नई दिल्ली. कर्नाटक के बेंगलुरु में एक बड़ा अटपटा मामला सामने आया है जिसने प्रॉपर्टी मार्केट को हिलाकर रख दिया है. यहां एक ही जमीन के 4 दावेदार सामने आए हैं. दिलचस्प ये है कि ये चारों अपना नाम राधा बता रही हैं और चारों ही दावा कर रही हैं कि वो जमीन के ओरिजनल मालिक की पत्नी हैं. मामला और पेचीदा तब हो गया जब इन चार राधाओं में से एक के बेटे ने किसी रियल एस्टेट कंपनी के साथ जमीन का सौदा भी कर लिया. 4 में से 1 राधा की मृत्यु हो चुकी है. खबर के अनुसार, 2 राधाओं की ओर से जमीन को अपना बताकर हाईवे अथॉरिटी से पैसा लिया जा चुका है. यह मामला कितना पेचीदा है इसे समझने के लिए आपको ये पूरी रिपोर्ट पढ़नी होगी. लेकिन ऐसे में यह सवाल उठता है कि किसी जमीन पर पिछला मालिकाना हक वाकई किसका रहा है ये कैसे पता करें. ताकि भविष्य में आपको इस तरह की किसी उलझन से न जूझना पड़े.
यह मामला कितना पेचीदा है इसे समझने के लिए आपको ये पूरी पढ़नी होगी. लेकिन ऐसे में यह सवाल उठता है कि किसी जमीन पर पिछला मालिकाना हक वाकई किसका रहा है ये कैसे पता करें. ताकि भविष्य में आपको इस तरह की किसी उलझन से न जूझना पड़े.

जमीन या प्रॉपर्टी की मालिकाना हक की जांच- टाइटल क्लियरेंस रिपोर्ट बताती है कि जिस प्रॉपर्टी को खरीदा या बेचा जा रहा है उसका असली मालिक कौन है. इसमें देखा जाता है कि ओनरशिप डॉक्यूमेंट्स सही हैं या नहीं.

किसी पुराने विवाद या केस की जानकारी- रिपोर्ट में यह भी चेक होता है कि प्रॉपर्टी पर कोई कोर्ट केस, परिवारिक विवाद या लीगल झंझट तो नहीं चल रहा. इससे खरीदार को आगे कोई परेशानी न हो.
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प्रॉपर्टी पर लोन या बकाया की जांच- अगर जमीन या घर किसी बैंक लोन के खिलाफ गिरवी रखा गया हो तो यह रिपोर्ट में साफ लिखा जाता है. इससे पता चलता है कि खरीदने से पहले कितना क्लियरेंस चाहिए.

सरकारी मंजूरी और सर्टिफिकेट की जांच- यह देखा जाता है कि जमीन या बिल्डिंग का मैप, निर्माण, जमीन का उपयोग और लोकल बॉडी की मंजूरी वैध है या नहीं. इससे फ्यूचर में डिमोलिशन का खतरा नहीं रहता.

एन्कंब्रेंस सर्टिफिकेट की पड़ताल- टाइटल रिपोर्ट में EC की डिटेल चेक होती है ताकि पता चले कि प्रॉपर्टी पर कोई क्लेम, रोक या कानूनी बाधा तो नहीं है. यह सबसे जरूरी डॉक्यूमेंट माना जाता है.

पुराने मालिकों की चेन (Chain of Title) की पुष्टि- रिपोर्ट बताती है कि पिछले कई सालों में यह प्रॉपर्टी किन-किन के नाम पर रही और ट्रांसफर सही तरीके से हुआ या नहीं. इससे ओनरशिप की पूरी हिस्ट्री मिलती है.

प्रॉपर्टी की सीमा और एरिया वेरिफिकेशन- इसमें यह जांच होती है कि डॉक्यूमेंट्स में जो जमीन या घर का साइज लिखा है, क्या वह जमीन पर असल में उतना ही है. किसी तरह का एरिया मिसमैच न हो.

टैक्स और ड्यूटी की क्लियरनेस रिपोर्ट- में ये भी देखा जाता है कि प्रॉपर्टी टैक्स, पानी-बिजली बिल या सोसाइटी चार्ज बकाया तो नहीं हैं. इससे नए ओनर पर अचानक कोई बोझ नहीं आता.

खरीदार के लिए जोखिम का आकलन- अंत में यह रिपोर्ट बताती है कि प्रॉपर्टी खरीदना सुरक्षित है या रिस्की. रिपोर्ट के आधार पर लोग फैसला लेते हैं कि खरीदना चाहिए या नहीं.


