मुख्यमंत्री पद को लेकर बढ़ी तल्खी के बीच शनिवार सुबह सिद्धारमैया और शिवकुमार का साथ में नाश्ता करना इस बात का संकेत था कि पार्टी अब पुराने विवादों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहती है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बैठक सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा थी, ताकि दोनों नेताओं के बीच उपजा विवाद सार्वजनिक तौर पर किसी बड़े संकट में न बदले.
सत्ता हस्तांतरण की राह साफ?
कांग्रेस के भीतर तैयार किए गए इस फॉर्मूले के मुताबिक, शिवकुमार को फिलहाल डिप्टी सीएम पद पर ही बने रहना होगा, और सत्ता हस्तांतरण का रास्ता धीरे-धीरे तैयार किया जाएगा. माना जा रहा है कि 2026 के मार्च-अप्रैल तक नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया पूरी हो सकती है.
इस बीच, उन्हें संगठन में पहले की तरह ही मजबूत भूमिका मिलेगी. सूत्रों के मुताबिक, शिवकुमार के समर्थकों को और अधिक मंत्रालय दिए जाएंगे और वह कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने रहेंगे. बदले में 2028 के विधानसभा चुनाव में सिद्धारमैया खुलकर शिवकुमार का समर्थन करेंगे.
शिवकुमार के पास भी सीमाएं
हालांकि शिवकुमार अचानक से बदलाव की मांग नहीं कर सकते, क्योंकि उनके पास पार्टी के भीतर पर्याप्त संख्या बल नहीं है कि वे किसी तरह का दबाव बना सकें. वहीं कांग्रेस भी किसी अनुभवी नेता जैसे सिद्धारमैया को हटाकर जोखिम लेना नहीं चाहेगी. ऐसे में राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए शिवकुमार को मिला यह समझौता उनके लिए भी एक बेहतर विकल्प माना जा रहा है.
सिद्धारमैया का आखिरी कार्यकाल
दूसरी ओर, सिद्धारमैया पहले ही साफ कर चुके हैं कि यह उनका अंतिम कार्यकाल है. उन्होंने राज्य की राजनीति में अपना प्रभाव और विरासत मजबूत कर ली है और अपने राजनीतिक सफर का अंत एक सकारात्मक नोट पर करना चाहते हैं. यही कारण है कि सत्ता हस्तांतरण पर बने नए फॉर्मूले पर वह सहमत दिख रहे हैं.
क्या यह समझौता टिक पाएगा?
इस पूरे समीकरण पर कुछ बड़े सवाल भी खड़े हैं. पहला यह कि क्या शिवकुमार सिद्धारमैया पर भरोसा कर पाएंगे? कर्नाटक की राजनीति में अंतिम समय में समीकरण बदलने के कई उदाहरण मौजूद हैं. और दूसरा यह कि क्या कांग्रेस हाईकमान तय समय पर परिवर्तन सुनिश्चित कर पाएगा?
जातीय समीकरण पर भी ध्यान
सिद्धारमैया ‘अहिंदा’ (दलित, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक) राजनीति का सबसे मजबूत चेहरा हैं. वहीं शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं. कांग्रेस किसी भी हाल में इस सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने का जोखिम नहीं उठाना चाहेगी.
कुल मिलाकर, कांग्रेस ने दोनों बड़े नेताओं के बीच बढ़ते तनाव को फिलहाल काबू कर लिया है. समझौता फॉर्मूला तैयार है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि आने वाले महीनों में राजनीतिक समीकरण किस तरह बदलते हैं और पार्टी हाईकमान कितनी मजबूती से इसे लागू कर पाता है.


