
सहारनपुर के संजय सैनी, जिन्हें ‘मिलेट्स मास्टर’ कहा जाता है, मिलेट्स से सेहतमंद आटा बनाकर देशभर में पहचान बना रहे हैं. उनका मकसद लोगों को हेल्दी लाइफस्टाइल की ओर प्रेरित करना है. 2023 में शुरू किए इस काम से वे हर महीने 12-13 क्विंटल आटा बेचते हैं. हर हफ्ते ‘संडे टू संडे’ मेथड से तैयार होने वाला ये आटा आज दिल्ली से लेकर मुंबई तक लोगों की पहली पसंद बन चुका है.

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के किसान इन दिनों अलग-अलग इनोवेटिव प्रोडक्ट्स बनाकर देशभर में पहचान बना रहे हैं. इन्हीं में एक नाम तेजी से उभरा है जो है संजय सैनी, जिन्हें अब लोग ‘मिलेट्स मास्टर’ कहकर पहचानने लगे हैं.

संजय सैनी मोटे अनाजों (मिलेट्स) से सेहतमंद आटा तैयार करते हैं और उसे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों से पूरे देश में भेजते हैं. उनका मकसद सिर्फ बिजनेस नहीं, बल्कि लोगों को हेल्दी लाइफस्टाइल की ओर प्रेरित करना है.

संजय का सपना है कि हर गली, हर मोहल्ले में मिलेट्स का ताजा आटा आसानी से उपलब्ध हो. उनका मानना है कि यह सिर्फ एक आटा नहीं, बल्कि भारत की पारंपरिक जीवनशैली और खानपान की वापसी है. वे कहते हैं, “हमें दोबारा उसी संस्कृति की ओर लौटना होगा, जिसमें ताजा और पोषक खाना हमारे जीवन का हिस्सा था.” उनका बनाया हुआ मिलेट्स आटा दिल्ली, लखनऊ, इंदौर, मुंबई जैसे शहरों तक कोरियर से भेजा जाता है. फिलहाल वह 7 प्रकार के मिलेट्स से अलग-अलग आटे तैयार करते हैं.

संजय सैनी ने मिलेट्स का आटा बनाना साल 2023 में शुरू किया था. उन्होंने बताया कि मिलेट्स की कुल 10 किस्में होती हैं, लेकिन उनमें से 7-8 की मांग सबसे ज़्यादा है. वे फिलहाल मंडुआ (रागी), कोदो, कुटकी, सांवा, चौलाई, ज्वार और बाजरा जैसे मोटे अनाजों से आटा बना रहे हैं. वे हर हफ्ते रविवार को खास तौर पर आटा तैयार करते हैं, जबकि बाकी दिनों में अन्य कामों पर ध्यान देते हैं.

संजय सैनी का “संडे टू संडे” मेथड अनोखा है. उनके अनुसार मिलेट्स का आटा ज्यादा दिनों तक नहीं रखना चाहिए क्योंकि इसमें ऊर्जा भरपूर होती है, जिससे जल्दी फंगस लगने का खतरा होता है. इसलिए वे हर रविवार को ही ताजा आटा तैयार करते हैं. इस आटे को एक हफ्ते के अंदर उपयोग करने की सलाह दी जाती है.

संजय को देश की कई बड़ी कंपनियों से मिलेट्स आटा खरीदने के ऑफर मिले, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. वजह ये थी कि कंपनियां सिर्फ कच्चे मिलेट्स के भाव पर आटा खरीदना चाहती थीं, जबकि इस आटे की प्रोसेसिंग में काफी मेहनत और खर्च लगता है. संजय का कहना है कि जब तक उचित दाम और क्वालिटी का सम्मान नहीं मिलेगा, वे खुद ही आटा बनाकर सीधे कंज्यूमर्स को देंगे.

मिलेट्स का आटा तैयार करने की प्रोसेस आसान नहीं है. पहले मिलेट्स को अच्छी तरह धोया जाता है, फिर उसे धूप में सुखाया जाता है. इसके बाद उसे पिसवाकर ताजा आटा तैयार किया जाता है. यही कारण है कि यह आटा थोड़ा महंगा पड़ता है, लेकिन इसका स्वास्थ्य पर असर बेहतरीन होता है.

आज की तारीख में संजय सैनी के बनाए आटे की डिमांड इतनी है कि वे हर महीने 12 से 13 क्विंटल तक का स्टॉक बेच देते हैं. बावजूद इसके, वह मांग के मुकाबले उत्पादन नहीं कर पा रहे. संजय का सपना है कि आने वाले समय में हर शहर और गांव में लोग मिलेट्स आटे को अपनाएं ताकि देश को फिर से सेहतमंद बनाया जा सके.
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