बिलासपुर. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में जहां आधुनिक दवाइयों से पहले परंपरागत नुस्खे आज भी जीवन का हिस्सा हैं, वहीं मातृत्व के बाद महिलाओं को स्वस्थ रखने के लिए अर्शी, सोंठ और तिल के लड्डू बनाए जाते हैं. ये लड्डू केवल स्वादिष्ट ही नहीं बल्कि पोषण से भरपूर होते हैं. गांव की महिलाएं जैसे कि गयाबाई, पीढ़ियों से इस परंपरा को निभा रही हैं और आज भी नई माताओं को इन लड्डुओं से ताकत देने का काम कर रही हैं. डिलीवरी के बाद नई माताओं को विशेष देखभाल की जरूरत होती है. इसी को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाएं तीन तरह के लड्डू बनाती हैं, सोंठ लड्डू, अर्शी लड्डू और तिल लड्डू. इनका सेवन प्रसव के बाद शरीर को पुनः ऊर्जावान बनाने में बेहद सहायक होता है.
बिलासपुर जिले की ग्रामीण महिला गयाबाई लोकल 18 को बताती हैं कि हम लोग ये लड्डू बहुत पहले से बनाते आ रहे हैं. सबसे पहले सोंठ को अच्छे से कूटते हैं, फिर उसमें काजू, किशमिश, बादाम, छुहारा जैसे ड्राईफ्रूट्स डालते हैं. इन्हें थोड़ा दानेदार पीसकर पाउडर बना लेते हैं. फिर इसमें करैर (सुगंधित जड़ी-बूटी) मिलाते हैं. गुड़ को गर्म करके उसका पेस्ट बनाते हैं और उस पेस्ट में यह मिक्सचर डालकर अच्छे से फेंटते हैं. फिर गोल-गोल लड्डू बना लेते हैं और घर में ही सुखाते हैं. ये लड्डू नई माताओं को खिलाए जाते हैं, जिससे उन्हें अंदरूनी ताकत मिले और जल्दी रिकवरी हो.
अर्शी और तिल के लड्डू: शरीर को गर्म रखने वाले पोषण के गोले अर्शी और तिल के लड्डू भी प्रसव के बाद की देखभाल में शामिल हैं. इसमें भी ड्राईफ्रूट्स मिलाकर गुड़ के पेस्ट के साथ मिलाया जाता है. फिर इसे गोल आकार देकर लड्डू बनाया जाता है. अर्शी (अरसी का आटा) में कैल्शियम और आयरन होता है, जो हड्डियों को मजबूती देता है. तिल शरीर को गर्मी देता है और ठंड के मौसम में भी नई माताओं को सुरक्षित रखता है.
फायदे जो बनाते हैं खास
ये लड्डू शरीर को पुनः ऊर्जा देने वाले, स्तनपान के लिए दूध की मात्रा बढ़ाने में सहायक, पाचन क्रिया को मजबूत करने वाले, हड्डियों और जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने वाले, सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं से बचाव के साथ ही महिलाओं में कई तरह की शारीरिक कमजोरी को दूर करते हैं.
पारंपरिक ज्ञान ही असली पोषण है गांव के ये लड्डू सिर्फ स्वाद नहीं बल्कि संस्कार भी हैं. छत्तीसगढ़ में आज भी महिलाएं बिना किसी रसायन या दवा के प्राकृतिक पोषण पर विश्वास करती हैं. गयाबाई जैसी महिलाएं जो पीढ़ियों से यह कार्य करती आ रही हैं, आज भी अपने अनुभव और ज्ञान से नई पीढ़ी की माताओं को मजबूत बना रही हैं.