नई दिल्ली. बाजार, निवेश और इकॉनमी की चर्चा में अक्सर तीन शब्द बार-बार सुनने को मिलते हैं — FDI, FPI और FII. ये तीनों ही भारत की अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेश के रास्ते हैं, लेकिन इनमें बारीक फर्क होता है. आम लोग कई बार इन तीनों शब्दों को एक जैसे समझ लेते हैं, लेकिन इनके उद्देश्य, तरीका और असर अलग-अलग होते हैं. कोई निवेश सीधे कंपनी में हिस्सेदारी लेकर किया जाता है, तो कोई सिर्फ शेयर या बॉन्ड खरीदने के तौर पर होता है.
भारत जैसे उभरते हुए देश में विदेशी निवेश की भूमिका बहुत अहम है. सरकार भी चाहती है कि देश में ज्यादा से ज्यादा FDI आए ताकि बुनियादी ढांचे में सुधार हो, टेक्नोलॉजी आए और रोजगार के मौके बनें. वहीं शेयर बाजार को गहराई देने और लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए FPI और FII जैसे पोर्टफोलियो निवेश भी ज़रूरी हैं. लेकिन इनके पीछे छिपे फायदे और जोखिम को समझना हर जागरूक निवेशक और पाठक के लिए जरूरी है.
1. FDI (Foreign Direct Investment – विदेशी प्रत्यक्ष निवेश)
FDI का मतलब होता है जब कोई विदेशी कंपनी या निवेशक भारत की किसी कंपनी में लंबी अवधि के लिए सीधा निवेश करता है. यह निवेश आम तौर पर फैक्ट्री लगाकर, शाखा खोलकर या किसी कंपनी में बड़ा हिस्सा खरीदकर किया जाता है. FDI में निवेशक को कंपनी के प्रबंधन में भागीदारी मिलती है और वह उसकी नीतियों पर भी असर डाल सकता है. उदाहरण के लिए, अगर अमेरिका की कोई टेक कंपनी बेंगलुरु में रिसर्च सेंटर खोलती है तो वह FDI है.
2. FPI (Foreign Portfolio Investment – विदेशी पोर्टफोलियो निवेश)
FPI में विदेशी निवेशक भारत के शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर, बॉन्ड या सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं. ये निवेशक कंपनी के संचालन में कोई दखल नहीं देते, केवल कीमतों के उतार-चढ़ाव से मुनाफा कमाना इनका उद्देश्य होता है. यह निवेश आमतौर पर अल्पकालिक (short-term) होता है और शेयर बाजार में अचानक उतार-चढ़ाव लाने की क्षमता रखता है.
3. FII (Foreign Institutional Investors – विदेशी संस्थागत निवेशक)
FII असल में FPI का ही एक भाग होते हैं, लेकिन ये व्यक्तिगत निवेशक नहीं बल्कि बड़ी संस्थाएं होती हैं, जैसे म्यूचुअल फंड हाउस, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड आदि. ये संस्थाएं बड़ी मात्रा में पैसा भारतीय बाजारों में लगाती हैं. चूंकि ये संस्थागत निवेशक होते हैं, इसलिए इनका बाजार पर असर ज्यादा होता है.
मुख्य अंतर सारणी में:
विशेषता
FDI
FPI
FII
निवेश का तरीका
प्रत्यक्ष (Direct)
अप्रत्यक्ष (Portfolio)
अप्रत्यक्ष, संस्थागत
निवेश का समय
दीर्घकालिक
अल्पकालिक या मध्यम अवधि
अल्पकालिक या मध्यम अवधि
नियंत्रण
कंपनी में हिस्सेदारी व प्रबंधन
कोई नियंत्रण नहीं
कोई नियंत्रण नहीं
अस्थिरता
कम
ज्यादा
ज्यादा
उद्देश्य
उत्पादन, विस्तार, इंफ्रास्ट्रक्चर
मूल्य लाभ और ब्याज आय
मूल्य लाभ और ब्याज आय
FDI भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार देता है, जबकि FPI और FII बाजार में लिक्विडिटी और निवेश की गहराई बढ़ाते हैं. हालांकि, जहां FDI स्थिरता लाता है, वहीं FPI और FII के अचानक आना-जाना बाज़ार को अस्थिर भी कर सकता है. इसलिए भारत सरकार ने तीनों के लिए अलग-अलग नीतियां बनाई हैं ताकि निवेश को बेहतर तरीके से नियंत्रित और प्रोत्साहित किया जा सके.