पटना. 25 मई 2025…यही वो तारीख है जब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी और परिवार से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था. उनका यह फैसला तेज प्रताप द्वारा सोशल मीडिया में उनकी कथित प्रेमिका अनुष्का यादव के साथ तस्वीर साझा करने और 12 साल के रिश्ते का खुलासा करने के बाद लिया गया.लालू यादव के इस फैसले ने न केवल लालू परिवार, आरजेडी बल्कि बिहार की सियासत में तूफान खड़ा कर दिया. इस घटनाक्रम के बाद से ही तेज प्रताप यादव की राजनीतिक राह को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं. इसके ठीक एक महीने के बाद बीते 25 जून 2025 को बिहार की राजनीति के लिहाज से एक और बड़ा घटनाक्रम हुआ जिसमें समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने तेज प्रताप यादव से वीडियो कॉल पर बात की. इस बात की जानकारी स्वयं तेज प्रताप यादव ने अपने एक्स हैंडल पर साझा की. इस पोस्ट में उन्होंने बिहार के राजनीतिक हालातों पर चर्चा और अखिलेश यादव का उनको समर्थन के बारे में बताया और कहा कि वह अपनी लड़ाई में अकेले नहीं हैं. इसके बाद से ही सवाल उठ रहे हैं कि क्या तेज प्रताप बिहार में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं? क्या वह बिहार में सपा का चेहरा बन सकते हैं? या फिर उनका कोई और सियासी प्लान भी है?
तेज प्रताप का अखिलेश यादव के साथ वीडियो कॉल और उनके प्रति व्यक्त भावनात्मक लगाव ने सियासी हलकों में नई चर्चा को जन्म दे दिया है. तेज प्रताप यादव ने लिखा, अखिलेश जी हमेशा से मेरे दिल के करीब रहे हैं… ऐसा लगा जैसे मैं इस लड़ाई में अकेला नहीं हूं. तेज प्रताप यादव का यह बयान न केवल उनकी भावनात्मक स्थिति को बताता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि वह समाजवादी पार्टी के साथ नया सियासी गठजोड़ बना सकते हैं. बता दें कि अखिलेश यादव तेज प्रताप यादव की बहन राजलक्ष्मी यादव के ससुर हैं. पहले भी परिवार के संकट काल में वह तेज प्रताप का समर्थन करते रहे हैं. जब तेज प्रताप यादव को लालू परिवार और आरजेडी से निकाला गया था तो अखिलेश यादव ने इस निष्कासन का विरोध किया था. अब जब एक महीने के बाद अखिलेश यादव और तेज प्रताप यादव की सीधी बातचीत हुई और तेज प्रताप ने इसे सार्वजनिक किया है तो इससे इस संभावना को बल मिला है कि सपा उन्हें बिहार में अपनी रणनीति का हिस्सा बना सकती है. आइये जानते हैं कि तेज प्रताप यादव ने अपनी भावना किन शब्दों में जाहिर की है.
इमोसनल रूप से अलग महसूस कर रहे तेज प्रताप यादव से अखिलेश यादव की वीडियो कॉल पर बातचीत से मिल रहे नये संकेत.
तेज प्रताप यादव ने अपने ट्वीट में लिखा, आज मेरे परिवार के सबसे प्यारे सदस्यों में से एक यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री माननीय अखिलेश यादव जी से वीडियो कॉल पर लंबी वार्ता हुई, इस दौरान बिहार के राजनीतिक हालातों पर भी चर्चा हुई….अखिलेश जी हमेशा से ही मेरे दिल के काफी करीब रहे है और आज जब मेरा हालचाल लेने के लिए उनका अचानक से कॉल आया तो ऐसा लगा जैसे मैं अपने इस लड़ाई में अकेला नहीं हूं. बता दें कि इससे पहले 25 मई 2025 को तेज प्रताप यादव को पार्टी और परिवार से बेदखल किये जाने के लालू यादव के फैसले के बाद अखिलेश यादव ने अपने सोशल मीडिया के माइक्रो ब्लॉगिंग साइट प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा था, यह समाचार चिंतनीय है कि बिहार के एक चर्चित राजनीतिक परिवार के सदस्य के सोशल मीडिया को हैक करके, उनकी तस्वीरों के साथ झूठी सामग्री प्रकाशित की गई है. ये एक बहुत गंभीर मामला है. अगर ऐसे ही हैकिंग होती रही तो कोई इसका बेहद गंभीर और संवेदनशील दुरुपयोग भी कर सकता है या तो सच्चे व्यक्ति को बदनाम करने के लिए या कोई गलत व्यक्ति अपने आत्मप्रचार के लिए.
