
डॉक्टर ने बताया कि पर्यावरणीय प्रदूषण और रासायनिक तत्वों का हमारे शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है. प्रदूषण, प्लास्टिक उत्पादों में मौजूद बिस्फिनोल A और कीटनाशकों का लगातार संपर्क रिप्रोडक्टिव हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित करता है. यह रसायन शरीर में हार्मोनल असंतुलन पैदा कर सकते हैं, जो अंडाणु या शुक्राणु के उत्पादन और गुणवत्ता को घटा सकता है. इसके अलावा इन रसायनों का अधिक समय तक संपर्क होने से महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है, जो इनफर्टिलिटी का एक प्रमुख कारण है. आजकल के युवा जीवन में करियर को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे शादी और बच्चों की योजना स्थगित हो रही है. 35 वर्ष की आयु के बाद महिलाओं में प्रजनन क्षमता में गिरावट आना शुरू हो जाती है. इसके अलावा महिलाओं में अंडाशय रिजर्व का जल्दी खत्म होना, स्पर्म क्वालिटी में कमी और अन्य शारीरिक समस्याएं इस बढ़ते ट्रेंड के कारण हैं.
एक्सपर्ट की मानें तो फर्टिलिटी प्रिजर्वेशन यानी एग्स और स्पर्म को फ्रीज करना भी एक अच्छा विकल्प है. यह उन कपल्स के लिए महत्वपूर्ण विकल्प बन चुका है, जो अपने करियर को प्राथमिकता देते हैं और फैमिली प्लानिंग को कुछ सालों के लिए स्थगित करना चाहते हैं. इस प्रक्रिया में अंडाणु और शुक्राणु को एक विशेष तापमान पर प्रिजर्व किया जाता है, ताकि भविष्य में जब परिवार की योजना बनानी हो, तो उनका उपयोग किया जा सके. यह विकल्प विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े शहरों में बढ़ते हुए देखे जा रहे हैं, जहां युवा पीढ़ी तेजी से इस प्रक्रिया का हिस्सा बन रही है.
युवाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या को नियंत्रित करने के लिए कुछ सामान्य बचाव उपाय हैं, जिन्हें अपनाया जा सकता है. सबसे पहला कदम है स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम. विटामिन-डी, जिंक, फोलिक एसिड, और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर आहार फर्टिलिटी को बढ़ाने में मदद करता है. शारीरिक रूप से सक्रिय रहना रिप्रोडक्टिव हेल्थ को सुधार सकता है. मानसिक तनाव को कम करने के लिए योग, ध्यान और सही नींद का पालन करना भी जरूरी है. तनाव का प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इसलिए मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना बेहद जरूरी है. युवाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या एक गंभीर और बढ़ती हुई चुनौती है, लेकिन उचित उपचार और बचाव से इस समस्या को कंट्रोल किया जा सकता है.
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