
किशोरावस्था (Adolescence) जीवन का एक बेहद खास और अहम पडाव होता है। इस दौरान बच्चे सिर्फ शारीरिक रूप से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक और मानसिक तौर पर भी तेजी से बढते हैं। अक्सर, वे ऐसी बातों या भावनाओं का सामना करना शुरू कर देते हैं जिनके बारे में उन्हें पूरी जानकारी नहीं होती, या शायद उन्हें पता ही नहीं होता कि वे चीजें मौजूद भी हैं। उन्हें दोस्तों या बडों से आलोचना, नामंजूरी या निराशा जैसी चीजों का सामना करना पड सकता है। चूंकि उन्हें ये पता ही नहीं होता कि ये अनुभव क्या हैं, ऐसे में वे इनसे कैसे निपटेंगे? यही वजह है कि जब आप उनसे पूछते हैं, ‘क्या हुआ?’, तो आपको सबसे आसान जवाब मिलता है, ‘मैं ठीक हूं।’ सच तो यह है कि वे खुद भी नहीं जानते कि अपनी भावनाओं को या अपनी जिंदगी में चल रही उथल-पुथल को कैसे बयान करें। तो ऐसे में, एक अभिभावक के तौर पर, एक दोस्त के तौर पर, या उनके आस-पास रहने वाले किसी भी व्यक्ति के तौर पर, आप उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?
ऐसा क्यों होता है?
किशोरावस्था में ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चों का दिमाग अभी पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ होता है। खासकर दिमाग का वह हिस्सा जो भावनाओं को समझने और उन्हें व्यक्त करने में मदद करता है। इसके अलावा, हार्मोनल बदलाव भी बहुत तेजी से होते हैं, जिससे उनके मूड में उतार-चढाव आता रहता है।
वे दुनिया को नए सिरे से देख रहे होते हैं और अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे होते हैं। इस प्रक्रिया में उन्हें बहुत-सी नई भावनाओं और सामाजिक स्थितियों का सामना करना पडता है, जिनके लिए वे तैयार नहीं होते। उन्हें अक्सर लगता है कि कोई उन्हें समझ नहीं रहा है, और वे अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालने में मुश्किल महसूस करते हैं।
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माता-पिता और लोग क्या कर सकते हैं?
धैर्य रखें और सुनें: किशोरावस्था एक ऐसा समय होता है जब बच्चों को सबसे ज्यादा धैर्य और समझ की जरूरत होती है। सबसे पहले, यह समझना जरूरी है कि वे खुद भी अपनी उलझनों से जूझ रहे होते हैं, इसलिए उनसे तुरंत जवाब की उम्मीद न करें। जब वे बात करें तो उन्हें ध्यान से सुनें; उनकी आंखों में देखें और उन्हें महसूस कराएं कि आप उनकी बातों को गंभीरता से ले रहे हैं। सीधे ‘क्या हुआ?’ पूछने के बजाय, आप ‘आज तुम्हारा दिन कैसा रहा?’ या ‘क्या कुछ ऐसा है जिसके बारे में तुम बात करना चाहते हो?’ जैसे सवाल पूछ सकते हैं ताकि उन पर कोई दबाव न पडे।
सुरक्षित माहौल दें: दूसरा अहम कदम है उनके लिए एक सुरक्षित माहौल बनाना। उन्हें यह एहसास दिलाएं कि वे किसी भी बात के बारे में आपसे खुलकर बात कर सकते हैं, चाहे वह कितनी भी छोटी या अजीब लगे। उनकी भावनाओं या विचारों पर तुरंत अपनी राय या जजमेंट न दें, क्योंकि इससे वे और ज्यादा संकोची हो सकते हैं। सबसे जरूरी है विश्वास बनाना; उन्हें भरोसा दिलाएं कि आप हमेशा उनके साथ हैं और उन्हें हर हाल में सहारा देंगे।
भावनाओं को समझने में मदद करें: इसके अलावा, उन्हें अपनी भावनाओं को समझने में मदद करना भी बेहद जरूरी है। आप उन्हें अपनी भावनाओं को पहचानने और उन्हें नाम देने में मदद कर सकते हैं, जैसे ‘क्या तुम परेशान महसूस कर रहे हो?’ या ‘क्या तुम्हें गुस्सा आ रहा है?’ उन्हें यह भी समझाएं कि उदास, गुस्सा या भ्रमित महसूस करना सामान्य है; सभी लोग कभी-कभी ऐसी भावनाओं का अनुभव करते हैं।
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सहारा और मार्गदर्शन दें: आखिर में, उन्हें लगातार सहारा और मार्गदर्शन दें। भले ही वे आपसे बात न करें, उन्हें यह पता होना चाहिए कि आप उनके लिए हमेशा उपलब्ध हैं। अपनी भावनाओं को स्वस्थ तरीके से व्यक्त करके उनके लिए एक उदाहरण बनें। यदि आपको लगता है कि वे बहुत ज्यादा परेशान हैं या अपनी समस्याओं से निपट नहीं पा रहे हैं, तो किसी काउंसलर या थेरेपिस्ट से पेशेवर मदद लेने का सुझाव देने में संकोच न करें। याद रखें, किशोरावस्था एक चुनौती भरा समय हो सकता है, लेकिन आपका प्यार, धैर्य और समझ उन्हें इस महत्वपूर्ण दौर से निकलने में बहुत मदद कर सकता है।
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