
नई दिल्ली. ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारत ने जिस तरह से पाकिस्तान के मिसाइलों और ड्रोन को हवा में ही खत्म कर दिया, उससे यह साबित हो गया कि भारत का एयर डिफेंस सिस्टम कितना मजबूत है. लेकिन भारत अब और भी खतरनाक तरीके से इसकी ताकत बढ़ाने में लगा है. दरअसल, पाकिस्तान के साथ ही भारत को चीन से भी मुकाबला करना पड़ सकता है और इसीलिए उसे अपने एयर डिफेंस को इतना पावरफुल बनाना होगा, जिससे कि दुश्मनों की कोई भी मिसाइल हमारी सीमा में घुसते ही तबाह हो जाए. इस पर काम भी शुरू हो गया है.
प्रोजेक्ट कुशा 80 किलोमीटर एमआर-एसएएम और 400 किलोमीटर एस-400 के बीच की खाई को पाटता है, जो आकाश और बराक-8 जैसे सिस्टम के साथ इंटीग्रेटेड है. यह भारत की आत्मनिर्भरता पहल, ‘आत्मनिर्भर भारत’ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. घरेलू समाधान का उद्देश्य क्षेत्रीय खतरों, विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन से सुरक्षा को मजबूत करके भारत के हवाई क्षेत्र को हवाई खतरों से बचाना है.
सिस्टम स्पेसिफिकेशन:
इंटरसेप्टर मिसाइल: प्रोजेक्ट कुशा की मुख्य ताकत इसके तीन-लेवल वाली इंटरसेप्टर मिसाइल सिस्टम में छिपा है, जिसे अलग-अलग दूरी पर विभिन्न हवाई खतरों को बेअसर करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. M1 इंटरसेप्टर (150 किमी) मिसाइल कम दूरी पर लड़ाकू जेट, ड्रोन और क्रूज मिसाइलों जैसे खतरों को टारगेट करेगी.
यह M1 के 250 मिमी किल व्हीकल को साझा करता है, जो मध्यम दूरी के खतरों के खिलाफ चालाकी और सटीकता के लिए अनुकूल है. एम3 इंटरसेप्टर (350-400 किमी), सिस्टम में सबसे लंबी दूरी की मिसाइल है, जिसे बड़े विमानों और संभावित रूप से छोटी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों (एसआरबीएम और आईआरबीएम) का मुकाबला करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसकी विस्तारित सीमा और बढ़ी हुई मारक क्षमता को हासिल करने के लिए इसमें 450 मिमी व्यास का बड़ा किलिंग व्हीकल हो सकता है.
एडवांस रडार सिस्टम: प्रोजेक्ट कुशा का असरदार होना इसकी स्टेट-ऑफ-द-आर्ट रडार सिस्टम्स, विशेष रूप से लॉन्ग रेंज बैटल मैनेजमेंट रडार (LRBMR), एक S-बैंड रडार पर निर्भर करती है, जिसकी डिटेक्शन रेंज 500 किमी से अधिक है. यह रडार दुश्मन के इलाके में 500-600 किमी तक स्कैन कर सकता है, जो स्टील्थ एयरक्राफ्ट, ड्रोन, सटीक-गाइडेड युद्ध सामग्री और बैलिस्टिक मिसाइलों के खिलाफ शुरुआती चेतावनी देता है. यह सिस्टम भारत के इंटीग्रेटेड एयर कमांड और कंट्रोल सिस्टम (IACCS) के साथ बड़ी आसानी से इंटीग्रेट होती है, जिससे आकाश, MRSAM और S-400 सहित अन्य एयर डिफेंस सिस्टम्स के साथ रियल टाइम तालमेल संभव होता है.
इसी तरह से, भारतीय नौसेना अपने अगली पीढ़ी के विध्वंसक के लिए 6×6 मीटर का रडार विकसित कर रही है, जो विशाखापत्तनम कैटेगरी के विध्वंसक के रडार से चार गुना बड़ा है, ताकि 1,000 किलोमीटर तक की दूरी तक मार करने वाली समुद्री मिसाइलों और ASBM का पता लगाया जा सके.
Discover more from हिंदी न्यूज़ ब्लॉग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.