेमाल से पोलिंग स्टेशन के CCTV फुटेज से छेड़छाड़ करके फेक नैरेटिव फैलाया जा सकता है। बदलाव के बाद भी ये कैंडिडेट्स के लिए उपलब्ध रहेंगे। अन्य लोग इसे लेने के लिए कोर्ट जा सकते हैं। चुनाव आयोग की सिफारिश पर कानून मंत्रालय ने द कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल- 1961 के नियम में बदलाव किया था।
हालांकि कांग्रेस ने चुनाव से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट्स पब्लिक करने से रोकने के नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

22 दिसंबर 2024 को वोटिंग नियमों में बदलाव को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि मोदी सरकार ने चुनाव आयोग (ECI) की स्वतंत्रता पर हमला किया है।
कांग्रेस बोली- मोदी सरकार लोकतांत्रिक व्यवस्था को खत्म कर रही
कांग्रेस ने चुनाव आयोग के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि यह कदम लोकतंत्र और पारदर्शिता के खिलाफ है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि ‘चुनाव आयोग और मोदी सरकार मिलकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को खत्म करने में लगे हैं। पहले दस्तावेजों को जनता से छिपाया गया, अब रिकॉर्ड ही मिटाए जा रहे हैं। आयोग को यह आदेश तुरंत वापस लेना चाहिए।’

कांग्रेस ने यह ट्वीट शुक्रवार की रात करीब 10 बजे किया।
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