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पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 17 जून को कनेक्टिकट के बुशनेल परफॉर्मिंग आर्ट्स सेंटर में एक कार्यक्रम को संबोधित किया।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले हफ्ते अमेरिकी राज्य कनेक्टिकट के हार्टफोर्ड शहर में एक कार्यक्रम में भाषण दिया। ओबामा ने अपने भाषण में अमेरिका की मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर चिंता जताई और युवाओं से देश को बचाने की अपील की।
ओबामा ने ट्रम्प सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि जो लोग आज अमेरिका की सरकार चला रहे हैं, वे लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जरूरी है कि सरकार के बाहर और अंदर दोनों जगह से गलत चीजों का विरोध हो। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है।
ओबामा ने अमेरिका की तुलना हंगरी जैसे देशों से की, जहां चुनाव तो होते हैं, लेकिन वहां सच में लोगों की आवाज की कद्र नहीं होती और नेता मनमानी करते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अमेरिका भी अब ऐसे ही रास्ते पर बढ़ रहा है, जहां कानून और लोकतंत्र की असली भावना कमजोर हो रही है।
ओबामा ने चेतावनी दी कि अमेरिका में भी हालात उस दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं। ओबामा ने 2020 के राष्ट्रपति चुनाव का उदाहरण दिया, जिसमें बाइडेन ने जीत हासिल की थी, लेकिन हारने वाले डोनाल्ड ट्रम्प ने धोखाधड़ी के झूठे आरोप लगाए।

ओबामा ने पुतिन और केजीबी का उदाहरण दिया ओबामा ने इंटरव्यू में कहा कि सत्ता में बैठे लोग अक्सर उस माहौल का फायदा उठाते हैं, जहां लोगों को यह पता ही नहीं होता कि सच क्या है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन और उनके केजीबी (जासूसी एजेंसी) की एक कहावत है, जिसे अमेरिका में ट्रम्प के सलाहकार स्टीव बैनन ने भी अपनाया।
इस कहावत का मतलब है कि अगर आप चाहते हैं कि लोगों का दिमाग उलझ जाए, तो उन्हें सच्चाई समझाने की जरूरत नहीं है। उस माहौल में इतना ज्यादा झूठ और बकवास भर दो कि लोगों को लगे, अब किसी बात पर यकीन करना ही फिजूल है।
‘जब लोग सच से हार मान लें, तभी तानाशाही पनपती है’
ओबामा ने आगे कहा- इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई नेता बार-बार झूठ बोल रहा है, या कोई राष्ट्रपति यह दावा कर रहा है कि उसने चुनाव नहीं हारा, बल्कि जीत हासिल की है, और चुनाव में गड़बड़ी हुई थी। लेकिन जब वही नेता चुनाव जीत जाता है, तो वह गड़बड़ी अचानक गायब हो जाती है।
झूठ पर कौन यकीन करता है, ये इतना मायने नहीं रखता, असली समस्या तब है जब लोग इन सबसे हार मानकर कहने लगते हैं, “अब तो कुछ फर्क ही नहीं पड़ता।” जब लोग सच से हार मान लेते हैं, तभी तानाशाही पनपती है।
ओबामा ने आगे कहा कि अमेरिका की एक बड़ी राजनीतिक पार्टी (रिपब्लिकन पार्टी) में आज यही हो रहा है। कई नेता जानते हैं कि जो बातें हो रही हैं वो सच नहीं हैं, लेकिन फिर भी वे ऐसा नाटक करते हैं जैसे सबकुछ ठीक और सच हो। यह बहुत खतरनाक स्थिति है।

ओबामा ने लोगों से कानून के पक्ष में खड़े होने की अपील की
ओबामा ने कहा कि अमेरिकी संविधान में लोकतांत्रिक नियम-कायदे भले ही शुरुआत में अधूरे थे, लेकिन समय के साथ इन्हें मजबूत किया गया। इससे नागरिकों को बुनियादी अधिकार मिले, जैसे कि बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी को सड़क से उठाकर किसी और देश नहीं ले जाया जा सकता। यह कोई राजनीतिक विचार नहीं था, बल्कि एक साझा अमेरिकी मूल्य था।
ओबामा ने कहा कि आज जरूरत है कि सिर्फ आम लोग ही नहीं, बल्कि सरकार में मौजूद अधिकारी, चाहे वे किसी भी पार्टी से हों, कानून के पक्ष में खड़े हों और कहें, “नहीं, यह गलत है। कानून यही कहता है और हमें उसका पालन करना चाहिए।” उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकारी तंत्र में ऐसे लोग न हों, तो लोकतंत्र की दिशा बिगड़ सकती है।
“लोकतंत्र अपने आप नहीं चलता। इसके लिए लोगों की जरूरत होती है। जज, न्याय विभाग के अफसर, सरकार के अंदर ऐसे लोग जो संविधान की रक्षा की शपथ को गंभीरता से लें,” ओबामा ने कहा। अगर ऐसा नहीं होता, तो देश धीरे-धीरे तानाशाही जैसी व्यवस्था की ओर बढ़ सकता है।
कार्यक्रम के अंत में जब उनसे पूछा गया कि वह युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं, तो ओबामा ने कहा कि वह अब भी आशावादी हैं। उन्होंने युवाओं से कहा कि गलत चीजों के खिलाफ गुस्सा जरूरी है, लेकिन बदलाव लाने के लिए जोड़ने वाली सोच जरूरी है। उन्होंने कहा कि आपको उन लोगों से भी बातचीत करनी होगी जो आपसे हर बात पर सहमत नहीं हैं, लेकिन कुछ बातों पर हो सकते हैं।
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