गैंगस्टर अनमोल बिश्नोई और नोनी राणा की गिरफ्तारी के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि गैंग का चेप्टर ढह जाएगा. लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट निकली. जांच में सामने आया है कि लॉरेंस का इंटरनेशनल क्राइम सिंडिकेट एन्क्रिप्टेड ऐप्स, विदेशी हैंडलर, चीनी हथियारों की फंडिंग और ड्रोन रूट से आने वाली हथियारों की सप्लाई के भरोसे पहले से ज्यादा संगठित हो चुका है.
यूरोप और स्पेन बने बिश्नोई गैंग का नया ‘एपिक सेंटर’
गैंग अब इंटरनेशनल क्राइम मशीन बन चुका है.
बिश्नोई गैंग के हथियार आखिर आते कहां से हैं?
जांच में सामने आया है कि गैंग का मॉडर्न हथियार नेटवर्क तीन देशों पर टिका है चीन, पाकिस्तान और नेपाल. शूटरों को बरामद हुए कारतूस मेड इन चीन और मेड इन तु्र्की के मिले. इससे साफ है कि इनकी सप्लाई हाई-एंड इंटरनेशनल रैकेट से हो रही है.
गैंग की सप्लाई चेन का खुलासा
- चीन के कुख्यात हथियार रैकेट 14K और Sun Yee On से कनेक्शन की जांच.
- हथियार पाकिस्तान होते हुए ड्रोन के जरिए पंजाब-राजस्थान बॉर्डर में गिराए जाते.
- GPS लोकेशन के जरिए शूटर ड्रॉप पॉइंट से हथियार उठा लेते.
- USA-बेस्ड आर्म्स माफिया सोनू खत्री और रंजीत डुपला सप्लायर चेन का हिस्सा.
- यूरोप से गोल्डी ढिल्लों रिमोट कंट्रोल की तरह शूटर्स को निर्देश देता.
गैंग के हाई-प्रोफाइल हैंडलर: कौन किस देश में?
| नाम | लोकेशन | भूमिका |
| सोनू खत्री | USA | हाई-एंड हथियार सप्लायर |
| गोल्डी ढिल्लों | यूरोप | टारगेट किलिंग मास्टरमाइंड |
| मनदीप स्पेन | स्पेन | फंडिंग और शूटर्स कंट्रोल |
| हैरी चट्टा | पाकिस्तान | ISI लिंक, ड्रोन रूट सप्लाई |
| बंधु मान सिंह | कनाडा/भारत | लॉजिस्टिक सपोर्ट, शूटर्स हायरिंग |
अनमोल और नोनी की गिरफ्तारी के बाद भी लॉरेंस की पकड़ क्यों नहीं ढीली?
दरअसल, गैंग की कमान अब पूरी तरह डिजिटल हो चुकी है. सभी ऑपरेशन Signal, Session, Threema और डार्क वेब आधारित ऐप्स से चल रहे हैं. इन्हें ट्रेस करना मुश्किल है, जिससे लॉरेंस की पकड़ भले ही जेल में हो. लेकिन कंट्रोल उसकी टीम के पास दुनिया भर में फैला हुआ है.

चीन से हथियार, यूरोप से फंडिंग और ड्रोन रूट के जरिए भारत में सप्लाई.
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साबरमती जेल में होने के बावजूद गैंग की सक्रियता बढ़ी.
क्यों डर बढ़ रहा है?
डर इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि लॉरेंस बिश्नोई गैंग अब एक पूरी तरह लेयर्ड नेटवर्क में बदल चुका है. विदेशों में बैठे मास्टरमाइंड टारगेट तय करते हैं. डिजिटल हैंडलर एन्क्रिप्टेड ऐप्स से निर्देश भेजते हैं. ड्रोन रूट से हथियार आते हैं. लोकल मॉडिफाइड गन्स सप्लाई होती हैं और ग्राउंड पर टीमें रेकी कर टारगेट किलिंग की तैयारी करती हैं. यही वजह है कि गैंग अब इंटरनेशनल क्राइम मशीन बन चुका है.


