
पहले कोलकाता में छेने वाला रसगुल्ला बना
रसमलाई का जन्म 19वीं सदी के अंत या 20वीं सदी की शुरुआत में पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ माना जाता है. इसका आधार छेने वाला रसगुल्ला है, जो छेना (पनीर) से गोल बनी स्वादिष्ट मिठाई है. जिन्हें चीनी के सिरप में डुबोया जाता है. ये रसगुल्ला पहले से ही बंगाल और उड़ीसा में मशहूर था. माना जाता है कि इसका आविष्कार भी कोलकाता में नोबिन चंद्र सरकार की मिठाई दुकान में हुआ.
फिर कैसे गलती से नोबिन हलवाई के यहां बनी रसमलाई
चखने पर इसका स्वाद लाजवाब था
नोबिन चंद्र दास मिठाई की दुकान से निकली ये मिठाई
यह कहानी भले ही थोड़ी नाटकीय लगे, लेकिन बंगाल की मिठाई दुकानों में ऐसे प्रयोग आम थे, जहां शेफ नए स्वाद तलाशने के लिए रचनात्मकता दिखाते थे. इसकी एक कहानी और है, जो इसी नोबिन चंद्र दास की मिठाई दुकान से ही जुड़ी है. इसे ज्यादा विश्वसनीय माना जाता है. नोबिन ने 1868 में रसगुल्ला बनाया था. उनकी दुकान कोलकाता में मिठाई की दुनिया का गढ़ थी यानि मुख्य और सबसे मशहूर दुकान.
रसगुल्ले को और मजेदार बनाने के प्रयोगों का नतीजा
फिर ये मशहूर होती गई
रसगुल्ला का स्पंजी टेक्सचर और रबड़ी का मधुर मिलन
कुछ इतिहासकारों और मिठाई विशेषज्ञों का मानना है कि रसमलाई कोई गलती नहीं, बल्कि जानबूझकर किया गया प्रयोग था. बंगाल में रबड़ी पहले से ही एक लोकप्रिय मिठाई थी. रसगुल्ले का स्पंजी टेक्सचर रबड़ी को सोखने के लिए एकदम सही था. हो सकता है कि किसी चतुर मिठाईवाले ने सोचा हो कि रसगुल्ले को रबड़ी में डालकर एक नया स्वाद बनाया जाए. यह प्रयोग इतना कामयाब रहा कि रसमलाई ने अपनी अलग पहचान बना ली.
ठंडा भी परोसा जाने लगा
रसमलाई की लोकप्रियता पहले कोलकाता और आसपास के इलाकों में बढ़ी. मिठाई की दुकानों ने इसे त्योहारों और शादियों के लिए बनाना शुरू किया. इसे ठंडा परोसने की खासियत ने इसे गर्म मौसम में भी पसंदीदा बनाया. 20वीं सदी के मध्य में जब मिठाई उद्योग ने डिब्बाबंद मिठाइयां बनानी शुरू कीं, तो रसमलाई को लंबे समय तक स्टोर करने के तरीके विकसित किए गए. हल्दीराम और बीकानेरवाला जैसे ब्रांड्स ने इसे देश और विदेश में पहुंचाया.
अब तो विदेशों में भी हिट
कोलकाता का नोबिन चंद्र की मिठाई की दुकान
नोबिन के बेटे केसी दास ने अलग ब्रांड बनाया
नोबिन चंद्र की मूल दुकान का प्रबंधन उनके बेटे कृष्ण चंद्र दास (के.सी. दास) और बाद में उनके वंशजों ने संभाला. के.सी. दास ने अपने नाम से एक अलग ब्रांड बनाया, जो आज भी कोलकाता में कई शाखाओं के साथ चल रहा है. नोबिन चंद्र दास एंड संस की मूल दुकान शोभा बाजार में अब भी सक्रिय है. यह दुकान ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे “रसगुल्ला का जन्मस्थान” माना जाता है. 2017 में “बंग्लार रसगुल्ला” को GI टैग मिला.
ये मूल दुकान छोटी है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व और मिठाइयों का स्वाद इसे मिठाई प्रेमियों के लिए एक जरूरी पड़ाव बनाता है. यहां काफी भीड़ हमेशा लगी रहती है. अगर आप कोलकाता में हैं और बंगाली मिठाइयों का ऐतिहासिक स्वाद लेना चाहते हैं, तो यह दुकान जरूर जाने लायक है.
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