
यह मामला इसलिए भी गंभीर है क्योंकि इसमें आरोपी कोई बाहरी व्यक्ति नहीं बल्कि एक स्कूल टीचर है—एक ऐसी संस्था का हिस्सा, जिस पर माता-पिता आंख बंद कर भरोसा करते हैं. पुलिस जांच में यह सामने आया है कि महिला टीचर पिछले एक साल से छात्र का यौन शोषण कर रही थी और वह उसे 13 साल की उम्र से ही पसंद करती थी. छात्र की चुप्पी तब टूटी, जब छात्र के होम स्टाफ के जरिये टीचर ने मिलने का दबाव बनाना शुरू कर दिया.
ऐसे हालात से कैसे बचाएं अपने बेटों को(How To Protect Boys From Sexual Abuse)-
अधिकतर घरों में बेटों को “मर्द बनो”, “कुछ नहीं होता” जैसी बातों के साथ बड़ा किया जाता है. लेकिन इस सोच को बदलना जरूरी है. बच्चों को यह समझाना चाहिए कि उनका शरीर सिर्फ उनका है और कोई भी इंसान – चाहे वह टीचर हो, रिश्तेदार हो या दोस्त – अगर उन्हें असहज महसूस कराए, तो वे ना सिर्फ ‘ना’ कहें बल्कि तुरंत किसी विश्वसनीय वयस्क को बताएं भी.
खुला संवाद बनाएं-
माता-पिता को बच्चों के साथ खुला संवाद रखना बहुत जरूरी है. उनसे दोस्त की तरह बात करें. हर रोज 10-15 मिनट ऐसे समय निकालें जिसमें बच्चा बिना डर अपनी दिनचर्या के बारे में बता सके. अगर बच्चा किसी बात को लेकर असहज महसूस कर रहा हो, तो उसकी बात को नज़रअंदाज न करें.
आज के समय में बच्चे सिर्फ स्कूल या रिश्तेदारों से ही नहीं, बल्कि ऑनलाइन माध्यम से भी कई तरह की चीजों के संपर्क में आते हैं. पैरेंट्स को बच्चों के मोबाइल, इंटरनेट उपयोग पर सतर्क निगरानी रखनी चाहिए. लेकिन यह निगरानी जासूसी न लगे, बल्कि बच्चों को यह एहसास हो कि यह उनकी भलाई के लिए है.
अलर्टनेस और आत्मविश्वास दोनों सिखाएं-
बच्चों को मानसिक रूप से तैयार करना चाहिए कि अगर कोई इंसान उनके साथ गलत व्यवहार करता है, तो वे डरें नहीं. उनमें आत्मविश्वास भरें और उन्हें सिखाएं कि वे ऐसी स्थिति से कैसे निकल सकते हैं. यह भी बताएं कि किसी भी बात को छुपाना या सह जाना समस्या का हल नहीं है.
स्कूलों को भी इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. हर स्कूल में बॉडी सेफ्टी वर्कशॉप, काउंसलिंग सेशन और रेगुलर सेफ्टी ट्रेनिंग अनिवार्य होनी चाहिए. पैरेंट्स को स्कूल के साथ मिलकर ऐसे सेशंस में भाग लेना चाहिए और स्कूल के सेफ्टी पॉलिसी पर नजर रखनी चाहिए.
काउंसलिंग को अपनाएं–
अगर कभी बच्चे के साथ कुछ गलत हो भी जाए तो उससे डांट-डपट कर चुप रहने की सलाह देने की बजाय, आप उसे मनोवैज्ञानिक सहायता के लिए काउंसलर के पास ले जाएं. वरना वह डिप्रेशन एंग्जायटी का शिकार हो सकता है.
याद रखें कि बेटा हो या बेटी, किसी के साथ भी अगर कोई अनुचित व्यवहार हो रहा है, तो चुप रहना अपराध को बढ़ावा देना है. अपने बच्चों को समय रहते जागरूक बनाएं, उन्हें भरोसे और सुरक्षा का माहौल दें– यही आज के दौर की सबसे बड़ी पेरेंटिंग जिम्मेदारी है.
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