
उन्होंने कहा, “यह आरोपों से इनकार करने का सवाल नहीं है. आम तौर पर एंबुलेंस नासिक से मोखाडा इलाके (पालघर) में नवजात माताओं को लेकर जाती हैं. हम सखाराम को शिशु के शव के साथ इनमें से किसी एक एंबुलेंस में बिठा सकते थे.” डॉ. गुंजल ने कहा कि अस्पताल के अधिकारियों ने सखाराम को शिशु के अंतिम संस्कार के लिए प्रोटोकॉल समझाया था और उन्होंने दावा किया कि वे इसे समझ गए हैं.
लेकिन 11 जून को जब अविता को प्रसव पीड़ा हुई, तो उनके सपने एक दुःस्वप्न में बदल गए. सखाराम ने याद करते हुए बताया, “हमने सुबह एम्बुलेंस के लिए फोन किया, लेकिन कोई नहीं आया.” उन्होंने बताया कि गांव की आशा कार्यकर्ता, जो शुरू में पहुंच से बाहर थी, ने आपातकालीन नंबर 108 से कोई प्रतिक्रिया न मिलने के बाद आखिरकार एक निजी वाहन की व्यवस्था की. अविता अपनी कमजोर आवाज में कहती है, “रास्ते में मेरे गर्भ में हलचल हो रही थी.” खोडाला पब्लिक हेल्थ सेंटर पहुंचने पर, उसे कथित तौर पर एक घंटे से अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा.
उन्होंने दावा किया कि सुबह नासिक सिविल अस्पताल ने बच्चे का शव सखाराम को सौंप दिया, लेकिन शव को घर ले जाने के लिए एम्बुलेंस देने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, “मैं एसटी स्टैंड गया, 20 रुपये का कैरी बैग खरीदा, अपने बच्चे को कपड़े में लपेटा और एमएसआरटीसी बस में लगभग 90 किलोमीटर की यात्रा की.” किसी ने नहीं पूछा कि मैं क्या लेकर जा रहा हूं.” बच्चे को उसी दिन उनके गांव में दफना दिया गया.” 13 जून को सखाराम अपनी पत्नी को घर लाने के लिए नासिक लौट आया. उन्होंने दावा किया, “उन्होंने फिर से एम्बुलेंस देने से इनकार कर दिया.”
कमजोर और ठीक हो रही अविता ने बस से वापसी की. सखाराम ने कहा, “उन्होंने उसे कोई दवा भी नहीं दी.” मोखाडा तहसील स्वास्थ्य अधिकारी (टीएचओ) डॉ. भाऊसाहेब चत्तर ने दावा किया कि नासिक सिविल अस्पताल ने 13 जून को सखाराम की पत्नी की वापसी यात्रा के लिए एम्बुलेंस की पेशकश की थी, लेकिन सखाराम ने कथित तौर पर इनकार कर दिया और एक छूट पत्र पर हस्ताक्षर किए. उन्होंने कहा कि आदिवासी दंपति को हर संभव सहायता प्रदान की गई. डॉ. चत्तर ने पुष्टि की कि सखाराम वास्तव में बच्चे के शव के साथ बस में यात्रा कर रहा था.
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