
भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का नाम भारतीय सैन्य इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. वह न सिर्फ बहादुर सैनिक थे, बल्कि उनके अंदाज और शख्सियत ने उन्हें भारतीय सेना का ‘लिविंग लेजेंड’ बना दिया था. हाल ही में उनके जीवन पर आधारित फिल्म का ऐलान होने के बाद एक बार फिर लोग जानना चाहते हैं कि ये महान फौजी आखिर कौन थे? उन्होंने कहां से पढ़ाई की थी और उनका सैल्यूट करने का तरीका इतना खास क्यों था?
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ कौन थे?
सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के पहले अधिकारी थे जिन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि दी गई थी. यह रैंक भारतीय सेना में सर्वोच्च होती है और अब तक देश में केवल दो लोगों को ही यह सम्मान मिला है सैम मानेकशॉ और केएम करियप्पा.
सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ था. वह पारसी समुदाय से थे. उनके पिता एक डॉक्टर थे और शुरू से ही शिक्षा को बहुत महत्व देते थे. सैम की प्रारंभिक पढ़ाई नैनीताल के प्रतिष्ठित शेरवुड कॉलेज से हुई थी. इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड से मेडिकल की पढ़ाई करनी चाही, लेकिन किस्मत उन्हें सैन्य सेवा की ओर ले गई.
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कहां से शुरू हुई सेना की यात्रा?
सैम मानेकशॉ इंडियन मिलिट्री अकादमी (IMA), देहरादून के पहले बैच के कैडेट्स में से एक थे. उन्हें साल 1934 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कमीशन मिला और उनकी पहली पोस्टिंग बर्मा (अब म्यांमार) में हुई. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने बहादुरी से लड़ाई की और गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वापसी कर सेना में सेवा जारी रखी.
1971 की जंग में निभाई अहम भूमिका
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 में उनकी रणनीति और नेतृत्व ने भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाई और बांग्लादेश का निर्माण हुआ. उनकी सूझबूझ और हिम्मत ने उन्हें एक राष्ट्रीय नायक बना दिया. इसी जीत के बाद उन्हें 1973 में फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया.
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उनका सैल्यूट करने का तरीका क्यों था खास?
दरअसल, आर्मी अफसरों के पास एक स्टिक होती है. जिसे वह शोल्डर के नीचे दबाकर सैल्यूट करते हैं. लेकिन फील्ड मार्शल के पास अशोक स्तम्भ होता है. रिपोर्ट्स के अनुसार इसलिए वह हाथ की जगह अशोक स्तम्भ से सैल्यूट करते हैं.
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