
इजरायल-ईरान युद्ध : इज़रायल-ईरान युद्ध से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने और वैश्विक व्यापार में बाधा का खतरा है. इससे भारत के बासमती चावल निर्यात पर संकट मंडरा रहा है. ईरान भारतीय बासमती का बड़ा आयातक है.

हाइलाइट्स
- इजरायल-ईरान युद्ध से बासमती चावल निर्यात पर संकट
- ईरान भारतीय बासमती का बड़ा आयातक है
- युद्ध से किसानों और व्यापारियों की चिंता बढ़ी
नई दिल्ली. इज़रायल और ईरान के बीच चल रही जंग से दुनिया में हड़कंप मचा हुआ है. कच्चे तेल की कीमत बढने से महंगाई में वृद्धि होने का खतरा तो बढ ही गया है साथ ही वैश्विक व्यापार में बाधा उत्पन्न होने का खतरा भी पैदा हो गया है. इस युद्ध से भारत के बासमती चावल के निर्यात पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं. इसका कारण यह है कि ईरान भारतीय बासमती चावल का बड़ा आयातक है. युद्ध अगर लंबा खिंचता है या फिर ईरान को बड़ा नुकसान होता है तो इससे ईरान को बासमती चावल के निर्यात में गिरावट आ सकती है और भुगतान में भी अड़ंगा पड़ सकता है.
किसान और व्यापारी चिंतित
अमेरिकी प्रतिबंधों से बढ़ी दिक्कत
पंजाब बासमती राइस मिलर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष रंजीत सिंह जोसन ने बताया कि एक समय ईरान भारत का सबसे बड़ा बासमती आयातक था, लेकिन अमेरिका के प्रतिबंधों के चलते यह व्यापार काफी हद तक प्रभावित हुआ है. जोसन ने कहा कि अगर हालात और बिगड़ते हैं, तो इसका असर न सिर्फ निर्यातकों पर पड़ेगा बल्कि भारत के घरेलू बाजार में चावल की कीमतों और मांग की स्थिरता पर भी खतरा मंडरा सकता है. उन्होंने यह भी बताया कि भारत द्वारा ईरान से कच्चे तेल का आयात बंद करने से भी भुगतान तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.
फिलहाल, निजी क्षेत्र के भुगतान 6 से 8 महीने तक देरी से हो रहे हैं, जबकि ईरान की सरकारी एजेंसियों जैसे गवर्नमेंट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (जीटीसी), ईरान ट्रेडिंग कंपनी (इटका), कृषि जिहाद मंत्रालय (एमएजे) और उद्योग, खान और व्यापार मंत्रालय (एमआईएमटी) भारतीय निर्याताकों को 90 से 180 दिनों में पैसों का भुगतान कर रहे हैं. हरियाणा के एक प्रमुख चावल निर्यातक का कहना है कि ईरान को निर्यात का भुगतान प्राप्त करना एक जटिल प्रक्रिया है. ईरान में भुगतान आमतौर पर दुबई और अन्य माध्यमों में स्थित व्यापारियों के खातों के जरिए किया जाता है, जो कि समय लेने वाली प्रक्रिया है.
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