लालू यादव ने तेज प्रताप को गैर जिम्मेदार कहा
यहां यह भी जान लीजिये कि तेज प्रताप यादव वर्तमान में हसनपुर विधानसभा सीट से विधायक हैं और पूर्व में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं. लालू यादव के बड़े बेटे हैं और उनकी शादी बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की पौत्री और चंद्रिका राय की बटी ऐश्वर्या राय से वर्ष 2028 में हुई थी. लेकिन, विवाह के कुछ महीनों के बाद से ही पति-पत्नी के बीच तालमेल नहीं रहा और उसी साल से दोनों के बीच तलाक का मामला चल रहा है. इसके बाद 24 मई को जब तेज प्रताप यादव के सोशल मीडिया पोस्ट पर अनुष्का यादव का नाम उनके साथ प्रेम प्रसंग को लेकर सामने आया और उनके साथ की तस्वीर से हंगामा मच गया.इसके बाद लालू परिवार के अंदरखाने न केवल पारिवारिक मनमुटाव को उजागर किया, बल्कि आरजेडी की छवि को भी नुकसान पहुंचाया. इसके बाद लालू यादव ने इसे गैर-जिम्मेदाराना और पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ बताते हुए तेज प्रताप को पार्टी और परिवार से बेदखल कर दिया. हालांकि, इसके उलट इस कदम को कई विश्लेषकों ने 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव की छवि को मजबूत करने और पार्टी को एकजुट रखने की रणनीति के रूप में देखा.
तेज प्रताप यादव ने अनुष्का यादव के साथ अपने रिश्ते को लेकर फेसबुक पर पोस्ट किया था जिसके बाद उनपर एक्शन हुआ.
समाजवादी पार्टी का बिहार में दांव
वहीं, अब जब इस घटना के एक महीने बीत गए हैं और इस बीच तेज प्रताप यादव से लालू परिवार की दूरी दूरी बनी रही. परिवार और पार्टी से दूरी तेज प्रताप यादव को सालती रही है. राजनीति के गलियारों में सभी जानते हैं कि तेज प्रताप यादव भावनात्मक व्यक्ति हैं, और अब जब अखिलेश यादव ने तेज प्रताप यादव को वीडियो कॉल कर सपोर्ट जताया है तो नई सियासी अटकलें भी लगने लगी हैं और तेज प्रताप यादव के आसरे समाजवादी पार्टी के बिहार में संभावनाएं देखी जाने लगी हैं. बता दें कि बिहार में समाजवादी पार्टी का प्रभाव सीमित रहा है, लेकिन यादव समुदाय और अन्य पिछड़े वर्गों में इसकी कुछ पैठ है. अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में यादवों के बड़े नेता के रूप में स्थापित हैं और वह बिहार में भी इस समुदाय को एकजुट करने की कोशिश कर सकते हैं. तेज प्रताप पहले ही यदुवंशी सेना और तेज सेना जैसे संगठन बना चुके हैं और वह यादव मतदाताओं को अपने पाले में आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. यदि तेज प्रताप सपा के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं तो वह हसनपुर या अपनी पसंदीदा महुआ सीट से उतर सकते हैं जहां उनकी पहले से लोकप्रियता है.
