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शनिवार को भारतीय सरकार ने IPS ऑफिसर पराग जैन को R&AW यानी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग का नया चीफ नियुक्त किया है। वो रवि सिन्हा की जगह लेंगे जिनका कार्यकाल 30 जून को पूरा हो रहा है।
पराग जैन 1 जुलाई को अपना पदभार ग्रहण करेंगे और उनका कार्यकाल दो साल का होगा। वर्तमान में वो R&AW के एविएशन रिसर्च सेंटर के हेड हैं। वो करीब 20 साल से R&AW के लिए काम कर रहे हैं।

पराग जैन के प्रोफेशनल सफर की झलक
1. एविएशन रिसर्च सेंटर (ARC) के निदेशक
R&AW के अंतर्गत आने वाले इस तकनीकी खुफिया केंद्र का नेतृत्व करते हुए पराग जैन ने हवाई निगरानी (Aerial Surveillance), सिग्नल इंटेलिजेंस (SIGINT) और इमेजरी इंटेलिजेंस (IMINT) जैसे क्षेत्रों को अत्याधुनिक बनाया। उनके कार्यकाल में ARC ने खुफिया विश्लेषण की नई ऊंचाइयों को छुआ।
2. ऑपरेशन ‘सिंदूर’ के सूत्रधार
मई 2025 में पाकिस्तान और POK में स्थित आतंकवादी शिविरों पर भारत द्वारा की गई सटीक मिसाइल स्ट्राइक्स में उनकी खुफिया रणनीति निर्णायक साबित हुई। यह ऑपरेशन R&AW की क्षमताओं का प्रत्यक्ष उदाहरण बन गया।
3. पंजाब में आतंकवाद विरोधी अभियानों के नायक
90 और 2000 के दशक में पराग जैन ने बठिंडा, मंसा, होशियारपुर जैसे संवेदनशील जिलों में SSP के तौर पर कार्य किया और लुधियाना व चंडीगढ़ में डीआईजी रहते हुए आतंकवाद और ड्रग तस्करी के नेटवर्कों पर प्रभावी कार्रवाई की।
4. पाकिस्तान व जम्मू-कश्मीर डेस्क के विशेषज्ञ
रॉ में रहते हुए उन्होंने पाकिस्तान पर केंद्रित डेस्क का नेतृत्व किया। बालाकोट एयरस्ट्राइक और अनुच्छेद 370 हटाने जैसे संवेदनशील क्षणों में उनकी भूमिका बेहद अहम रही।
5. अंतरराष्ट्रीय निगरानी व नेटवर्क विश्लेषण
विदेशों में भारतीय मिशन में तैनाती के दौरान उन्होंने श्रीलंका और कनाडा में सक्रिय खालिस्तानी चरमपंथी नेटवर्कों पर करीबी नजर रखी और भारत सरकार को समय रहते अलर्ट किया।
क्यों अहम है उनकी नियुक्ति?
- तकनीक व मानवीय खुफिया का संतुलन: जैन की खासियत है कि वे ह्यूमन इंटेलिजेंस (HUMINT) और तकनीकी निगरानी दोनों को संतुलित रूप से इस्तेमाल कर खुफिया तंत्र को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।
- सीमापार आतंकवाद पर कड़ा प्रहार: उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब भारत को पाकिस्तान और अन्य पड़ोसी देशों से उत्पन्न हो रहे हाइब्रिड खतरों से निपटने के लिए तेजतर्रार नेतृत्व की जरूरत है।
- डायस्पोरा आधारित आतंक नेटवर्क पर नजर: खासकर कनाडा और यूरोप में फैलते खालिस्तानी नेटवर्कों पर शिकंजा कसने में उनकी भूमिका आगे निर्णायक हो सकती है।
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