
- कॉपी लिंक

भारत की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी अपनी पहली इलेक्ट्रिक SUV ई-विटारा के प्रोडक्शन में कटौती कर रही है। मारुति सुजुकी का अप्रैल-सितंबर 2025 के बीच 26,500 से ज्यादा गाड़ियां बनाने का प्लान था ,लेकिन अब सिर्फ 8,000 गाड़ियां बनाएगी।
हालांकि, कंपनी का कहना है कि वो मार्च 2026 तक अपने पूरे साल के 67,000 गाड़ियों के टारगेट को पूरा करने की कोशिश करेगी। इसके लिए बाद के महीनों में प्रोडक्शन बढ़ाया जाएगा।
ई-विटारा की डिलीवरी पर असर
मारुति की ई-विटारा भारत में उसकी पहली इलेक्ट्रिक गाड़ी है, जिसे इस साल के अंत तक लॉन्च करने की योजना थी। ये गाड़ी गुजरात के प्लांट में बन रही है और इसे भारत के साथ-साथ एशिया, यूरोप, लैटिन अमेरिका, और अफ्रीका में एक्सपोर्ट करने का प्लान है।
कंपनी ने इसे जनवरी 2025 के ऑटो एक्सपो में शोकेस किया था, और ये टाटा मोटर्स, महिंद्रा, और हुंडई की इलेक्ट्रिक गाड़ियों से मुकाबला करेगी।
मारुति ने अभी तक लॉन्च टाइमलाइन में बदलाव की बात नहीं कही है, लेकिन कुछ एनालिस्ट्स का कहना है कि अगर मैग्नेट की कमी का मसला जल्द हल नहीं हुआ, तो लॉन्चिंग और डिलीवरी में और देरी हो सकती है।
चीन ने रेयर अर्थ मटेरियल पर एक्सपोर्ट प्रतिबंध लगाए
इस कटौती की वजह रेयर अर्थ मैग्नेट्स की कमी है, जो EV मोटर, स्पीडोमीटर, सेंसर, और इंजन के कई पार्ट्स में इस्तेमाल होते हैं। ये मैग्नेट्स ज्यादातर चीन से आते हैं, जो दुनिया की 90% से ज्यादा रेयर अर्थ प्रोसेसिंग करता है।
लेकिन, 4 अप्रैल 2025 से चीन ने सात रेयर अर्थ मटेरियल के एक्सपोर्ट पर सख्त पाबंदियां लगा दी हैं। अब इनके लिए स्पेशल लाइसेंस चाहिए, जिसकी वजह से भारत को सप्लाई रुक गई है।

