
Are Children Just Success Machines For Parents: महाराष्ट्र से एक ऐसी दर्दनाक घटना सामने आई है, जिसे सुनकर हर किसी का दिल दहल जाए. एक पिता ने अपनी बिटिया को NEET परीक्षा में असफल होने पर इतना मारा कि उसकी जान ही चली गई. जिस पिता को बेटी(Father Daughter Relationship) के सपनों को पूरा करने के लिए उसकी ताकत बनना चाहिए था, वही उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया. ऐसे में सवाल उठना तय है कि क्या आजकल पेरेंट्स के लिए उनके बच्चे सिर्फ सफलता के मशीन भर हैं? क्या वे एक इनवेस्टमेंट प्लान के रूप में बच्चों की परवरिश कर रहे हैं? तो क्या आज के दौर में माता-पिता बच्चों को प्यार से ज्यादा अपनी उम्मीदों का बोझ डाल रहे हैं? क्या बच्चों की जिंदगी सिर्फ परीक्षा पास करने और माता-पिता की इच्छाओं को पूरा करने तक ही सीमित रह गई है?
स्वीकारें बच्चों की हार भी!
हर माता-पिता तमाम परेशानियों और मुश्किल हालातों को झेलते हुए अपने बच्चों की परवरिश करता है. लेकिन जब बच्चे किसी क्षेत्र में असफल होते हैं तो उन्हें लगता है कि उनकी सारी मेहनत बर्बाद हो गई. लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि हम उनके हिस्से की हार और जीत को बदल नहीं सकते. जीवन में अगर वे हार हासिल करते हैं तो पिता का साथ डटकर खड़े रहना और सहारा बनना उन्हें फिर से मेहनत करने का हौसला देता है. लेकिन आज कई पेरेंट्स बच्चों को सिर्फ इनवेस्टमेंट की तरह देख रहे हैं.
हर माता-पिता तमाम परेशानियों और मुश्किल हालातों को झेलते हुए अपने बच्चों की परवरिश करता है. लेकिन जब बच्चे किसी क्षेत्र में असफल होते हैं तो उन्हें लगता है कि उनकी सारी मेहनत बर्बाद हो गई. लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि हम उनके हिस्से की हार और जीत को बदल नहीं सकते. जीवन में अगर वे हार हासिल करते हैं तो पिता का साथ डटकर खड़े रहना और सहारा बनना उन्हें फिर से मेहनत करने का हौसला देता है. लेकिन आज कई पेरेंट्स बच्चों को सिर्फ इनवेस्टमेंट की तरह देख रहे हैं.
असफलता का डर:
बच्चों को लगातार डराया जाता है कि अगर वे फेल हो गए तो उनका भविष्य खत्म हो जाएगा. यह डर उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर बना देता है.
सपनों का बोझ:
माता-पिता के अधूरे सपनों का बोझ बच्चों को झेलना पड़ता है. हर बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर या बड़े अधिकारी नहीं बन सकता. लेकिन यह बात माता-पिता को समझाने की जरूरत है.
माता-पिता के अधूरे सपनों का बोझ बच्चों को झेलना पड़ता है. हर बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर या बड़े अधिकारी नहीं बन सकता. लेकिन यह बात माता-पिता को समझाने की जरूरत है.
समझ की कमी:
असफलता का मतलब यह नहीं कि बच्चा कमजोर है. यह सिर्फ एक सीढ़ी है, जिससे आगे बढ़ा जा सकता है. लेकिन माता-पिता अक्सर इसे जिंदगी की हार समझ लेते हैं.
इस घटना से सीखें-
महाराष्ट्र की यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज का दर्द है. हमें समझना होगा कि बच्चों की खुशी, उनका आत्मविश्वास और उनकी मानसिक शांति परीक्षा के नंबरों से कहीं ज्यादा जरूरी है. अगर हम उन्हें सहारा देंगे, तो वे असफलता को भी एक सबक की तरह लेंगे और जिंदगी में आगे बढ़ेंगे.
महाराष्ट्र की यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज का दर्द है. हमें समझना होगा कि बच्चों की खुशी, उनका आत्मविश्वास और उनकी मानसिक शांति परीक्षा के नंबरों से कहीं ज्यादा जरूरी है. अगर हम उन्हें सहारा देंगे, तो वे असफलता को भी एक सबक की तरह लेंगे और जिंदगी में आगे बढ़ेंगे.
याद रखें, बच्चे सफलता की मशीन नहीं, बल्कि इंसान हैं. उन्हें प्यार और भरोसे की जरूरत है, ताकि वे अपने रास्ते खुद बना सकें. रिश्तों को मजबूत बनाना और बच्चों को उनकी जिंदगी जीने का मौका देना ही सही पेरेंटिंग का मतलब है.
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