
अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह की अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार और टैक्स पर आधारित थी. शाह अपनी विलासितापूर्ण जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध थे. उनके पास कई महल, बगीचे और कीमती वस्तुएं थीं. इसमें कैसरबाग पैलेस कॉम्प्लेक्स भी शामिल है, जिसका निर्माण 1848-1850 के बीच 80 लाख रुपये की लागत से हुआ था. आज इसकी कीमत करीब 10 हजार करोड़ रुपये बताई जाती है. उनके पास एक बड़ा दरबार था, जिसमें सैकड़ों बीवियां, बच्चे और नौकर-चाकर शामिल थे, जिनका रखरखाव बहुत खर्चीला था.
जानवर पालने के शौकीन
साल 1874 में न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता ने उनकी संपत्ति का सर्वेक्षण किया और पाया कि उनके पास कोलकाता में एक संपत्ति थी, जिसमें 7,000 से अधिक लोग रहते थे. इसमें सैकड़ों वैश्याएं, घरेलू गार्ड और कई बेगम का आशियाना था. इसके अलावा बंदर, भालू और 18,000 कबूतर भी पाल रखे थे. यह दर्शाता है कि निर्वासन में भी उनकी संपत्ति और धन का पैमाना काफी बड़ा था.
साल 1856 में ब्रिटिशों द्वारा अवध के विलय के बाद वाजिद अली शाह को कोलकाता के मटियाबुर्ज में निर्वासित कर दिया गया. उनके खाने-पीने के लिए अंग्रेजों ने 12 लाख रुपये सालाना पेंशन निर्धारित कर दी. यह पेंशन उनकी शाही जीवनशैली को बनाए रखने के लिए थी, लेकिन इतिहासकारों के अनुसार, उनके खर्चों को पूरा करने के लिए उन्हें अतिरिक्त बंगले किराए पर लेने पड़े, जो दर्शाता है कि उनके पास व्यक्तिगत संपत्ति या धन तब भी बचा हुआ था. इसके अलावा अंग्रेजों ने उन पर 20 लाख पाउंड जो आज की कीमत में करीब 20 करोड़ रुपये होंगे, इतना बकाया भी लाद दिया था.
अंग्रेजों ने क्या-क्या छीना
ब्रिटिशों ने अवध के विलय के समय उनकी कई संपत्तियों को जब्त कर लिया, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर असर पड़ा. कुछ स्रोतों में कहा गया है कि उनकी वंशज, जैसे बेगम विलायत महल ने बाद में भारत सरकार से जब्त संपत्ति के लिए मुआवजे की मांग की थी, लेकिन इन दावों का सटीक मूल्यांकन नहीं हो सका. अंग्रेजों ने जो संपत्तियां और प्रॉपर्टी जब्त की थी, उसकी कीमत आज करीब 2 लाख करोड़ रुपये बताई जाती है.
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