
भारत और पाकिस्तान संघर्ष के दौरान जब आमने सामने थे तो तुर्की खुलकर पाकिस्तान का साथ दे रहा था। मीडिया रिपोर्ट बताते है कि इसमें तुर्की ने न केवल पाकिस्तान को ड्रोन से मदद की, बल्कि भारत के खिलाफ ड्रोन हमलों में सहायता के लिए इस्लामाबाद में सैन्य कर्मियों को भी भेजा। जिसके बाद अहसानफरामोश तुर्किए को लेकर भारत में काफी रोष देखने को मिला। देश के अलग अलग राज्यों में व्यापारियों ने तुर्की का विरोध करने का फैसला किया। कई भारतीयों ने तुर्किए जाने के अपने फैसले को कैंसिल किया और तुर्किए के बॉयकाट का ऐलान किया। हालांकि बॉयकाट कोई सरकार की तरफ से नहीं बल्कि लोगों की व्यक्तिगत इच्छा से किया गया। लेकिन अब नई दिल्ली ने अपने अंदाज में अहसानफरामोश तुर्किए को जवाब देने का सोचा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कनाडा के निमंत्रण पर जी7 सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे हैं। इस बार जी7 देशों की बैठक कनाडा के अल्बर्टा में हो रही है। इस बार जी7 के लिए कनाडा जा रहे पीएम मोदी बड़ा खेल करने वाले हैं।
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दरअसल, कनाडा के खालिस्तानी पहले से ही पीएम मोदी की यात्रा को लेकर हैरान-परेशान हैं। एमजीआर इस बार पीएम मोदी कनाडा पहुंचने से पहले ही आने विमान के जरिये भी एक बड़ा रणनीतिक और कूटनीतिक दांव खेलने जा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कनाडा जाते वक्त पीएम मोदी का विमान तेल रिफ्यूलिंग के लिए एक छोटे से देश सायप्रस में रुकेगा। पीएम मोदी का विमान रिफ्यूलिंग के लिए कहीं और भी रुक सकता था। लेकिन इस बार बड़ी रणनीति के तहत सायप्रस को चुना गया है। पीएम मोदी का विमान जैसे ही सायप्रस उतरेगा तो तुर्किये, पाकिस्तान और अजरबैजान पागल हो जाएंगे। भारत का ये कदम खास तौर से तुर्किये को ध्यान में रखते हुए लिया जा रहा है।
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साइप्रस, जिसे आधिकारिक तौर पर साइप्रस गणराज्य कहा जाता है, पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित एक द्वीप देश है। यह ग्रीस के पूर्व में और तुर्की के दक्षिण में स्थित है। यह द्वीप निकटतम ग्रीक द्वीप (रोड्स) से 250 मील दूर है और एथेंस 460 मील दूर है। 1821 में ग्रीस को ओटोमन्स से आजादी मिलने तक ग्रीक और तुर्की साइप्रस अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण तरीके से रहते थे। 1974 को ग्रीस के समर्थन से सैन्य तख्तापलट हुआ। जिसके जवाब में तुर्की की सेना ने साइप्रस पर हमला कर दिया। तुर्की सेना 20 जुलाई को साइप्रस में उतरी और युद्ध विराम घोषित होने से पहले द्वीप के 3% हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया। तुर्की सेना ने अगस्त 1974 में अपने मूल समुद्र तट का विस्तार किया , जिसके परिणामस्वरूप द्वीप के लगभग 36% हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया गया। तुर्की के कब्जे के बाद से ही साइप्रस दो हिस्सों में बंट गया।
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अगस्त 1974 से युद्ध विराम रेखा साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र बफर ज़ोन बन गई और इसे आमतौर पर ग्रीन लाइन के रूप में जाना जाता है। स्वाभाविक रूप से, तुर्की के साथ संप्रभुता, समुद्री सीमा और अन्य मुद्दों पर उनके बड़े मतभेद हैं। एक तरफ ग्रीस और साइप्रस हैं तो दूसरी तरफ तुर्किए है। भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत साइप्रस समस्या के समाधान के पक्ष में रहा है। तुर्की जहां पाकिस्तान के साथ खड़ा रहता है, वहीं भारत ने साइप्रस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया है। साइप्रस आतंकवाद और कश्मीर के मुद्दे पर हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा है।
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