चीन ने क्यों लगाए प्रतिबंध?
चीन ने रेयर अर्थ मैटेरियल्स के एक्सपोर्ट पर सख्ती इसलिए की है, क्योंकि वो इन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा और गैर-सैन्य इस्तेमाल से जोड़ता है।
अप्रैल 2025 में लागू हुए नए नियमों के तहत, हर इम्पोर्टर को “एंड-यूजर सर्टिफिकेट” देना होगा, जिसमें ये साबित करना होगा कि मैग्नेट्स का इस्तेमाल सैन्य कामों या अमेरिका को री-एक्सपोर्ट के लिए नहीं होगा।
इस प्रोसेस में कम से कम 45 दिन लगते हैं। इस वजह से देरी बढ़ रही है। चीन का ये कदम अमेरिका के नए टैरिफ्स के जवाब में देखा जा रहा है।
मारुति अभी डिमांड के हिसाब से गाड़ियां बना रही
मारुति सुजुकी के चेयरमैन आर सी भार्गव ने हाल ही में कहा था कि अभी प्रोडक्शन पर कोई असर नहीं पड़ा है। लेकिन, इंडस्ट्री सूत्रों का कहना है कि अगर ये कमी लंबे समय तक रही, तो मारुति को अपनी दूसरी गाड़ियों के प्रोडक्शन प्लान भी बदलने पड़ सकते हैं।
कंपनी अभी डीलर इनवेंट्री और डिमांड के हिसाब से रेयर अर्थ मैग्नेट्स का इस्तेमाल कर रही है, ताकि ज्यादा बिकने वाली गाड़ियों को प्राथमिकता दी जाए।
मारुति ने इस मसले पर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन कंपनी ने चीनी सप्लायर्स के जरिए इम्पोर्ट के लिए अप्लाई किया है। हालांकि, अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।
सिर्फ मारुति ही नहीं, पूरी इंडस्ट्री पर संकट
ये समस्या सिर्फ मारुति सुजुकी तक सीमित नहीं है। टाटा मोटर्स, महिंद्रा, हुंडई, किया, हीरो मोटो, टीवीएस, और बजाज ऑटो जैसी कंपनियां भी इस रेयर अर्थ मैग्नेट की कमी से जूझ रही हैं।
खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और टू-व्हीलर्स के लिए ये मैग्नेट्स बहुत जरूरी हैं। अगर सप्लाई का मसला जल्द हल नहीं हुआ, तो जुलाई 2025 तक कई कंपनियों का प्रोडक्शन रुक सकता है।
जापान में सुजुकी मोटर ने अपनी स्विफ्ट कार का प्रोडक्शन पहले ही रोक दिया है, क्योंकि उन्हें भी मैग्नेट्स की कमी का सामना करना पड़ रहा है। यूरोप में Mercedes-Benz, BMW, और Nissan जैसी कंपनियां भी प्रोडक्शन घटाने पर मजबूर हैं।
भारत की ऑटो इंडस्ट्री क्या कर रही है?
भारत की ऑटो इंडस्ट्री ने सरकार से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) और ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ACMA) ने सरकार को बताया है कि अगर जल्द समाधान नहीं हुआ, तो जून 2025 से प्रोडक्शन रुक सकता है।
- सरकारी मदद: ऑटो कंपनियों ने सरकार से मांग की है कि वो चीन के साथ डिप्लोमैटिक बातचीत करके इम्पोर्ट प्रोसेस को तेज करे। सरकार ने एक डेलिगेशन को चीन भेजने की योजना बनाई है, जो अगले दो-तीन हफ्तों में वहां जाकर बात करेगा।
- वैकल्पिक रास्ते: कुछ कंपनियां वियतनाम, इंडोनेशिया, जापान, या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से मैग्नेट्स की सप्लाई तलाश रही हैं। लेकिन, इन देशों में अभी बड़े पैमाने पर प्रोसेसिंग की सुविधा नहीं है।
- मोटर असेंबली इम्पोर्ट: कुछ कंपनियां अब पूरी मोटर असेंबली इम्पोर्ट करने की सोच रही हैं, जो महंगा पड़ेगा और लोकल मैन्युफैक्चरर्स को नुकसान पहुंचा सकता है।
- आत्मनिर्भर भारत: सरकार ने कंपनियों को फेराइट मैग्नेट्स या मैग्नेट-फ्री डिजाइन्स तलाशने की सलाह दी है, लेकिन ये रास्ते महंगे हैं और परफॉर्मेंस में कमी ला सकते हैं। लंबे समय के लिए भारत में रेयर अर्थ प्रोसेसिंग की सुविधा विकसित करने की बात हो रही है, लेकिन ये सालों का प्रोजेक्ट है।
सरकार वैकल्पिक सप्लाई चेन तलाश रही
कॉमर्स मिनिस्टर पीयूष गोयल ने कहा है कि चीन का ये कदम भारत और दुनिया के लिए एक “वेक-अप कॉल” है। उन्होंने कहा कि सरकार ऑटो इंडस्ट्री के साथ मिलकर वैकल्पिक सप्लाई चेन तलाश रही है और भारत में रेयर अर्थ प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है।
नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) के तहत सरकार 34,300 करोड़ रुपए की योजना बना रही है, जिसमें लिथियम, कोबाल्ट, और रेयर अर्थ जैसे मिनरल्स की लोकल प्रोसेसिंग को बढ़ावा दिया जाएगा। लेकिन, ये लंबा प्रोजेक्ट है और तुरंत राहत नहीं देगा।

इलेक्ट्रिक के साथ पेट्रोल-डीजल गाड़ियों पर भी असर
रेयर अर्थ मैग्नेट्स सिर्फ EV में ही नहीं, बल्कि पेट्रोल-डीजल गाड़ियों, टू-व्हीलर्स, और कॉमर्शियल वाहनों में भी इस्तेमाल होते हैं। अगर ये कमी 30 दिन से ज्यादा चली, तो पूरी ऑटो इंडस्ट्री ठप हो सकती है। SIAM ने चेतावनी दी है कि भारत ने FY24 में 460 टन रेयर अर्थ मैग्नेट्स इम्पोर्ट किए थे, और इस साल 700 टन का टारगेट था, जो अब मुश्किल लग रहा है।
बजाज ऑटो ने कहा है कि जुलाई तक उनके ई-स्कूटर प्रोडक्शन पर “गंभीर असर” पड़ सकता है। TVS मोटर ने भी ऐसी ही चिंता जताई है। ऑटो डीलर्स की बॉडी FADA का कहना है कि हाई इनवेंट्री और टाइट फाइनेंसिंग की वजह से जून में सेल्स ग्रोथ सिर्फ एक-तिहाई डीलर्स को दिख रही है।
Discover more from हिंदी न्यूज़ ब्लॉग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.