विपक्ष की सबसे बड़ी ताकत आरजेडी
हालांकि, सपा के लिए बिहार में बड़ा प्रभाव बनाने की राह आसान नहीं होगी. दरअसल, आरजेडी यादव और मुस्लिम (MY) समीकरण पर आधारित पार्टी पहले से ही है और यादव समुदाय का पूरा साथ लालू यादव को मिलता रहा है. आरजेडी बिहार में विपक्ष की सबसे बड़ी ताकत है. लेकिन, अगर तेज प्रताप यादव समाजवादी पार्टी की ओर रुख करते हैं तो आरजेडी के वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकता है. लेकिन, सवाल यह है कि क्या तेज प्रताप यादव सपा को मजबूत कर सकते हैं तो क्या आरजेडी की कीमत पर करेंगे. खासकर उन क्षेत्रों में जहां यादव मतदाता निर्णायक हैं.
निर्दलीय, नई पार्टी या फिर यह विकल्प
हालांकि, राजनीति के जानकार बताते हैं कि तेज प्रताप के पास निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने या अपनी नई पार्टी बनाने का विकल्प भी है. उन्होंने पहले ही धर्म समर्थक सेवक संघ, लालू-राबड़ी मोर्चा और छात्र जनशक्ति परिषद जैसे संगठन बनाए हैं. जानकार कहते हैं कि आरजेडी में तेजस्वी यादव के नेतृत्व उभार के बाद तेज प्रताप यादव राजनीतिक रूप से अपनी अलग पहचान को लेकर पहले से सक्रिय रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर विश्लेषकों का मानना है कि निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उनकी जीत की संभावना कम है, क्योंकि बिहार की राजनीति में संगठन और गठबंधन की ताकत अहम है. ऐसे में निर्दलीय चुनाव लड़ना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि इसके लिए व्यापक संगठन और संसाधनों की जरूरत होती है जो तेज प्रताप के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है. ऐसे में समाजवादी पार्टी का एक बड़ा विकल्प उसके पास है ही.
लालू प्रसाद यादव के बेहद करीब रहे तेज प्रताप यादव के लिए पार्टी और परिवार से अलग रहना बेहद कठिन.
तेज प्रताप का सपा में जाने की संभावना !
वरिष्ठ पत्रकार अशोकर कुमार शर्मा कहते हैं, आने वाले समय में तेज प्रताप के सामने कई चुनौतियां हैं. पहली तो यह कि उनकी सार्वजनिक छवि को लेकर विवाद रहा है. खासकर अनुष्का यादव प्रकरण और उनकी पत्नी ऐश्वर्या राय के साथ तलाक का मामला उनकी विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकता है. दूसरी ओर आरजेडी और लालू परिवार के समर्थकों का एक बड़ा वर्ग तेजस्वी यादव के साथ है, जिससे तेज प्रताप को समर्थन जुटाने में मुश्किल हो सकती है. तीसरा यह कि यदि ऐश्वर्या राय एनडीए के टिकट पर चुनाव लड़ती हैं, जैसा कि कुछ अटकलों में कहा गया है, तो यह तेज प्रताप के लिए और एक कठिन स्थिति पैदा कर सकता है.
क्या साहस दिखा पाएंगे तेज प्रताप यादव?
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि तेज प्रताप की ताकत उनकी युवा छवि, सोशल मीडिया पर सक्रियता और यादव समुदाय में लोकप्रियता है. अखिलेश यादव का समर्थन उन्हें नई ऊर्जा दे सकता है. यदि सपा उन्हें बिहार में चेहरा बनाती है तो यह पार्टी के लिए एक रणनीतिक कदम हो सकता है जो आरजेडी के MY समीकरण को चुनौती दे सकता है. लेकिन सवाल यही है कि क्या तेज प्रताप यादव लालू परिवार से अलग होकर आरजेडी से समानांतर अपनी नई सियासी राह बनाने का साहस भरा फैसला कर पाएंगे?