
योजना में गारंटी वाली पेंशन
इस ऐतिहासिक कदम से एक जनवरी, 2006 को या उसके बाद नियुक्त हुए दो लाख से अधिक राज्य सरकार के कर्मचारियों को लाभ होगा. राज्य मंत्रिमंडल की सिफारिश पर लागू हो रही इस योजना का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन और पारिवारिक पेंशन सुनिश्चित करना है. एकीकृत पेंशन योजना अपनाने वाले राज्य सरकार के कर्मचारी को सेवानिवृत्ति से पहले के 12 महीनों के दौरान मिले औसत मूल वेतन का 50 फीसदी पेंशन के तौर पर मिलेगा, बशर्ते उस कर्मचारी ने 25 साल की सेवा पूरी कर ली हो.
यूपीएस में पेंशन का नियम कर्मचारियों की सेवा अवधि पर निर्भर करता है. अगर कोई कर्मचारी 10 या उससे अधिक वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद सेवानिवृत्त होता है, तो उसे प्रति माह 10,000 रुपये का न्यूनतम गारंटी वाली पेंशन मिलेगी. हालांकि, 25 साल या उससे ज्यादा की सेवा पूरी करने वाले को 50 फीसदी पेंशन दी जाएगी. पेंशनभोगी की मृत्यु की स्थिति में उसके परिवार को अंतिम में दी गई पेंशन राशि का 60 फीसदी पैसा मिलेगा.
महंगाई राहत का लाभ मिलेगा
महंगाई राहत (डीआर) सुनिश्चित पेंशन भुगतान और पारिवारिक पेंशन दोनों पर लागू होगी. महंगाई राहत की गणना सेवारत कर्मचारियों पर लागू महंगाई भत्ते (डीए) के समान ही की जाएगी. हालांकि, महंगाई राहत केवल तभी देय होगी जब पेंशन भुगतान शुरू हो जाएगा. इसका मतलब है कि रिटायर्ड कर्मचारी को तो पेंशन पर महंगाई राहत का लाभ मिलेगा ही, उनके परिवार को भी इसका लाभ दिया जाएगा.
सेवानिवृत्ति के समय कर्मचारी को एकमुश्त भुगतान की भी अनुमति दी जाएगी, जो उनकी सेवा के हर छह महीने के लिए मासिक परिलब्धियों (मूल वेतन एवं डीए) का 10 फीसदी होगा. इसका मतलब है कि 6 महीने में कर्मचारी को जो भी वेतन मिलेगा, उसका 10 फीसदी एकमुश्त राशि के लिए जुड़ता जाएगा. इस तरह, पूरे सेवाकाल में छमाही आधार पर रकम जुड़ती रहेगी, जो रिटायरमेंट के समय कर्मचारी को एकमुश्त मिल जाएगी. यह एकमुश्त राशि सुनिश्चित पेंशन भुगतान को प्रभावित नहीं करेगी.
राज्य सरकार पर कितना बोझ
वर्तमान राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के तहत कर्मचारी 10 फीसदी योगदान करते हैं, जबकि राज्य सरकार 14 फीसदी का योगदान करती है. यूपीएस लागू होने के साथ राज्य सरकार का योगदान बढ़कर 18.5 फीसदी हो जाएगा. इसका मतलब है कि हर कर्मचारी के हिस्से में 4.5 फीसदी का ज्यादा योगदान सरकार को करना होगा. इस तरह, हरियाणा सरकार के खजाने पर हर महीने 50 करोड़ रुपये अथवा सालाना 600 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ जाएगा.
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