निजी ऑपरेटरों का कहना है कि उन्हें जब एयरपोर्ट्स मिले थे तब जमीन और संपत्तियों का असल मूल्य बहुत अधिक था. इसलिए उन्हें 50 हजार करोड़ रुपये दिए जाएं. अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऑपरेर्ट्स के हक में आ जाता है तो दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट पर यात्रियों और एयरलाइंस से वसूला जाने वाला शुल्क बढ जाएगा.
ऐसा इसलिए क्योंकि एयरपोर्ट ऑपरेटर इस रकम को यात्रियों और एयरलाइंस से बढ़े हुए शुल्क के जरिए वसूलेंगे. अनुमान है कि केवल दिल्ली में यूजर डेवलपमेंट फीस लगभग 10 गुना तक बढ़ सकती है. वर्तमान में जहां UDF 129 रुपये है, वह बढ़कर 1,261 रुपये तक पहुंच सकता है. मुंबई में इसका असर और भी बड़ा हो सकता है, जहां UDF 175 रुपये से बढ़कर 3,856 रुपये तक पहुंच सकता है. इससे हवाई टिकट महंगी हो जाएगी.
क्या है पूरा मामला
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह विवाद ‘Hypothetical Regulatory Asset Base’ को लेकर है. एयरपोर्ट पर यात्रियों और एयरलाइंस से जो शुल्क वसूला जाता है, उसे तय करने के लिए एयरपोर्ट की संपत्तियों का मूल्य निकाला जाता है. इसी मूल्यांकन के आधार पर यह तय होता है कि एयरपोर्ट कितना यूजर चार्ज, लैंडिंग चार्ज या पार्किंग चार्ज वसूल सकता है. लेकिन दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट के निजी संचालक DIAL और MIAL का दावा है कि उन्हें 2006 में जो एयरपोर्ट संपत्तियां मिली थीं, उनका मूल्य बहुत अधिक था. इसलिए वे 50,000 करोड़ रुपये की मांग कर रहे हैं.
यह विवाद अचानक पैदा नहीं हुआ, बल्कि यह 2006 में शुरू हुआ था. उसी वर्ष दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट को सार्वजनिक-निजी साझेदारी (PPP) मॉडल के तहत निजी कंपनियों को सौंप दिया गया था. इससे पहले ये दोनों हवाई अड्डे एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) चलाती थी और सभी हवाई अड्डों के लिए शुल्क एक जैसा होता था. 2009 में एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (AERA) का गठन हुआ, जिसका काम प्रमुख एयरपोर्ट्स पर लगने वाले शुल्क तय करना है. विवाद इसी बीच की अवधि को लेकर है यानी 2006 में एयरपोर्ट दिए जाने से लेकर 2009 में के पूरी तरह सक्रिय होने तक.
निजी ऑपरेटरों का तर्क
निजी ऑपरेटरों का कहना है कि उन्हें जब एयरपोर्ट्स मिले थे तब जमीन और संपत्तियों का असल मूल्य बहुत अधिक था. निजी कंपनियां यह भी चाहती हैं कि एयरपोर्ट परिसर में बनने वाले होटल, मॉल, ऑफिस जैसी गैर-एरोनॉटिकल संपत्तियों को भी एसेट बेस में जोड़ा जाए. जबकि सरकार का तर्क है कि 2006 में ये एयरपोर्ट काफी खराब स्थिति में थे टर्मिनल जर्जर थे, पुरानी इमारतें और बेसिक सुविधाएं ठीक नहीं थीं. इनकी कीमत कुछ सौ करोड़ से अधिक नहीं हो सकती थी.
सरकार का कहना है कि यदि निजी कंपनियों की इस मांग को स्वीकार कर लिया गया, तो देश में एयरपोर्ट विकास बेहद महंगा हो जाएगा. साथ ही एयरलाइंस पर भी बढ़ते चार्ज का बोझ पड़ेगा, जिसे वे टिकटों में जोड़ देंगी. इसलिए सरकार ने साफ कर दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट में AERA का पूरा समर्थन करेगी और इस मांग का मजबूती से विरोध करेगी.


