अयोध्या में राम मंदिर के ऊपर पवित्र भगवा ध्वज फहराए जाने को लेकर पाकिस्तान की तरफ से आई टिप्पणी ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक तनाव को बढ़ा दिया है. पाकिस्तान की आपत्तियों को भारत ने न सिर्फ खारिज किया, बल्कि उन्हें दोहरे मापदंड की मिसाल बताया.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पाकिस्तान की आलोचना न तो तथ्यपूर्ण है और न ही उसका कोई नैतिक आधार है. उन्होंने कहा कि जिस देश का अपना इतिहास कट्टरता, तानाशाही मानसिकता और अल्पसंख्यकों के दमन से भरा हो, वह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को धार्मिक आज़ादी पर सीख देने की स्थिति में नहीं है. जायसवाल ने यह भी दोहराया कि अयोध्या में हुआ ध्वजारोहण भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विश्वासों से जुड़ा है और इसमें किसी बाहरी देश की राय का कोई महत्व नहीं.
पाकिस्तान ने क्यों उठाई आपत्ति?
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बयान में राम मंदिर पर फहराए गए ध्वज को इस्लामोफोबिया की अभिव्यक्ति बताया था. पाकिस्तान ने कहा कि यह कदम उसे 1992 की घटनाओं की याद दिलाता है और भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए खतरे का माहौल पैदा करता है. पाकिस्तान ने यहां तक कहा कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को इस मुद्दे में हस्तक्षेप करना चाहिए.
भारत ने दिया करारा जबाव
भारत ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पाकिस्तान को भारत के धार्मिक आयोजनों में दखल देने से पहले अपने देश में बिगड़ी स्थिति पर ध्यान देना चाहिए. MEA ने कहा, पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर दबाव, जबरन धर्मांतरण, मंदिरों और चर्चों पर हमले और मानवाधिकार उल्लंघन जैसी घटनाएं लगातार होती रही हैं. ऐसे में पाकिस्तान का उपदेश देना पाखंड से अधिक कुछ नहीं.
भगवा ध्वज का महत्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 नवंबर को अयोध्या में आयोजित विशेष समारोह के दौरान राम मंदिर पर पवित्र भगवा ध्वज फहराया. यह कार्यक्रम मंदिर निर्माण की प्रगति का प्रतीक था, जो प्राण प्रतिष्ठा के एक वर्ष बाद मनाया गया. लाखों श्रद्धालुओं के लिए यह एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्षण था जिसका पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं है.


